अपनी सुंदरता और मोहकता से देवासुर संग्राम में असुरों को किया अपने वश में


गुप्त नवरात्रि की तीसरी आद्य महाविद्या त्रिपुर सुंदरी हैं । अनुपम सौंदर्य, भक्तों को अभय प्रदान करने वाली, यौवनयुक्त और तीनों लोकों में विराजमान देवी त्रिपुर सुंदरी कई नामों से ख्यात हैं। इनको ही राज-राजेश्वरी, बाला, ललिता, मीनाक्षी, कामाक्षी, शताक्षी, कामेश्वरी कहा जाता है। स्त्री के सौंदर्य शास्त्र की जितनी भी उपमाएं हैं, वह सभी देवी त्रिपुर सुंदरी से ही आई हैं। देवी और अन्य देवी देवताओं के पूजन में अनिवार्य रूप से षोड्श माताओं की अर्चना होती है। षोड्श माताएं कोई और नहीं वरन् त्रिपुर सुंदरी के रूप में ही एकाकार हैं। सोलह का अंक इनको प्रिय है। वह सोलह कलाओं की साम्राज्ञी हैं। अपनी सुंदरता और मोहकता से इन्होंने देवासुर संग्राम में असुरों को वश में कर लिया था। श्री दुर्गा सप्तशती में शुंभ-निशुम्भ वध में इनका प्रसंग आता है। देवी अपने अप्रतिम सौंदर्य की छटा बिखेरते हुए पर्वत पर विराजमान हैं। असुर मोहित हो जाते हैं। वह शुम्भ और निशुम्भ से कहते हैं कि आपके पास समस्त संपत्ति हैं। निधियां हैं। यदि यह स्त्री रूपी निधि भी आपको मिल जाए तो आप धन्य हो जाएंगे। बारी-बारी से चंड-मुंड देवी के पास पहुंचते हैं। देवी से कहते हैं कि आप शुम्भ और निशुम्भ में से किसी का वरण कर लो। देवी कहती हैं कि मैंने तय किया है कि जो मुझे युद्ध में परास्त कर देगा, मैं उसी का वरण करूंगी। कालांतर में देवी से युद्ध होता है। चंड-मुंड और शुम्भ और निशुम्भ का वध होता है।



अनुपम निधि है सौंदर्य :


सौंदर्य को निधि कहा गया है। सौंदर्य कीउपमा श्री लक्ष्मी से होती है। त्रिपुर सुंदरी कमला ही हैं। भगवती सोलह प्रकार की कलाओं, सोलह प्रकार की मनोकामनाओं और सोलह माताओं की प्रतीक हैं। सौंदर्य का अर्थ केवल रूप नहीं है। चारित्रिक गुण भी सौंदर्य भी इसी श्रेणी में आते हैं। जो हर प्रकार से सुंदर हो, वही त्रिपुरारी है और वही त्रिपुरा है। त्रिपुरा एक कुल की तरह है जैसे त्रिपुर बाला सुंदरी, त्रिपुर भैरवी और त्रिपुरा। त्रिपुरा की आराधना से ही एक राज्य का नाम ही त्रिपुरा पड़ा। कामाख्या मंदिर और त्रिपुर बाला सुंदरी मंदिर ( देवबंद) सहित देश में कई स्थानों पर इनके मंदिर हैं।


देवी मंत्र और जाप विधि :


दश महाविद्या में तीसरी महाविद्या के रूप में देवी त्रिपुर सुंदरी समस्त प्रकार की विपत्तियों को दूर करती हैं। सौंदर्य प्रदान करती हैं। भक्तों को अभय प्रदान करती हैं। गृहस्थों के लिए इनकी सर्वश्रेष्ठ पूजा है। त्रिपुर सुंदरी की पूजा के लिए ऊं श्रीं ऊं या ऊं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नम: की पांच मालाएं करें। यह जप कमलगट्टे की माला से होगा। पहले पांच दिन पांच मालाएं करें। इसके बाद आप एक माला भी कर सकते हैं। शुक्रवार विशेष मंगलकारी है।


त्रिपुर सुंदरी का स्वरूप :


देवी शांत मुद्रा में लेटे हुए सदाशिव के नाभि से निर्गत कमल-आसन पर विराजमान हैं। चतुर्रभुजी हैं। भुजाओं में देवी पाश, अंकुश, धनुष और बाण हैं। देवी के आसन को ब्रह्मा, विष्णु, शिव तथा यम-राज अपने मस्तक पर धारण करते हैं। देवी तीन नेत्रों से युक्त एवं मस्तक पर अर्ध चन्द्र धारण करती हैं।