देवशयनी एकादशी १२ जुलाई से शुरू हो गई है। देवशयनी एकादशी शुरू होने के बाद भगवान विष्णु चार महीनों तक योगनिद्रा में रहते हैं। इसके बाद इन चार महीनों में किसी प्रकार के मांगलिक कार्य नहीं हो सकेंगे। देवशयनी एकादशी में भगवान विष्णु के लिए व्रत रखा जाता है।
इस बार देवशयनी एकादशी पर सबसे बड़ा संयोग यह बना है कि यह शुक्रवार को है जो देवी लक्ष्मी को समर्पित दिन है। भगवान विष्णु शुक्रवार को योगनिद्रा में शेषनाग की शैय्या पर शयन करेंगे और कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी जिसे देवप्रबोधिनी और देवउठानी एकादशी कहते हैं उस दिन निद्रा से जगेंगे जो इस वर्ष 8 नवंबर को है। संयोग की बात यह है कि 8 नवंबर देवप्रबोधिनी एकादशी भी शुक्रवार को है। इसलिए देवशयनी से लेकर देवप्रबोधिनी एकादशी तक शुक्रवार को लक्ष्मी नारायण की पूजा श्रद्धालुओं के लिए सुख-समृद्धिदायक रहेगी।
हरिशयन एकादशी पर सर्वार्थ सिद्धि योग
इस वर्ष हरिशयन यानी देवशयनी एकादशी के दिन सर्वार्थ सिद्धि नामक शुभ योग भी बना है जो दोपहर 3 बजकर 57 मिनट से आरंभ होकर अगले दिन सुबह तक रहेगा। इस योग के कारण इस दिन भगवान विष्णु का पूजन व्रत अत्यंत शुभफलदायी होगा। अगर आप कोई धार्मिक या शुभ कार्य करना चाहते हैं या कोई नया काम शुरू करना चाहते हैं तो इस अवसर पर कर सकते हैं।
हरिशयन एकादशी पर रवि योग
इस एकादशी के अवसर पर सर्वार्थ सिद्धि योग की तरह शुभ रवि योग भी बना है। इस योग के विषय में कहा जाता है कि यह कई अशुभ योगों के बुरे प्रभाव को दूर करने की क्षमता रखता है। इस योग को सूर्य का आशीर्वाद प्राप्त है। इस योग में सभी शुभ काम संपन्न किए जा सकते हैं। इस योग के बारे में कहा जाता है कि इस योग में की गई शल्य चिकित्सा और उपचार भी सफल होता है। इस योग में कर्ज मुक्ति के लिए प्रयास करना भी फलदायक माना गया है। जो लोग कर्ज से परेशान हैं उन्हें इस योग में लक्ष्मी नारायण की पूजा करनी चाहिए।
देवशयनी एकादशी पर परित्याग करें
मान्यता है कि मधुर स्वर के लिए गुड़, दीर्घायु या पुत्र प्राप्ति के लिए तेल, शत्रु नाश के लिए कड़वा तेल, सौभाग्य के लिए मीठा तेल और स्वर्ग की प्राप्ति के लिए पुष्पाद्रि भोगों का त्याग करना श्रेयस्कर माना जाता है। चातुर्मास के दौरान कोई भी मांगलिक कार्य न करें। भूमि पर सोयें, सत्य बोलें, मांस, शहद, चावल, दही, मूली और बैंगन आदि का सेवन भोजन में नहीं करना चाहिए।
आखिर क्यों चार महीने के लिए सो जाते हैं भगवान?
वामन पुराण में अपने बल और पराक्रम से असुरों के राजा बलि ने तीनो लोकों को जीत लिया था। राजा बलि से घबराकर इंद्र देवता ने भगवान विष्णु से मदद मांगने के लिए पहुंचे। देवताओं की याचना पर भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण कर राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंचे। बलि से वामन भगवान ने तीन पग भूमि मांग ली। बलि ने उनको तीन पग भूमि देने का वचन दिया। अब वामन भगवान ने पहले पग में धरती और दूसरे पग में आकाश को नाप लिया। इसके बाद जब तीसरा पग नापने की बारी आयी तो पैर रखने के लिए कुछ भी नहीं बचा था तब राजा बलि ने तीसरा पग उनके सिर पर रखने को कहा। भगवान वामन ने ठीक ऐसा ही किया। भगवान के ऐसा करने से देवताओं की सारी चिंता समाप्त हो गई। भगवान विष्णु राजा बलि के इस दान-धर्म से अत्यंत प्रसन्नन हुए और उन्होंने राजा बलि को वरदान मांगने के लिए कहा । वरदान स्वरुप बलि ने भगवान विष्णु को पाताल में बसने का वर माँगा । जिसकी इच्छा पूर्ण करने के लिए भगवान को पाताल जाना पड़ा। जब भगवान विष्णु के पाताल चले गए तो समस्त देवतागण चिंतित हो गए साथ ही माता लक्ष्मी भी चिंतित हो गयी और माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को वापस लाने के लिए एक गरीब स्त्री का रूप धारण किया और राजा बलि के पास पहुंची । वहां पहुँचकर उन्होने राजा बलि को अपना भाई बनाकर राखी बांध दी और राखी के बदले में भगवान विष्णु को वापस ले जाने का वचन मांग लिया। जब भगवान विष्णु पाताल से विदा ले रहे थे तब उन्होंने राजा बलि को वरदान दिया कि वह आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी से कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तक पाताल लोक में ही वास करेंगे। जिस अवधि में वह पाताल लोक में रहते है उसे योगनिद्रा माना जाता है।