महिलाएं पूजा-पाठ कर अपने पुत्र की लंबी आयु और सेहत की आज के दिन करती हैं कामना

भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को पिठौरी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। उत्तरभारत के कई क्षेत्रों में इसे कुशोत्पाटनम भी कहा जाता है। पिठौरी अमावस्या पर गंगा स्नान, पूजा-पाठ, दान और पितरों के तर्पण और श्राद्ध का विशेष महत्व बताया गया है। इस दिन पितरों को प्रसन्न करने से व्यक्ति के जीवन में सुख-शांति का वास होता है। इसके साथ ही अच्छी शिक्षा और अपार धन की प्राप्ति भी होती है। पिठौरी अमावस्या पर देवी दुर्गा का विशेष महतव है। महिलाएं इस दिन पूजा कर अपने पुत्र की लंबी आयु और अच्छे सेहत की कामना करती हैं। 



स्नान, दान और तर्पण के लिए अमावस्या की तिथि का बहुत अधिक महत्व माना जाता है जिस अमावस्या तिथि पर सूर्य ग्रहण होता है उसका भी स्नानादि के लिये विशेष महत्व हो जाता है। लेकिन जब ये तीनों सारे संयोग एक साथ अमावस्या तिथि को हो जाएं तो वह बहुत ही पुण्य फलदायी मानी जाती है। इस संयोग में पितरों की आत्मा शांति से लेकर कुंडली में कालसर्प जैसे दोष का निवारण करने के लिए यह बहुत उपयुक्त तिथि हो जाती है।
देवी पूजा
मां पार्वती की जरूर पूजा करें। आटे से ६४ देवियों की छोटी-छोटी प्रतिमा या पिंड बनाएं। उनका पूजन करें। पौराणिक मान्यताओं की मानें तो माता पार्वती ने भगवान इंद्र की पत्नी को पिठौरा अमावस्या की कथा सुनाई थी। पूजा के समय देवी को सुहाग के सभी सामान चढ़ाए जाते हैं।
१ प्रकार के होते हैं कुश
शास्त्रों में १० प्रकार का कुश बताया गया है। इसमें जो भी मिल जाए उसी को ग्रहण कर लेना चाहिए। इस भादो की अमावस्या में छुटपुट बारिश के आसार नजर आ रहे हैं। भादों की अमावस्या को लाई गई कुश १२ वर्षों पर शुभ रहती है और पूजा पाठ के लिए प्रयोग की जाती है। 
पितरों को तर्पण करें
सुबह उठकर गंगा स्नान करें। अगर गंगा किनारे जाना संभव न हो तो नदी या सरोवर में स्नान करें। वहां भी न जा सकें तो घर में पानी में गंगाजल डालकर स्नान करें। उनक ेनाम पर चावल, सब्जी और दाल जैसे पके हुए भोजन और पैसों का दान करें। 
धार्मिक कर्म



  • इस दिन प्रात:काल उठकर किसी नदी, जलाशय या कुंड में स्नान करें और सूर्य देव को अध्र्य देने के बाद बहते जल में तिल प्रवाहित करें।

  • नदी के तट पर पितरों की आत्म शांति के लिए पिंडदान करें और किसी गरीब व्यक्ति या ब्राहण को दान-दक्षिणा दें।

  • इस दिन कालसर्प दोष निवारण के लिए पूजा-अर्चना भी की जा सकती है। 

  • अमावस्या के दिन शाम को पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक लगाएं और अपेन पितरों को स्मरण करें। पीपल की सात परिक्रमा लगाएं।

  • अमावस्या शनिदेव का दिन भी माना जाता है। इसलिए इस दिन उनकी पूजा करन जरूरी है।


दक्षिण भारत में देवी पोलेरम्मा की पूजा
हिंदू धर्म के अनुसार, पिठौरी अमावस्या के दिन व्रत करने से व्यक्ति को बुद्धिमान और बलशाली पुत्र की प्राप्ति होती है. पूजा के समय देवी को सुहाग के सभी समान जैसे नई चूड़ी, साड़ी, सिंदूर आदि चढ़ाया जाता है. दक्षिण भारत में पिठौरी अमावस्या को पोलाला अमावस्या के रूप में भी मनाया जाता है. इस दिन दक्षिण भारत में देवी पोलेरम्मा की पूजा की जाती है. बता दें कि पोलेरम्मा को पार्वती मां का ही एक रूप माना गया है.
भाद्रपद अमावस्या का महत्व
त्येक मास की अमावस्या तिथि का अपना विशेष महत्व होता है। भाद्रपद माह की अमावस्या की भी अपनी खासियत हैं। इस माह की अमावस्या पर धार्मिक कार्यों के लिये कुश एकत्रित की जा सकती है। मान्यता है कि धार्मिक कार्यों, श्राद्ध कर्म आदि में इस्तेमाल की जाने वाली घास यदि इस दिन एकत्रित की जाये तो वह वर्षभर तक पुण्य फलदायी होती है। यदि भाद्रपद अमावस्या सोमवार के दिन हो तो इस कुश का प्रयोग 12 सालों तक किया जा सकता है। कुश एकत्रित करने के कारण ही इसे कुशग्रहणी अमावस्या कहा जाता है। पौराणिक ग्रंथों में इसे कुशोत्पाटिनी अमावस्या भी कहा गया है।


शास्त्रों में दस प्रकार की कुशों का उल्लेख मिलता है –



कुशा:काशा यवा दूर्वा उशीराच्छ सकुन्दका:।
गोधूमा ब्राह्मयो मौन्जा दश दर्भा: सबल्वजा:।।



मान्यता है कि घास के इन दस प्रकारों में जो भी घास सुलभ एकत्रित की जा सकती हो इस दिन कर लेनी चाहिये। लेकिन ध्यान रखना चाहिये कि घास को केवल हाथ से ही एकत्रित करना चाहिये और उसकी पत्तियां पूरी की पूरी होनी चाहिये आगे का भाग टूटा हुआ न हो। इस कर्म के लिये सूर्योदय का समय उचित रहता है। उत्तर दिशा की ओर मुख कर बैठना चाहिये और मंत्रोच्चारण करते हुए दाहिने हाथ से एक बार में ही कुश को निकालना चाहिये। इस दौरान निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण किया जाता है-



विरंचिना सहोत्पन्न परमेष्ठिन्निसर्गज।
नुद सर्वाणि पापानि दर्भ स्वस्तिकरो भव।।