देशभर में भगवान शंकर के ऐसे कई नामचीन मंदिर हैं, जिनके बारे में बताने की किसी को जरूरत नहीं है। वो अपने आप में इतने प्रसिद्ध हैं कि उनकी प्रसिद्धी पर किसी को प्रकाश डालने की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन क्या आपको पता है कि आज भी कई ऐसे भी मंदिर हैं, जिन से जुड़ा इतिहास लोगों से रूबरू नहीं हो पाया है। जी हां, आज हम आपको एक ऐसे ही शिव मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जो प्रसिद्ध तो बहुत है लेकिन इससे जुड़े इतिहास के बारे में आज भी बहुत से लोग नहीं जानते। हम बात कर रहे हैं कि नंदगांव के बारे में। इस जगह से जुड़ी ये मान्यता प्रचलित है कि द्वापर युग में भगवान शिव यहां कई बार ब्रज आए थे। यहां तीन ऐसे मंदिर हैं जो पांच हजार साल से भी ज्यादा पुराने आश्वेश्वर मंदिर के बारे में। ये तीन मंदिर हैं, मथुरा का रंगेश्वर महादेव, वृंदावन का गोपेश्वर महादेव और नंदगांव का आश्वेश्वर महादेव मंदिर।
जानते हैं इन मंदिरों के बारे में
सबसे पहले बात करते हैं नंदगांव के आश्वेश्वर मंदिर की। इसके बारे में कहा जाता है कि जब वसुदेव अपने पुत्र श्रीकृष्ण को नंद के यहां छोड़ गए थे तो भगवान शिव उनके दर्शन करने के लिए यहां पधारे थे, लेकिन योगी के वेश में होने के कारण माता यशोदा भोलेनाथ को पहचान नहीं सकी थीं और उन्होंने कृष्ण के दर्शन कराने से मना कर दिया। मान्यता है कि इसी बात से नाराज होकर भगवान शंकर उसी जगह धूनी रमाकर बैठ गए थे और अंतत: यशोदा को अपने लाल को उन्हें दिखाना ही पड़ा था।
रंगेश्वर मंदिर के बारे में कहा जाता है कि कंस का वध करने के बाद श्रीकृष्ण और उनके भाई बलराम में झगड़ा हो गया। पौराणिक कथाओं के अनुसार तब महादेव यहां पाताल से प्रकट हुए और रंग है, रंग है, रंग है कहते हुए फैसला सुनाया कि कि श्रीकृष्ण ने कंस को छल और बलराम ने बल से मारा है। इसके बारे में किंवदंती है कि जिस जगह भोलेनथ प्रकट हुए थे आज के समय में वहीं रंगेश्वर महादेव मंदिर स्थापित है। बता दें कि यहां मुख्य विग्रह धरातल से ८ फुट नीचे है और इसके दर्शन और पूजन से सभी तरह के कष्ट दूर हो जाते हैं। इसके साथ ही रंगेश्वर महादेव मंदिर में खप्पर और जेहर पूजा का विशेष महत्व है। ये पूजा महाशिवरात्रि के बाद आने वाली अमावस्या को की जाती है, जो नवविवाहिता महिलायें पुत्र की प्राप्ति के लिए करती हैं।
अब बात करते हैं वृंदावन के गोपेश्वर मंदिर की जिसके बारे में मान्यता है एक बार यहां राधा और श्रीकृष्ण महारास कर रहे थे। उन्होंने गोपियों को आदेश दे रखा था कि कोई पुरुष यहां नहीं आना चाहिए, परंतु उसी वक्त भगवान शिव उनसे मिलने आ पहुंचे। लेकिन गोपियों ने श्रीकृष्ण राधा के आदेश का पालन किया और उन्हें बाहर ही रोका और कहा कि आप केवल स्त्री वेश में ही अंदर जा सकते हैं। जिसके बाद महादेव ने गोपी का रूप धरकर वहां प्रवेश किया, परंतु श्रीकृष्ण उन्हें पहचान गए। कहा जाता है कि इसके बाद ही इस मंदिर का नाम गोपेश्वर महादेव मंदिर है।