अखंड सौभाग्य के लिए महिलाएं रखती हैं हरियाली तीज का व्रत


देश में तीन अगस्त यानी शनिवार को हरियाली तीज का पर्व मनाया जा रहा है। महिलाएं इस व्रत को करके अपने सुखी वैवाहिक जीवन की कामना करती हैं। उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार, झारखंड और राजस्थान में यह पर्व खास तौर पर मनाया जाता है और इन राज्यों से जुड़े लोग अन्य कई जगहों पर रहते हैं जहां इस पर्व को मनाया जाता है। मान्यता के अनुसार इस दिन कई महिलाएं हरे रंग की चूडिय़ां पहनती हैं और यह व्रत सुखी वैवाहिक जीवन की कामना के लिए रखा जाता है। साथ ही कई अविवाहित लड़कियां भी अच्छे पति की कामना के साथ इस व्रत को रखती हैं। श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को श्रावणी तीज या हरियाली तीज के नाम से जाना जाता है। विवाहित महिलाएं भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा करती हैं। इस व्रत को करवाचौथ के व्रत से भी ज्यादा कठिन माना जाता है, क्योंकि इस व्रत को रखने वाली ज्यादातर महिलाएं पूरे दिन बिना पानी की एक बूंद पिए ही रहती हैं। माना जाता है कि इस व्रत को निर्जला ही रखते हैं इस दिन कुछ खाया पिता नहीं जाता। 
हरियाली तीज का पौराणिक महत्व 
पुराणों की मानें तो मां पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कई वर्षों तक कठोर तपस्या की थी। इस कड़ी तपस्या और १०८वें जन्म के बाद मां पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाया। माना जाता है कि श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को ही भगवान शिव ने मां पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार किया था। हरियाली तीज त्योहार को भी भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। तभी से ऐसी मान्यता है कि गौरी शंकर ने इस दिन को सुहागिन महिलाओं के लिए सौभाग्य का दिन होने का वरदान दे दिया। भगवान शिव माता पार्वती का विवाह बहुत ही अड़चनों से भरा हुआ था। माता पार्वती के पिता शिवजी को पसंद नहीं करते थे और वह नहीं चाहते थे कि माता का विवाह उनसे हो, लेकिन माता पार्वती का हठ था कि वह विवाह भोले भंडारी से ही करेंगी। इस विवाह के लिए मां ने घनघोर तपस्या की थी और अपने विवाह के लिए पिता को मनवा कर ही मानी, लेकिन माता यह बात पुर्नजन्म में भूल गई थी कि उन्होंने भगवान शिव को पाने के लिए कितनी घनघोर तपस्या की थी। माता पार्वती को याद दिलाते हुए भगवान शिव बताते हैं कि जब वह हिमालय पर उन्हें वर के रूप में माने के लिए तप कर रही थीं और अन्न-जल त्याग कर रह रही थीं, तब इस तपस्या से भगवान विष्णु प्रसन्न हो गए और उन्होंने उनके पिता जी के पास नारद जी को भेजा था। नारद जी भगवान विष्णु का विवाह प्रस्ताव लेकर तुम्हारे पिता के पास गए थे जिसे उनके पिता ने तुरंत स्वीकार कर लिया। उनके पिता माता पार्वती के तप से बहुत परेशान थे।