कैसे हुई थी धृतराष्ट्र गांधारी और कुंती की मृत्यु?


महाभारत युद्ध में कौरवों की हार के बाद युधिष्ठिर राजा बने। इसके बाद धृतराष्ट्र और गांधारी भी पांडवों के साथ ही रहे। कुंती इन दोनों का ध्यान रखती थीं, लेकिन भीम धृतराष्ट्र ताने मारता था। करीब 15 साल तक ऐसे ही चलते रहा। एक दिन धृतराष्ट्र और गांधारी ने वानप्रस्थ यानी वन में तप करने का निश्चय किया और महल के निकल गए। कुंती ने भी इन दोनों के साथ जाना उचित समझा।
नारद ने दिया युधिष्ठिर को इनकी मृत्यु का समाचार
इन तीनों के वन में जाने के करीब 3 साल बाद देवर्षि नारद युधिष्ठिर के पास पहुंचे। युधिष्ठिर ने नारद मुनि का उचित आदर-सत्कार किया। युधिष्ठिर जानते थे कि नारद मुनि को तीनों लोकों की खबर रहती है। इसीलिए उन्होंने धृतराष्ट्र, गांधारी और अपनी माता कुंती के बारे में पूछा कि ये लोग कहां हैं और कैसे हैं?
नारद मुनि ने बताया कि धृतराष्ट्र, गांधारी और कुंती हरिद्वार में रहकर तपस्या कर रहे  थे। एक दिन जब वे गंगा स्नान कर आश्रम आ रहे थे, तभी वन में भयंकर आग लग गई। दुर्बलता के कारण धृतराष्ट्र, गांधारी और कुंती आग से बचने के लिए भाग नहीं सके। तब उन्होंने उसी आग में प्राण त्यागने का विचार किया और वहीं एकाग्रचित्त होकर बैठ गए। इस तरह धृतराष्ट्र, गांधारी और कुंती की मृत्यु हुई।
युधिष्ठिर ने किया श्राद्ध कर्म
धृतराष्ट्र, गांधारी और कुंती की मृत्यु का समाचार सुनने के बाद पांडवों के महल में शोक फैल गया। सभी दुखी थे, तब देवर्षि नारद ने सभी को सांत्वना दीं। युधिष्ठिर ने विधिपूर्वक सभी का श्राद्ध कर्म करवाया और दान-दक्षिणा देकर उनकी आत्मा की शांति के लिए संस्कार किए।