जैन मुनि चार महीने तक एक ही जगह रहकर करेंगे धर्म कल्याण के कार्य

 


चातुर्मास पर्व यानि चार महीने का पर्व जैन धर्म का एक अहम पर्व होता है। इस दौरान एक ही स्थान पर रहकर साधना और पूजा-पाठ किया जाता है। वर्षा ऋतु के चार महीने में चातुर्मास पर्व मनाया जाता है। इस वर्ष जैन चातुर्मास पर्व 16 जुलाई से शुरू हो चुका है। जो आने वाले चार महीने तक चलेंगे। जैन धर्म पूर्णत: अहिंसा पर आधारित है।



जैन धर्म में जीवों के प्रति शून्य हिंसा पर जोर दिया जाता है। जैन धर्म के अनुसार बारिश के मौसम में कई प्रकार के कीड़े, सूक्ष्म जीव जो आंखों से दिखाई नहीं देते वह सर्वाधिक सक्रिय हो जाते हैं। ऐसे में मनुष्य के अधिक चलने-उठने के कारण इन जीवों को नुकसान पहुंच सकता है। अत: इन जीवों को परेशानी ना हो और जैन साधुओं के कम से कम हिंसा हो इसलिए चातुर्मास में चार महीने एक ही जगह रहकर धर्म कल्याण के कार्य किए जाते हैं। इस दौरान जैन साधु किसी एक जगह ठहरकर तप, प्रवचन तथा जिनवाणी के प्रचार-प्रसार को महत्व देते हैं।


चातुर्मास का महत्व


जैन धर्म के अनुयायी वर्ष भर पैदल चलकर भक्तों के बीच अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य का विशेष ज्ञान बांटते हैं। चातुर्मास में ही जैन धर्म का सबसे प्रमुख पर्व पर्युषण पर्व मनाया जाता है। मान्यता है जो जैन अनुयायी वर्ष भर जैन धर्म की विशेष मान्यताओं का पालन नहीं कर पाते वह इन 8 दिनों के पर्युषण पर्व में रात्रि भोजन का त्याग, ब्रह्मचर्य, स्वाध्याय, जप -तप मांगलिक प्रवचनों का लाभ तथा साधु-संतों की सेवा में संलिप्त रह कर जीवन सफल करने की मंगलकामना कर सकते हैं। साथ ही चार महीने तक एक ही स्थान पर रहकर ध्यान लगाने, प्रवचन देने आदि से कई युवाओं का मार्गदर्शन होता है। चातुर्मास खुद को समझने और अन्य प्राणियों को अभयदान देने का अवसर माना जाता है।


दोष होने पर मंत्र जाप करें


एक कालखंड में जिन लोगों की जन्म पत्रिका में केमद्रुम योग कालसर्प योग या मांगलिक दोष है वह शनि और मंगल की बीज मंत्रों का उच्चारण करें। गुरु पूर्णिमा से छठ पूजा तक चार माह में पढ़ते हैं। नाग पंचमी, रक्षाबंधन, कृष्ण जन्म, करवा चौथ, दशहरा, दिवाली, भैया दूज त्योहार भी पड़ते हैं।


स्वस्थ रहने के लिए व्रत


इस काल की शुरुआत में बारिश का मौसम होता है। मौसम में सबसे ज्यादा बदलाव चातुर्मास में होता है। गर्मी से बारिश और बारिश से फिर सर्दी का मौसम चतुर्मास में ही पड़ता है। सूर्य की किरणें सीधी पृथ्वी तक नहीं पहुंच पाती जिसे देवताओं की शैय्या का प्रतीक माना जाता है। शरीर में भोजन पचाने की शक्ति कम हो जाती है। बारिश के कारण हानिकारक बैक्टीरिया भी पैदा हो जाती है। शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने से शरीर आसानी से रोगी हो जाता है। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए व्रत रखे जाते हैं।


पूजन-साधना का महीना


चतुर्मास लगने से विवाह, मुंडन, कर्ण छेदन जैसे मांगलिक कार्य नहीं होंगे। इस काल में पूजन पाठ व्रत उपवास और साधना का विशेष महत्व होता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु चार माह के लिए क्षीरसागर में योग निद्रा पर निवास करते हैं। इस दौरान ब्रह्मांड की सकारात्मक शक्तिों को बल पहुंचाने के लिए व्रत पूजन और अनुष्ठान का भारतीय संस्कृत में अत्याधिक महत्व है। सनातन धर्म में सबसे ज्यादा त्यौहार और उल्लास का समय भी यही है। चतुर्मास के दौरान भगवान विष्णु की पूजा होती है। 


रात में भोजन करने की है मनाही



चातुर्मास में होते हैं कड़े नियम


जैन धर्म अहिंसा प्रधान है। इस धर्म का सारा जोर हिंसा रोकने पर है। वह चाहे किसी भी रूप में, किसी भी तरह की हिंसा क्यों न हो। रात्रि भोजन के त्याग के पीछे अहिंसा और स्वास्थ्य दो प्रमुख कारण हैं। यह वैज्ञानिक तथ्य है कि रात्रि में सूक्ष्म जीव बड़ी मात्रा में फैल जाते हैं। ऐसे में सूर्यास्त के बाद खाना बनाने और खाने से सूक्ष्म जीव भोजन में प्रवेश कर जाते हैं। खाना खाने पर ये सभी जीव पेट में चले जाते हैं। जैन धारणा में इसे हिंसा माना गया है। इसी कारण रात के भोजन को जैन धर्म में निषेध माना गया है।


रात्रि पूर्व भोजन स्वास्थ्य के लिए भी है फायदेमंद


इसका एक कारण पाचन तंत्र से भी जुड़ा है। सूर्यास्त के बाद हमारी पाचन शक्ति मंद पड़ जाती है। इसलिए खाना सूर्यास्त से पहले खाने की परंपरा जैन धर्म के अलावा हिंदू धर्म में भी है। यह भी कहा जाता है कि हमारा पाचन तंत्र कमल के समान होता है। जिसकी तुलना ब्रह्म कमल से की गई है। प्राकृतिक सिद्धांत है कि सूर्य उदय के साथ कमल खिलता है और अस्त होने के साथ बंद हो जाता है। इसी तरह पाचन तंत्र भी सूर्य की रोशनी में खुला रहता है और अस्त होने पर बंद हो जाता है। ऐसे में यदि हम रात में भोजन ग्रहण करें तो बंद कमल के बाहर ही सारा अन्न बिखर जाता है। वह पाचन तंत्र में समा ही नहीं पाता। इसलिए शरीर को भोजन से जो ऊर्जा मिलनी चाहिए, वह नहीं मिलती और भोजन नष्ट हो जाता है।


जैन धर्म में महत्व


चातुर्मास पर्व यानि चार महीने का पर्व जैन धर्म का एक अहम पर्व होता है। इस दौरान एक ही स्थान पर रहकर साधना और पूजा पाठ किया जाता है। वर्षा ऋतु के चार महीने में चातुर्मास पर्व मनाया जाता है। जैन धर्म के अनुसार बारिश के मौसम में कई प्रकार के कीड़े, सूक्ष्म जीव जो आंखों से दिखाई नहीं देते वे सर्वाधिक सक्रिय हो जाते हैं। ऐसे में मनुष्य के अधिक चलने-उठने के कारण इन जीवों को नुकसान पहुंच सकता है। इस दौरान जैन साधु एक जगह रहकर तप और स्वाध्याय करते हैं एवं अहिंसा, सत्य और ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं। चातुर्मास में ही जैन धर्म का सबसे प्रमुख पर्व पर्युषण पर्व मनाया जाता है। मान्यता है कि जो जैन अनुयायी वर्ष भर जैन धर्म की विशेष परंपराओं का पालन नहीं कर पाते वे इन 8 दिनों के पर्युषण पर्व में रात्रि भोजन का त्याग, ब्रह्मचर्य, स्वाध्याय, जप-तप मांगलिक प्रवचनों का लाभ तथा साधु-संतों की सेवा में संलिप्त रह कर जीवन सफल करने की मंगलकामना कर सकते हैं।


जैन धर्म के नियम



  • चातुर्मास में सभी भौतिक सुख-सविधाओं का त्याग कर के संयमित जीवन बीताया जाता है।

  • इन 4 महीनों में सफाई और जीव हत्या से बचते हुए सिर्फ घर पर बना भोजन ही किया जाता है।

  • पंखा, कूलर और अन्य सुख-सुविधाओं के साधनों के साथ ही टीवी और मनोरंजन की चीजों से दूरी बना ली जाती है।

  • इन दिनों में स्वयं के लिए कपड़े और ज्वैलरी नहीं खरीदी जाती।

  • इन 4 महीनों में गुस्सा, ईर्ष्या, अभिमान जैसे भावनात्मक विकारों से बचने की कोशिश की जाती है।

  • एक ही समय भोजन किया जाता है और ज्यादा से ज्यादा मौन रहने की कोशिश की जाती है।

  • हरी सब्जियां इन चार महीनों में हरी सब्जियां और कंदमूल नहीं खाए जाते हैं।

  • पूजन साधना का महीना