ब्रह्माजी के एक श्राप के चलते शूद्र योनि में जन्मे नारद मुनि


पौराणिक कथाओं के अनुसार नारद मुनि भगवान ब्रह्मा की गोद से पैदा हुए थे। लेकिन इसके लिए उन्हें अपने पिछले जन्मों में कड़ी तपस्या से गुजरना पड़ा था। कहते हैं पूर्व जन्म में नारद मुनि गंधर्व कुल में पैदा हुए थे और उनका नाम 'उपबर्हण' था। पौराणिक कथाओं के अनुसार उन्हें अपने रूप पर बहुत ही घमंड था। एक बार कुछ अप्सराएं और गंधर्व गीत और नृत्य से भगवान ब्रह्मा की उपासना कर रहे थे। तब उपबर्हण स्त्रियों के साथ श्रृंगार भाव से वहां आया। ये देख ब्रह्मा जी अत्यंत क्रोधित हो उठे और उस उपबर्हण को श्राप दे दिया कि वह 'शूद्र योनि' में जन्म लेगा। ब्रह्मा जी के श्राप से उपबर्हण का जन्म एक शूद्र दासी के पुत्र के रूप में हुआ। दोनों माता और पुत्र सच्चे मन से साधू संतो की सेवा करते। पांच वर्ष की आयु में उसकी मां की मृत्यु हो गई। मां की मृत्यु के बाद उस बालक ने अपना पूरा जीवन ईश्वर की भक्ति में लगाने का संकल्प लिया। कहते हैं एक दिन जब वह बालक एक वृक्ष के नीचे ध्यान में बैठा था तब अचानक उसे भगवान की एक झलक दिखाई पड़ी जो तुरंत ही अदृश्य हो गई। इस घटना ने नन्हें बालक के मन में ईश्वर को जानने और उनके दर्शन करने की इच्छा जाग गई। निरंतर तपस्या करने के बाद एक दिन अचानक आकाशवाणी हुई कि इस जन्म में उस बालक को भगवान के दर्शन नहीं होंगे बल्कि अगले जन्म में वह उनके पार्षद के रूप उन्हें पुन: प्राप्त कर सकेगा। अपने अगले जन्म में यही बालक ब्रह्मा जी के ओरस पुत्र कहलाए और पूरे ब्रह्मांड में नारद मुनि के नाम से प्रसिद्ध हुए। कहते हैं सृष्टि में लगातार खबरों का प्रचार करने वाले नारद मुनि जीवनभर अविवाहित रहे। उनके अविवाहित रहने के पीछे भी एक कथा प्रसिद्ध है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार ब्रह्मा जी ने नारद मुनि को सृष्टि के कामों में उनका हाथ बटाने और विवाह करने के लिए कहा था किन्तु नारद जी ने अपने पिता की आज्ञा का पालन करने से इंकार कर दिया था। ब्रह्मा जी ने उन्हें लाख समझाया लेकिन देवऋषि ने उनकी बात नहीं मानी तब गुस्से में भरे हुए ब्रह्मा जी ने नारद मुनि को जीवनभर अविवाहित रहने का श्राप दे दिया।