अलीगढ़ के इतिहास में दर्ज है बाबा बरछी बहादुर की दरगाह
 



कठपुला के पास स्थित बरछी बहादुर की दरगाह पर हिन्दू-मुस्लिम, सिख-ईसाई सभी समुदाय के लोग इबादत करने दूर-दूर से आते हैं। सैकड़ों साल पुरानी इस दरगाह के बारे में मान्यता है कि यहां जो भी चादर चढ़ाकर इबादत करता है उसकी हर मन्नत पूरी होती है। यहां हर रोज सैकड़ों लोग आते हैं। कहा जाता है कि अंग्रेज अफसर जब अलीगढ़ में रेलवे ट्रैक बिछा रहे थे, तो बाबा बरछी बहादुर की दरगाह के पास की कुछ जमीन की जरूरत पड़ी। अनजाने में दरगाह को भी कुछ नुकसान पहुंचा दिया गया। लेकिन जब काम शुरू हुआ तो बड़ी-बड़ी मशीनें और इंजन दरगाह के पास पहुंच कर आगे ही नहीं बढ़ पाते। कई दिनों तक कवायद हुई, लेकिन काम नहीं बना। बात जब पूरे शहर में बात फैली तो बुजुर्गों ने बताया कि दरगाह को नुकसान पहुंचा, बिना काम हो तो यकीनन मंजिल मिलेगी, आखिरकार अंग्रेज अफसरों को दरगाह छोड़कर काम करना पड़ा। दरगाह को छोडऩे के बाद जब काम शुरू हुआ तो रेलवे लाइन धड़ाधड़ बिछती गई और रेल इंजन सरपट दौडऩे लगे। ये बात अलीगढ़ के एतिहासिक दस्तावेजों में दर्ज सत्य घटना है। अजमेर के ख्वाजा गरीब नवाज ने ख्वाजा कुतुबद्दीन बख्तियार काकवी को अपना शागिर्द बनाया था और बाबा बरछी बहादुर काकवी के साथी थे। बाबा बरछी बहादुर का नाम सैयद तहबुर अली था। उनके अनुयायी हजरत जोरार हसन ने सबसे पहले बरछी बहादुर पर उर्स की शुरुआत की थी। बाबा बरछी बहादुर के अलावा हजरत शमशुल आफरीन शाहजमाल की दरगाह भी अलीगढ़ के इतिहास में दर्ज बहुत पुरानी दरगाह है।