भूख से व्याकुल जया और विजया के लिए मां दुर्गा ने काटा अपना सिर


पौराणिक कथा - पौराणिक कथा के अनुसार देवी माँ अपनी दोनों सहचरियों के साथ मन्दाकिनी नदी में स्नान करने के लिए गयी हुई थी। बाद में स्नान करने के बाद माँ को भूख लग गयी जिसकी वजह से उनका रंग काला होता चला गया। इसी समय पर उनकी सहचरियों ने भी माँ से कुछ भोजन माँगा। तभी माँ ने कुछ समय तक प्रतीक्षा करने के लिए कहा पर फिर भी माँ से भोजन की व्यवस्था हुई नहीं, बाद में फिर से उन्होंने माता से भोजन के लिए कहा, फिर से माता ने उन्हें प्रतीक्षा करने के लिए कह दिया। कुछ समय और हुआ और जय और विजया दोनों ने फिर से माता के पास भोजन माँगा और कहा की माँ अपने बच्चों के लिए भूख लगने पर तुरंत ही भोजन का प्रबंध कर लेती है। पर आप है की हमारी उपेक्षा कर रही हो।
अब इतना कहने की देरी थी की माता ने तुरंत ही अपने खडग़ से अपना सर कांट दिया। जब उनका सर कटा तो सर उनके बाएं हाथ में जा कर गिरा। अब उनकी गर्दन से रक्त की तिन धाराएं निकलने लगी। इन में से दो धाराएं उनकी सहचरियों के मुह में गिरने लगी और तीसरी स्वयं के कटे मुह में गिरने लगी। तभी से देवी माँ का नाम छिन्नमस्ता पड़ा और इस नाम से ही जानने लगी। छिन्नमस्तिका मां देवी का मंदिर झारखंड की राजधानी रांची से करीब 80 किलोमीटर दूर रजरप्पा में स्थित है। यहां भक्त बिना सिर वाली देवी मां की पूजा करते हैं और मानते हैं कि मां उन भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी करती है। असम स्थित मां कामाख्या मंदिर सबसे बड़ी शक्ति पीठ है, जबकि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी शक्ति पीठ रजरप्पा स्थित मां छिन्नमस्तिका मंदिर ही है। रजरप्पा के भैरवी-भेड़ा और दामोदर नदी के संगम पर स्थित मां छिन्नमस्तिका मंदिर आस्था की धरोहर है मंदिर की उत्तरी दीवार के साथ रखे एक शिलाखंड पर दक्षिण की ओर रुख किए माता छिन्नमस्तिका का दिव्य रूप अंकित है। मंदिर के निर्माण काल के बारे में पुरातात्विक विशेषज्ञों में मतभेद है। कई विशेषज्ञ का कहना है कि इस मंदिर का निर्माण 6000 वर्ष पहले हुआ था।