देवी दुर्गा ने महिषासुर राक्षक का अंत कर देवताओं का किया कल्याण




महालक्ष्मी : महालक्ष्मी मां दुर्गा का ही एक रूप है। प्राचीन काल में महिषासुर नामक राक्षस ने सभी राजाओं को अपने बल से परास्त कर पृथ्वी और पताल पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया था। इसे देखकर देवता घबरा गए, और उन्होंने महिषासुर नामक राक्षस से अपनी रक्षा करने के लिए भगवान विष्णु और शिव जी से प्रार्थना की। दोनों ही भगवानों के शरीर से एक तेज पुंज निकला जिसने महालक्ष्मी का रूप लिया। महालक्ष्मी ने महिषासुर नामक राक्षस का अंत कर देवताओं और दैत्यों को कष्टों से मुक्त किया।
दुर्गा देवी  :  देवी का यह नाम दुर्गा देवी दुर्गम नामक राक्षस का वध करने के कारण पढ़ा था। दुर्गम नामक राक्षस ने पृथ्वी, देवलोक और पताल सभी जगह अपने प्रकोप से हड़कंप मचा रखा था। इस विपत्ति से निपटने के लिए देवी ने दुर्गा का अवतार लिया और दुर्गम का वध कर तीनों लोको को कष्टों से मुक्त किया।
चण्डिका देवी  :  चण्ड और मुण्ड नामक दो राक्षसों ने तीनों लोको पर अपना अधिकार कर लिया। इसे दुखी होकर देवताओं ने देवी से मदद की गुहार लगाई। पृथ्वी और देवलोक को चण्ड-मुण्ड के पापा और कष्टों से मुक्त करने के लिए देवी ने चण्डिका का रूप लिया, और दोनों राक्षसों का विनाश किया।
महाकाली  :  जब विष्णु जी का जन्म हुआ तो उनके चारों तरफ समस्त संसार में पानी ही पानी था। इसके पश्चात उनकी नाभि से एक कमल की उत्पत्ति हुई, जिसमें से ब्रह्मा जी का जन्म हुआ। सोते हुए विष्णु के दोनों कानों में से कुछ मेल भी निकला था। जिस से मधु और कैटभ नामक दो राक्षसों का जन्म हुआ था। इन दोनों राक्षसों ने ब्रह्मा जी को देख लिया और उन्हें भोजन समझ उनकी तरफ दौड़ पड़े। ब्रह्मा जी ने अपने प्राणों की रक्षा के लिए भगवान विष्णु को गुहार लगाई। इसे विष्णु की आंख खुल गई और उनके नेत्रों में वास करने वाली महामाया वहां से लोप हो गई, और भगवान विष्णु व मधु-कैटभ के बीच युद्ध आरंभ हो गया। वह दोनों राक्षस इतने शक्तिशाली थे कि यह युद्ध 5000 वर्षों तक चला। अंत में महामाया ने ही महाकाली का रूप धारण किया और दोनों राक्षसों की बुद्धि को शांत किया। दोनों राक्षसों ने भगवान विष्णु से कहा कि हम तुम्हारे युद्ध कौशल से बहुत प्रसन्न हैं, तुम जो वर चाहो वह मांग सकते हो। भगवान विष्णु ने कहा इस धरती से असुरों का नाश हो जाए। उन दोनों ने तथास्तु कहा और साथ ही उन दोनों देत्यो का भी नाश हो गया।
रक्तदंतिका  :  प्राचीन समय में वैप्रचिति नामक राक्षस के कुकर्म इतने बढ़ गए थे कि पूरे पृथ्वी व देवलोक पर उसका आतंक मचा हुआ था। पृथ्वी को उसके आतंक से मुक्त कराने के लिए देवी ने रक्तदंतिका का रूप लिया और वैप्रचिति समेत अन्य राक्षसों का रक्तपान कर पृथ्वी को उसके पापों से मुक्ति दिलाई। राक्षसों का रक्त पान करने के कारण ही देवी का नाम रक्तदंतिका पड़ा।
भ्रामरी देवी  :  प्राचीन समय में अरुण नाम के एक राक्षस ने देव-पत्नियों के सतीत्व को नष्ट करने का कुप्रयास करना आरंभ कर दिया। अपने सतीत्व को बचाने के लिए देव पत्नियों ने भौरों का रूप धारण कर लिया और देवी दुर्गा की स्तुति की। देव-पत्नियों को अरुण नाम के राक्षस के आतंक से मुक्त करने के लिए दुर्गा मां ने भ्रामरी का रूप धारण किया और अरुण राक्षस सहित उसकी समस्त सेना का नाश कर दिया।
चामुण्डा देवी  :  शुम्भ व निशुम्भ दो राक्षसों ने पृथ्वी और पताल लोक पर विजय प्राप्त कर स्वर्ग लोक पर चढ़ाई आरंभ कर दी। इससे घबराकर देवताओं ने भगवान विष्णु से गुहार लगाई। उनकी प्रार्थना से भगवान विष्णु के शरीर से एक ज्योति प्रकट हुई, जिसने देवी चामुंडा का रूप लिया। देवी का यह रूप बहुत ही सुंदर था।
शुम्भ व निशुम्भ उन पर मोहित हो गए और सुग्रीव नाम के एक दूत को देवी के पास भेजा ताकि उन दोनों में से कोई एक को देवी अपने वर के रूप में चुने। देवी ने कहा कि जो भी उन्हें युद्ध में परास्त करेगा वह उस से विवाह करेंगी। यह सुनकर दोनों ने पहले अपने सेनापति धूम्राक्ष को युद्ध के लिए भेजा जो की अपनी सेना समेत मारा गया। उसके बाद उन्होंने रक्तबीज को देवी से युद्ध के लिए भेजा। जो कि बहुत ही बलशाली राक्षस था, उसके रक्त की जो भी बूंद धरती पर गिरती थी उससे एक नया राक्षस पैदा हो जाता था। इससे निपटने के लिए देवी ने उसके खून को खप्पर में भरकर पीना शुरू कर दिया और इस प्रकार से रक्तबीज का भी अंत हुआ। अंत में शुम्भ-निशुम्भ देवी के हाथों मारे गए।
शाकुम्भरी देवी  :  प्राचीन समय में पृथ्वी पर एक बहुत बड़ी विपदा आ गई थी। पूरे सौ वर्षो में एक बार भी बारिश ना होने के कारण भयंकर सूखा पड़ गया था। जिससे वनस्पति का अंत हो गया था और चारों ओर हाहाकार मच गई थी। इसी विपदा से बचने के लिए ऋषि मुनियों ने देवी की उपासना की। देवी उनकी उपासना से प्रसन्न हुई, और शाकुम्भरी के नाम से पृथ्वी पर स्त्री रूप में अवतार लिया। मां की कृपा से पृथ्वी पर बारिश हुई और वनस्पतियों व जीव-जंतुओं को जीवनदान मिला।
योगमाया :  कंस देवकी और वासुदेव के सभी पुत्रों को मारना चाहता था, और उसने उनके छ :  पुत्रों को मार डाला था। इसके पश्चात सातवें गर्व के रूप में शेषनाग ने बलराम नाम से रोहिणी के गर्भ में स्थानांतरित होकर जन्म लिया। आठवें गर्भ में भगवान श्री कृष्ण प्रकट हुए। जिन्हे वासुदेव जी ने योगमाया के साथ बदल दिया। जब कंस योगमाया को मारने ही वाला था। वह उनके हाथ से निकल कर आकाश में चली गई, और देवी का रूप धारण कर लिया। इन्हीं योगमाया ने कृष्ण के हाथों महाविद्या और योगविद्या बनकर कंस समेत अन्य शक्तिशाली असुरों का संहार किया।