धन और सुख-समृद्धि की देवी मां लक्ष्मी को समर्पित वरलक्ष्मी व्रत


हिंदू धर्म में वरलक्ष्मी व्रत को बहुत पवित्र व्रत माना जाता है। वरलक्ष्मी पूजा का दिन, धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी को समर्पित दिनों में से एक है। वर लक्ष्मी देवी, स्वयं महालक्ष्मी का ही एक रूप हैं। वरलक्ष्मी देवी का अवतार दूधिया महासागर से हुआ था जिसे क्षीर सागर नाम से जाना जाता है। वर लक्ष्मी का रंग दूधिया महासागर के रंग के रूप में वर्णित किया जाता है और वह रंगीन कपड़े में सजी होती हैं। यह माना जाता है कि देवी वरलक्ष्मी का रूप वरदान देने वाला होता है और वो अपने भक्तों की सभी इच्छाओं को पूरा करती है। इसलिए देवी के इस रूप को 'वर' और 'लक्ष्मी' के रूप में जाना जाता है।



वरलक्ष्मी व्रत श्रावण शुक्ल पक्ष के दौरान एक सप्ताह पूर्व शुक्रवार को मनाया जाता है।ये राखी और श्रवण पूर्णिमा से कुछ ही दिन पहले ही आता है। इस व्रत की अपनी खास महिमा है। इस व्रत को रखने से घर की दरिद्रता खत्म हो जाती है साथ ही परिवार में सुख-संपत्ति बनी रहती है। वेदों, पुराणों एवम शास्त्रों के अनुसार श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की दशमी को वरलक्ष्मी जयंती मनाई जाती है। इस साल वरलक्ष्मी व्रत 24 अगस्त 2018 को है जिसे वरलक्ष्मी जयंती भी कहा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यह व्रत शादीशुदा जोड़ों को संतान प्राप्ति का सुख प्रदान करता है। नारीत्व का व्रत होने के कारण सुहागिन स्त्रियां अति उत्साह से ये व्रत रखती हैं। इस व्रत को करने से व्रती को सुख, सम्पति, वैभव की प्राप्ति होती है। वरलक्ष्मी व्रत को रखने से अष्टलक्ष्मी पूजन के बराबर फल की प्राप्ति होती है। अगर पत्नी के साथ उनके पति भी इस व्रत को रखा जाए तो इसका महत्व कई गुना तक बढ़ जाता है। यह व्रत कर्नाटक तथा तमिलनाडु राज्य में बड़े ही उत्साह से मनाया जाता है।
पूजा की सामग्री
वरलक्ष्मी व्रत पूजा के लिए आवश्यक वस्तुओं को पहले से एकत्र करना चाहिए। इस सूची में दैनिक पूजा वस्तुओं को शामिल नहीं किया गया है लेकिन यह केवल उन वस्तुओं को सूचीबद्ध करता है जो विशेष रूप से वरलक्ष्मी व्रत पूजा के लिए आवश्यक हैं। फूल माला, कुमकुम, हल्दी, चंदन चूर्ण पाउडर, विभूति, शीशा,  कंघी, आम पत्र, फूल, पान के पत्तों, पंचामृत, दही, केला, दूध, पानी, अगरबत्ती, मोली, धूप, कर्पुर, छोटा पूजा घंटी, प्रसाद, तेल दीपक, अक्षत।
पूजा विधि
व्रती को इस दिन प्रात: काल जगना चाहिए, घर की साफ-सफाई कर स्नान-ध्यान से निवृत होकर पूजा स्थल को गंगाजल से पवित्र कर लेना चाहिए। तत्पश्चात ही व्रत का संकल्प करना चाहिए। मां लक्ष्मी की मूर्ति को नए कपड़ों, जेवर और कुमकुम से सजाएं, ऐसा करने के बाद एक पाटे पर गणपति जी की मूर्ति के साथ मां लक्ष्मी की मूर्ति को पूर्व दिशा में स्थित करें और पूजा स्थल पर थोड़ा सा तांदूल फैलाएं। एक कलश में जल भरकर उसे तांदूल पर रखें। तत्पश्चात कलश के चारों तरफ चन्दन लगाएं। कलश के पास पान, सुपारी, सिक्का, आम के पत्ते आदि डालें। तदोपरांत एक नारियल पर चंदन, हल्दी, कुमकुम लगाकर उस कलश पर रखें। एक थाली में लाल वस्त्र, अक्षत, फल, फूल, दूर्वा, दीप, धुप आदि से मां लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए। मां की मूर्ति के समक्ष दीया जलाएं और साथ ही वरलक्ष्मी व्रत की कथा पढ़ें, पूजा समाप्त होने के बाद प्रसाद महिलाओं को बांटें। इस दिन व्रती को निराहार रहना चाहिए। रात्रि काल में आरती-अर्चना के पश्चात फलाहार करना उचित माना जाता है।
वरलक्ष्मी व्रत कथा
पौराणिक कथा अनुसार एक बार मगध राज्य में कुंडी नामक एक नगर था। कथानुसार कुंडी नगर का निर्माण स्वर्ग से हुआ था। इस नगर में एक ब्राह्मणी नारी चारुमति अपने परिवार के साथ रहती थी। चारुमति कर्त्यव्यनिष्ठ नारी थी जो अपने सास, ससुर एवं पति की सेवा और मां लक्ष्मी जी की पूजा-अर्चना कर एक आदर्श नारी का जीवन व्यतीत करती थी। एक रात्रि में चारुमति को मां लक्ष्मी स्वप्न में आकर बोली, चारुमति हर शुक्रवार को मेरे निमित्त मात्र वरलक्ष्मी व्रत को किया करो। इस व्रत के प्रभाव से तुम्हे मनोवांछित फल प्राप्त होगा। अगले सुबह चारुमति ने मां लक्ष्मी द्वारा बताये गए वर लक्ष्मी व्रत को समाज के अन्य नारियों के साथ विधिवत पूजन किया। पूजन के संपन्न होने पर सभी नारियां कलश की परिक्रमा करने लगीं, परिक्रमा करते समय समस्त नारियों के शरीर विभिन्न स्वर्ण आभूषणों से सज गए। उनके घर भी स्वर्ण के बन गए तथा उनके यहां घोड़े, हाथी, गाय आदि पशु भी आ गए। सभी नारियां चारुमति की प्रशंसा करने लगें। क्योंकि चारुमति ने ही उन सबको इस व्रत विधि के बारे में बताई थी। कालांतर में यह कथा भगवान शिव जी ने माता पार्वती को कहा था। इस व्रत को सुनने मात्र से लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।