जादू-टोना, भूत-प्रेत, अन्य शक्तियों को पलक झपकते खत्म कर देती हैं देवी


गुप्त नवरात्रि की सातवीं महाविद्या का नाम-धूमावती महाविद्या है। एक मात्र धूमावती महाविद्या ही ऐसी साधना है जो किसी मंदिर अथवा घर में नहीं की जाती वरन किसी श्मशान में की जाती है। इनका स्वरूप विधवा तथा अत्यंत रौद्र है। इन्हें अलक्ष्मी भी कहा गया है। ये जीवन में आने वाले किसी भी संकट अथवा जादू-टोना, भूत-प्रेत, अन्य नकारात्मक शक्तियों को पलक झपकते ही खत्म कर देती हैं। मां धूमावती को प्रसन्न करने के लिए मोती की माला या काले हकीक की माला से मंत्र का कम से कम नौ माला जप करना चाहिए। 



जब ये देवी अपने पति को ही खा गईं
पुराणों के अनुसार एक बार मां पार्वती को बहुत तेज भूख लगी होती है किंतु कैलाश पर उस समय कुछ न रहने के कारण वे अपनी क्षुधा शांत करने के लिए भगवान शंकर के पास जाती हैं और उनसे भोजन की मांग करती हैं किंतु उस समय शंकरजी अपनी समाधि में लीन होते हैं। मां पार्वती के बार-बार निवेदन के बाद भी शंकरजी ध्यान से नहीं उठते और वे ध्यानमुद्रा में ही मग्न रहते हैं। मां पार्वती की भूख और तेज हो जाती है और वे भूख से व्याकुल हो उठती हैं, परंतु जब मां पार्वती को खाने की कोई चीन नहीं मिलती है, तब वे श्वास खींचकर शिवजी को ही निगल जाती हैं। भगवान शिव के कंठ में विष होने के कारण मां के शरीर से धुआं निकलने लगता है, उनका स्वरूप श्रृंगारविहीन तथा विकृत हो जाता है तथा मां पार्वती की भूख शांत होती है। तत्पश्चात भगवान शिव माया के द्वारा मां पार्वती के शरीर से बाहर आते हैं और पार्वती के धूम से व्याप्त स्वरूप को देखकर कहते हैं कि अबसे आप इस वेश में भी पूजी जाएंगी। इसी कारण मां पार्वती का नाम 'देवी धूमावतीÓ पड़ा। एक अन्य कथा के अनुसारजब सती ने पिता के यज्ञ में अपनी स्वेच्छा से स्वयं को जलाकर भस्म कर दिया तो उनके जलते हुए शरीर से जो धुआं निकला, उससे धूमावती का जन्म हुआ इसीलिए वे हमेशा उदास रहती हैं। 
यहां देवी को लगता है प्रसाद के रूप में कचौड़ी-समोसे का भोग
मध्यप्रदेश के दतिया जिले में धूमावती माता का यह अपनी तरह का ही अनोखा मंदिर है। यहां सबसे विशेष बात ये है कि मां धूमावती को नमकीन पकवान, जैसे- मंगोड़े, पकौड़ी, कचौड़ी व समोसे आदि का भोग लगाया जाता है। जिनकी दुकानें मंदिर के आसपास ही हैं और लोग प्रसाद के लिए इन चीजों को खरीदते हैं। बाद में भक्तों को इन्हीं का प्रसाद बांटा जाता है। सीतापुर यूपी व नेपाल में भी मां धूमावती के दर्शन होते हैं। मां धूमावती रूप अन्य देवियों की तरह सुहागन और अति लुभावना नहीं, बल्कि डरावना हौर क्रूर है। यह विधवा हैं, किंतु कहा जाता है कि यहां आने वाले भक्तों की हर मुराद मां पूरी करती हैं। इनका पूजन सिर्फ विधवाएं ही कर सकती हैं, लेकिन सुहागिन स्त्रियां पति और पुत्र की दीर्घायु के लिए दूर से प्रार्थना कर सकती हैं। माना जाता है कि पीताम्बरा पीठ की स्थापना एक संत, जिन्हें स्वामीजी महाराज कहा जाता था, ने की थी। स्थानीय किंवदंती के अनुसार पीठ के परिसर में मां धूमावती की स्थापना न करने के लिए अनेक विद्यानों ने स्वामीजी महाराज से आग्रह किया था। तब स्वामी जी ने कहा कि - मां का भयंकर रूप तो दुष्टों के लिए है, भक्तों के प्रति ये अति दयालु हैं। महाविधाओं में उग्र मां धूमावती का स्वरूप विधवा का है और कौआ उनका वाहन है। माता श्वेत मलिन वस्त्र धारण करती है और उनके केश खुले हुए हैं। शनिवार को काले कपड़े मे काले तिल माता को भेंट किये जात हैं। धूमावती साधना तांत्रिक बाधाओं की काट मानी जाती है। पौराणिक ग्रंथों अनुसार ऋषि दुर्वासा, भृगु, परशुराम आदि की मूल शक्ति धूमावती हैं। सृष्टि कलह की देवी होने के कारण इनको कलहप्रिय भी कहा जाता है। चौमासा देवी का प्रमुख समय होता है, जब देवी का पूजा पाठ किया जाता है जयंती पूरे देशभर में धूमधाम के साथ मनाई जाती है जो भक्तों के सभी कष्टों को मुक्त कर देने वाली है। 


दिन में दो बार होते हैं दर्शन
धूमावती माता के दर्शन दिन में दो बार किए जाते हैं। पहला दर्शन सुबह ८ बजे से आरती तक (लगभग आधे घंटे) और दूसरा दर्शन शाम को भी ८ बजे से आरती तक। माता के दर्शन करने के लिए अंचल ही नहीं बल्कि दूसरे प्रांतों से लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। मान्यता है कि माई के दर्शन करने मात्र से ही भक्तों के संकट और विभिन्न बाधाएं दूर हो जाती हैं।


नवरात्रों में दर्शन का विशेष महत्व
वैसे तो माता के दर्शन के लिए हजारों श्रद्धालू रोज आते हैं, लेकिन नवरात्रों के दिन यहां भक्तों का रेला उमड़ पड़ता है। शक्ति की स्वरूपा माता पीताबंरा देवी के दर्शन के साथ भक्त माता धूमावती के भी दर्शन करते हैं। इन दिनों मंदिर में श्रद्धलुओं की लंबी कतारें लग जाती हैं। सुरक्षा की दृष्टि से पुलिस प्रशासन से लेकर जिला प्रशासन के आला अधिकारी यहां डेरा लगाए रहते हैं।


नमकीन का लगा है भोग
धूमावती माई पर सफेद फूलों की माता अर्पण की जाती है, नमकीन का भोग लगाते हैं। नमकीन जैसे-समोसे, कचौरी व मंगौड़े का भोग लगाया जाता है। मां पीताम्बरा पर मोहनधार व पेढ़े का भोग लगाया जाता है।