मंदोदरी द्वारा भूमि में दफनाया गया कलश ही राजा जनक को खेत में सीता के रूप में मिला


कई विद्वानों का मानना है कि सीता और रावण के बीच पिता-पुत्री का संबंध था। परंतु रामायण के सबसे प्रथम वाल्मीकि रामायण में इसका कोई प्रमाण नहीं है। रामायण के कई विषय आज भी शोध का विषय है। प्रभु श्रीराम के जीवन पर १२० से अधिक अलग-अलग रामाण लिखी जा चुकी है। इन्हीं में से एक अद्भुत रामायण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि रावण और सीता का संबंध पिता-पुत्री का है। अद्भुत रामायण दो प्रमुख ऋषियों वाल्मीकि और भारद्वाज ऋषि के बीच का संवाद है। इस संवाद में एक कथा आती है कि गृत्स्मद नामक ब्राह्मण लक्ष्मी जी को अपनी पुत्री के रूप में पाने के लिए प्रत्येक दिन एक कलश में कुशा के आगे के भाग से मंत्र पढ़ते हुए दूध डालते थे। एक दिन रावण ने ब्राह्मणों की अनुपस्थिति में उस कलश में रक्त डालकर लंका ले गया। रावण ने वह कलश मंदोदरी को दिया और कहा कि इस कलश का संरक्षण करना इस विष भरा हुआ है। इसके बाद रावण वन चला गया। मंदोदरी अपने पति की उपेक्षा से दुखी होकर आत्महत्या करने का सोचा। रावण द्वारा दिए कलश के रक्त को विष समझकर पी लिया। अनजाने में मंदोदरी के रक्त पीने से वह गर्भवती हो गई। मंदोदरी ने सोचा कि मेरे पति मेरे पास नहीं हैं और उन्हें जब यह पता चलेगा कि मैं गर्भवती हो गई हूं तो वह क्या सोचेंगे। यह सोचकर मंदोदरी ने तीर्थयात्रा का बोलकर कुरुक्षेत्र आ गईं। जहां उनसे गर्भ निकालकर भूमि में दफना दिया। यही गर्भ परिपक्व होकर मिथिला के राजा जनक को खेत में चलाते समय माता सीता के रूप में प्रकट हुआ।