मां लक्ष्मी और सरस्वती सहित कई देवियों ने व्रत करके किया था शिव का पूजन


हिंदू पंचायग के अनुसार हर माह कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी यानी 14वें दिन मासिक शिवरात्रि मनाई जाती है। मासिक त्यौळारों में शिवरात्रि के दिन व्रत करने का प्रचलन प्राचीन काल से माना जाता है। हिंदू पुराणों में शिवरात्रि के व्रत का महत्व बताया गया है। शास्त्रों के अनुसार देवी लक्ष्मी, इंद्राणी, सरस्वती, गायत्री, सावित्री, सीता, पार्वती ने भी शिवरात्रि का व्रत करके भगवान शिव का पूजन किया था। भगवान शिव के पूजन के लिए उचित समय प्रदोष काल में होता है। ऐसा माना जाता है कि शिव की अराधना दिन और रात्रि के मिलने के दौरान करना ही शुभ होता है।



मासिक शिवरात्रि का महत्व
हिंदू धर्म में मासिक शिवरात्रि का अपना अलग ही महत्व है। शिव के भक्त जहां साल में एक बार महाशिवरात्रि बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। मासिक शिवरात्रि पर भी भोलेनाथ की आराधना करने की परंपरा है। शिव पुराण के अनुसार इस दिन व्रत और भगवान शिव की आराधना करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस दिन व्रत करने से मुश्किलें दूर होने लगती हैं। कहा जाता है कि कुंवारी कन्याएं मनचाहा वर पाने के लिए यह व्रत करती हैं। इससे विवाह में आ रही रुकावटें भी दूर होती हैं।
व्रत विधि 
हर महीने होने वाले इस पर्व को इस व्रत को महिला और पुरुष दोनों कर सकते हैं। श्रद्धालुओं को शिवरात्रि की रात को जाग कर शिवजी की पूजा करनी चाहिए। मासिक शिवरात्रि वाले दिन सूर्योदय से पहले उठाकर स्नान आदि के बाद किसी मंदिर में जाकर भगवान शिव और उनके परिवार (पार्वती, गणेश, कार्तिक, नंदी) की पूजा करें। पूजा के दौरान शिवलिंग का रुद्राभिषेक जल, शुद्ध घी, दूध, शक्कर, शहद, दही आदि से करें। शिवलिंग पर बेलपत्र, धतूरा और श्रीफल चढ़ाएं। अब आप भगवान शिव की धूप, दीए, फल और फूल आदि से पूजा करें। शिव पूजा करते समय आप शिव पुराण, शिव स्तुति, शिव अष्टक, शिव चालीसा और शिव श्लोक का पाठ करें। इसके बाद शाम के समय फल खा सकते हैं, लेकिन व्रती को अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए। अगले दिन भगवान शिव की पूजा करें और दान आदि करने के बाद अपना व्रत खोलें। कहा जाता है कि मासिक शिवरात्रि के दिन शिव पार्वती की पूजा व्यक्ति को हर तरह के कर्जों से मुक्ति दिलाती है।
प्रदोष काल में व्रत और पूजा करने से होती है मनचाही इच्छापूर्ति
प्रदोष व्रत त्रयोदशी तिथि यानी प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष एवं कृष्ण पक्ष के तेरहवें दिन रखा जाता है। इस दिन भगवान शंकर की पूजा की जाती है। चूंकि यह समय दिन और रात के मिलन का वक्त होता है, ऐसे में यह काफी उत्तम माना जाता है। प्रदोष व्रत का अत्यंत धार्मिक महत्व है और इस दौरान भगवान शंकर की पूजा काफी फलदायी होती है और शुभ फल की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि प्रदोष काल में व्रत एवं पूजा से इच्छापूर्ति भी होती है। 
व्रत के लाभ



  • रविवार के दिन पडऩे वाले प्रदोष व्रत को रवि प्रदोष या भानु वारा प्रदोष कहते हैं। इस दिन व्रत रखने से अच्छी सेहत के साथ लम्बी उम्र का वरदान मिलता है।

  • सोमवार के दिन पडऩे वाला प्रदोष व्रत सोम प्रदोष कहा जाता है। इस दिन व्रत से सकारात्मक विचारों की प्राप्ति होती है और सभी तरह की मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

  • मंगलवार के दिन भौम प्रदोष होता है। इस दिन व्रत रखने से स्वास्थ्य बेहतर होता है, बीमारियों से राहत मिलती है और जीवन में समृद्धि आती है।

  • बुधवार के दिन बुध या सौम्य वारा प्रदोष होता है। इस दिन व्रत से सभी मनोकामनाएं एवं इच्छाएं पूर्ण होती हैं।

  • गुरुवार को गुरु प्रदोष होता है। इस दिन व्रत करने से दुश्मनों पर विजय प्राप्त होती है और पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता है।

  • शुक्रवार को शुक्र या भृगु वारा प्रदोष होता है। इस दिन व्रत करने से जीवन की नकारात्मकताएं खत्म होती हैं और वैवाहिक जीवन आनंदमय होता है।

  • शनिवार को शनि प्रदोष होता है, जो काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन व्रत रखने से संतान प्राप्ति के साथ ही जीवन में सफलता मिलती है। 



व्रत कथा
स्कंद पुराण के अनुसार एक गांव में एक विधवा ब्राह्मणी अपने बच्चे के साथ रहकर भिक्षा से गुजारा करती थी। एक दिन उसे भिक्षा लेकर लौटते समय नदी किनारे एक बालक मिला। वह विदर्भ देश का राजुकमार धर्मगुप्त था। शत्रुओं ने उसके पिता का राज्य हड़प लिया था और पिता की हत्या कर दी थी। उसकी माता की मृत्यु हो चुकी थी। ब्राह्मण महिला ने उसे अपना लिया। एक दिन ऋषि शांडिल्य ने उस ब्राह्मण महिला को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। प्रदोष व्रत के फलस्वरूप राजकुमार धर्मगुप्त का विवाह गंधर्व राज की कन्या से हुआ। जिनकी बदौलत उसने अपना खोया राज्य प्राप्त कर लिया।
व्रत की विधि
शनि प्रदोष व्रत के दिन व्रती को सुबह जल्द उठकर नित्य क्रम आदि से निवृत हो स्नान कर शंकर भगवान का पूजन करना चाहिये। पूरे दिन निराहारी रहकर मन ही मन 'ऊँ नम: शिवाय' का जप करना चाहिए। त्रयोदशी के दिन प्रदोष काल में यानी सूर्यास्त से तीन घड़ी पूर्व, शिवजी का पूजन (शनि प्रदोष व्रत की पूजा शाम 4.30 बजे से लेकर शाम 7.00 बजे के बीच की जाती है) करना चाहिए। शाम को दुबारा स्नान कर स्वच्छ श्वेत वस्त्र धारण कर घर के पूजन स्थल की शुद्धीकरण कर पूजा करें। शिव मंदिर में भी पूजा की जा सकती है।