ठगोरे गणेश व कुणाल के निवेशकों के ...

दो करोड़ रुपए से अधिक के चेक बाउंस...



जगदीश जोशी 'प्रचण्ड'
इंदौर। शासन लाख चाहे बैंकिंग कारोबार करने के लिए ठोस नियम बना रखे हों, लेकिन रातों-रात करोड़पति बनने व बनाने का दावा करने वाले बाजीगरों ने अपने नियमों से बैंकिंग कारोबार ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी जमा रखा है। मुंबई की उप नगरी खांदेश्वर के कामोठे क्षेत्र से संचालित विराट फ्यूचर कंपनी में काम करने वाले दिग्गज प्रमोटर के स्वार्थ और दगाबाजी के चलते मध्यप्रदेश के मालवा व निमाड़ के निवेशक रोड पर आ गए हैं। आर्थिक नुकसान से जूझ रहे इन निवेशकों की जमा राशि इन दोनों ठगोरों ने जमा करवाई थी। एरोवेरा ज्यूस, गैस डिवाइस सहित अन्य उत्पादन लेने पर २४ माह तक अच्छा लाभांश देने का लालच देकर ठगोरे कुणाल और गणेश ने करोड़ों रुपए का व्यापार किया। जमा राशि के बाद कुछ माह तक रुपया मिला, लेकिन बाद में धीरे-धीरे कंपनी ने पैसा देना बंद कर दिया, क्योंकि कंपनी के प्लान अनुसार कुछ घालमेल था, जिसके चलते कंपनी सीएमडी और इन दोनों नेशनल प्रमोटरों के बीच मतभेद हुए परिणामस्वरूप सैकड़ों निवेशकों का पैसा फंस कर रह गया है।



विराट फ्यूचर कंपनी अपने प्रोडक्ट के सहारे इन दोनों नेशनल प्रमोटरों के माध्यम से व्यापार करती रही है। मध्यप्रदेश सहित देश के अन्य प्रदेशों में भी इन दोनों ठगोरों ने हजारों लोगों को सेमिनार के माध्यम से लालच देकर रुपया जमा करवाया, लेकिन लाभांश के नाम पर इस तिकड़ी ने निवेशकों को जमा राशि भी नहीं लौटाई। मालवा निमाड़ में कई निवेशकों की शिकातय के बाद कंपनी ने लगभग सवा दो करोड़ रुपए के चेक अलग-अलग निवेशकों को जमा राशि अनुसार दिए थे, जिसमें से अधिकांश चेक बाउंस हो गए। इन परिस्थितियों के चलते निवेशक अपने को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक विराट फ्यूचर कंपनी से इन दोनों ठगोरों ने लाखों रुपया कमीशन कमाया। इनके द्वारा प्लान को भी तोड़-मरोड़कर बताया जाता था। कई निवेशकों से इन दोनों लीडरों ने इंवेस्टमेंट का दुगना देने की बात कहकर पैसा जमा करवाया। बड़े-बड़े सेमिनारों में अपनी तरक्की का बखान कर लोगों को लाखों रुपयों का फायदा मिलने का हवाला देते हुए राशि जमा करवाई गई। उसके बाद इन दोनों ने कंपनी छोड़कर दूसरी कंपनी का दामन थाम लिया। कुणाल और गणेश ने भोले-भाले ग्रामीणों से करोड़ों रुपए इक_ा कर हाथ खड़े कर दिए हैं। कंपनी के विशेष कर्ताधर्ताओं में से एक गणेश व कुणाल ने छ:-छ: हजार से लेकर १८-१८ हजार रुपए तक निवेशकों से जमा करवाए। अब निवेशक माथा पीट रहे हैं। 
बढ़ती बेरोजगार के बीच दर्जनों कंपनियां बिना किसी बेस के और आर्थिक क्षमता के बाजार में नए प्लान लेकर आई हैं, जो कि असंवैधानिक हैं। डॉयरेक्ट सेलिंग गाइड लाइनों के विपरीत चलने वाली इन कंपनियों ने प्रतिष्ठित कंपनियों का धंधा चौपट कर दिया है। शासन-प्रशासन को ठेंगा दिखाती निम्न स्तर की इन कंपनियों के प्लान खोखला वायदा तो है ही पर प्रशासनिक व्यवस्था पर भी थप्पड़ है। कंपनियों के अधिकांश संचालक स्थानीय, स्वार्थी, लालची लीडरों के माध्यम से व्यापार का गणित बैठाते हैं। लीडर भी जानता है कि कुछ हुआ भी तो शोर मचेगा और कुछ देर के बाद खामोश पड़ जाएगा, क्योंकि मध्यप्रदेश में महा ठग मजे में है। जेहन में जायज सवाल उठता है कि दर्जनों चिटफंड कंपनियों के संचालकों को भगोड़ा घोषित करने के बावजूद अब और कितने ठग हैं, जो इस वक्त इस तरह की निम्न स्तर की कंपनियों के साथ मिलकर लोगों को लूट रहे हैं। भूलना नहीं चाहिए कि ये लोग पहले ही प्रदेश के गरीब निवेशकों के गुनाहगार हैं। 
कंपनियों और शासन-प्रशासन के आला अफसरानों की मेहरबानी के चलते गरीब, अनपढ़ निवेशक उपभोक्ता बार-बार लूटा जा रहा है। प्रशासनिक व्यवस्था बिल्कुल बद्हाल है और पुलिस के पास संसाधनों की कमी है, लेकिन वक्त अभी भी है कि चौकस हो जाना चाहिए, क्योंकि इन घटिया और निम्न स्तर एवं महाठगराजों की मिलीभगत के सहारे चल रही कंपनियों पर नकेल डालने के लिए। 
'जब घोड़ा दौड़ ही गया, तब तबेले को ताला लगाने का क्या फायदाÓ? कुछ ऐसी स्थिति मध्यप्रदेश सरकार की है। कहीं ऐसा न हो कि एक बार फिर सरकार अंधेरे में रहे और डॉयमण्ड लीडरों का खेल पूरा हो जाए। हालांकि हमाम में सब नंगे हैं, पर इस वक्त सरकार की जवाबदेही जरूरी है। वो तय करे कि वर्तमान में चल रही कंपनियों में इसका स्तर कितना है और कौन सी कंपनियां आर्थिक रूप से सक्षम होते हुए अपने उत्पाद की क्वालिटी को बनाए रखती हैं।



ऐसी शातिर कंपनियों पर लगाम कसने के लिए बना कानून भी दिखावा साबित हो रहा है। इनामी चिट और धन परिचालन स्कीम पाबंदी अधिनियम १९७८ का उल्लंघन करने वाली कंपनी व मनी सरम्यूलेशन कंपनियों के खिलाफ अपराधिक मामला दर्ज करने और दोषी को तीन साल की सजा व पांच हजार रुपये जुर्माने का प्रावधान है। इनामी या अन्य कोई सामग्री प्रकाशित करने वालों पर भी कानूनी प्रावधान और दो साल की सजा है। बहरहाल म.प्र. के केई जिलों से रुपया दुगना करने वाली कंपनियां ग्रामीण अंचलों से करोड़ रुपया लेकर फरार हो चुकी हैं। इनामी चिट धन परिचालन स्कीम पाबंदी १९७८ का उल्लंघन जिला प्रशासन की आंखों के सामने हो रहा है।