गंगा स्नान, पूजा-पाठ, पितरों के तर्पण और श्राद्ध का विशेष महत्व


महिलाएं पूजा-पाठ कर अपने पुत्र की लंबी आयु और सेहत की आज के दिन करती हैं कामना
भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को पिठौरी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। उत्तर भारत के कई क्षेत्रों में इसे कुशोत्पाटनम भी कहा जाता है। पिठौरी अमावस्या पर गंगा स्नान, पूजा-पाठ, दान और पितरों के तर्पण और श्राद्ध का विशेष महत्व बताया गया है। इस दिन पितरों को प्रसन्न करने से व्यक्ति के जीवन में सुख-शांति का वास होता है। इसके साथ ही अच्छी शिक्षा और अपार धन की प्राप्ति भी होती है। पिठौरी अमावस्या पर देवी दूर्गा पूजा का विशेष महत्व है। महिलाएं इस दिन पूजा कर अपने पुत्र की लंबी आयु और अच्छे सेहत की कामना करते हैं। इस साल 30 अगस्त को पिठौरी अमावस्या देशभर में मनाई जा रही है।
स्नान, दान और तर्पण के लिये अमावस्या की तिथि का बहुत अधिक महत्व माना जाता है जिस अमावस्या तिथि पर सूर्य ग्रहण होता है उसका भी स्नानादि के लिये विशेष महत्व हो जाता है। लेकिन जब ये तीनों सारे संयोग एक साथ अमावस्या तिथि को हो जायें तो वह बहुत ही पुण्य फलदायी मानी जाती है। इस संयोग में पितरों की आत्मा शांति से लेकर कुंडली में कालसर्प जैसे दोष का निवारण करने के लिये यह बहुत उपयुक्त तिथि हो जाती है। 
देवी पूजा
मां पार्वती की जरूर पूजा करें। आटे से ६४ देवियों की छोटी-छोटी प्रतिमा या पिंड बनाएं। उनका पूजन करें। पौराणिक मान्यताओं की मानें तो माता पार्वती ने भगवान