हिमाचल प्रदेश के सराहन में भीमाकली मंदिर हिंदुओं का प्रमुख तीर्थ स्थल माना जाता है। 51 शक्तिपीठों में से एक भीमाकली मंदिर पवित्र स्थल है। यह मंदिर रामपुर बुशहर से करीब 30 किलोमीटर दूर सराहन में देवी भीमाकली को समर्पित है। काली माता का प्राचिन मंदिर अपने अंदर सुंदरता समेटे हुए है। इसके साथ ही सराहन शहर की खुबसूरत पहाडिय़ों में अपनी अनुठी शैली से बना यह मंदिर अपने अंदर शांति और सुकून का आभास करवाता है। काली माता का विख्यात और प्राचीन मंदिर करीब 1000 से 2000 वर्ष पुराना मंदिर है।
हिंदू और बौद्ध शैली का मिश्रण है यह मंदिर
भीमाकली का मंदिर हिंदू और बौद्ध शैली का मिश्रण है। प्राचीन मंदिर केवल आरती या विशेष मौको पर ही खुलता है। नया मंदिर 1943 में बनाया गया था। मंदिर परिसर में भैरों और नरसिंह जी को समर्पित दो अन्य मंदिर भी हैं। पहाड़ो की बैकड्राप इस मंदिर की सुंदरता में चार चांद लगा देती है। इस मंदिर को शक्तिपीठों में भी गिना जाता है। जहां पर देवी सती का बायां कान गिर गया था। इस लिहाज से ये मंदिर काफी महत्वपूर्ण बन जाता है।
800 साल पुराना है यह मंदिर
भीमाकाली का मंदिर करीब लगभग 800 साल पहले बनाया गया माना जाता है। यह अपनी अनूठी वास्तुकला और मिश्रण शैली के लिए जाना जाता है। अब यह पुराना मंदिर सुबह और शाम में कर्मकांडों या आरती के समय को छोड़कर जनता के देखने के लिए बंद रहता है। मंदिर परिसर के भीतर एक नया मंदिर 1943 में बनाया गया था। मंदिर में देवी भीमाकली की एक मूर्ति को एक कुंवारी और एक औरत के रूप में चित्रित निहित है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार हिंदू देवता शिव की पत्नी सती, वैवाहिक जीवन के परम सुख और दीर्घायु की देवी का बायां कान इस जगह गिर गया था।
भक्तों को दिन में सिर्फ दो बार दर्शन देती हैं देवी