अष्टभुजा धाम मंदिर में होती है बिना सिर वालीं मूर्तियों की पूजा


उत्तरप्रदेश में एक ऐसा मंदिर है, जहां देवी-देवताओं की ज्यादातर मूर्तियों पर सिर ही नहीं हैं। वैसे तो लोग खंडित मूर्तियों की पूजा नहीं करते हैं, लेकिन यहां मूर्तियां 900 सालों से संरक्षित है और इनकी पूजा भी की जाती है। यह मंदिर उत्तरप्रदेश की राजधानी से 170 किमी दूर प्रतापगढ़ के गोंडे गांव में स्थित है। यह मंदिर लगभग 900 साल पुराना है। अष्टभुजा धाम मंदिर की मूर्तियों के सिर औरंगजेब ने अलग करवा दिए थे। शीर्ष खंडित ये मूर्तियां आज भी उसी स्थिति में इस मंदिर में संरक्षित हैं। मुगल शासक औरंगजेब ने 1699 ई. में हिन्दू मंदिरों को तोडऩे का आदेश दिया था। उस समय इसे बचाने के लिए यहां के पुजारी ने मंदिर का मुख्य द्वार मस्जिद के आकार में बनवा दिया था, जिससे भ्रम पैदा हो और यह मंदिर टूटने से बच जाए। मुगल सेना इसके सामने से लगभग पूरी निकल गई थी, लेकिन एक सेनापति की नजर मंदिर में टंगे घंटे पर पड गई। फिर सेनापति ने अपने सैनिकों को मंदिर के अंदर जाने के लिए कहा और यहां स्थापित सभी मूर्तियों के सिर अलग कर दिए। आज भी इस मंदिर की मूर्तियां वैसे ही हाल में देखने को मिलती हैं। मंदिर की दीवारों, नक्काशियों और विभिन्न प्रकार की आकृतियों को देखने के बाद इतिहासकार और पुरातत्वविद इसे 11वीं शताब्दी का बना हुआ मानते हैं। गजेटियर के मुताबिक, इस मंदिर का निर्माण सोमवंशी क्षत्रिय घराने के राजा ने करवाया था। मंदिर के गेट पर बनीं आकृतियां मध्यप्रदेश के प्रसिद्ध खजुराहो मंदिर से काफी मिलती-जुलती हैं। इस मंदिर में आठ हाथों वाली अष्टभुजा देवी की मूर्ति है। गांव वाले बताते हैं कि पहले इस मंदिर में अष्टभुजा देवी की अष्टधातु की प्राचीन मूर्ति थी। 15 साल पहले वह चोरी हो गई। इसके बाद सामूहिक सहयोग से ग्रामीणों ने यहां अष्टभुजा देवी की पत्थर की मूर्ति स्थापित करवाई। इस मंदिर के गेट पर एक विशेष भाषा में कुछ लिखा है। यह कौन-सी भाषा है, यह समझने में कई पुरातत्वविद और इतिहासकार फेल हो चुके हैं।