इ.करार चौधरी
इंदौर। सफाई में तीन बार नंबर वन बन चुका इंदौर जहरीली हवा वाले शहरों की गिनती में भी आ गया है और साथ में मध्य प्रदेश दिल्ली, बिहार, यूपी, हरियाणा को कड़ी टक्कर देते हुए पांचवा सबसे प्रदूषित राज्य घोषित हो गया है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़े बता रहे हैं कि राज्य का एक्यू आई 396 पर पहुंच गया है, जिसमें इंदौर, देवास, ग्वालियर, सागर और धार्मिक नगरी उज्जैन की हवा खतरनाक हो चुकी है, लेकिन बात हवा पर ही खत्म नहीं होती, पानी और अनाज के भी यही हाल हैं। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश के बावजूद जहरीली खेती नष्ट नहीं हो रही है।
गांव के गांव इस गोरखधंधे में लगे हैं। इंदौर से उज्जैन तक के बीच पडऩे वाले गावों में सरस्वती और खान नदी (नाले) के गन्दे, काले, केमिकल मिले बदबूदार पानी से खेती चल रही है। इन नालों में शहर की गटर और फैक्ट्रियों का केमिकल बहा दिया जाता है, जिसमें मेटल, शीशा जैसे जानलेवा घटक पानी के साथ घुल मिलकर अनाज को जहरीला बना रहे हैं, जिससे कैंसर जैसी बीमारियां बढ़ गई हैं। ये आपके जैनेटिक सिस्टम में भी बदलाव कर रहे हैं। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश के बाद शहरी क्षेत्रों में दिखावे के लिए शासन ने जहरीली खेती नष्ट की थी, मगर ग्रामीण क्षेत्र की तरफ से शासन ने आंखें बंद कर रखी हैं। किसानों का कहना है कि गर्मी के दिनों में बोरिंग बैठ जाते हैं, सो नदी-नाले के पानी से फसल बचाने के लिए ऐसा कर रहे हैं।
किसानों की इस शिकायत पर सिंचाई विभाग इंदौर के कार्यपालन यंत्री एससी अग्रवाल का कहना है कि इस वक्त 58 बांध से 14000 हेक्टेयर में डैम बनाकर किसानों तक पानी पहुंचाया जा रहा है, ताकि गर्मियों के सीजन में खेतों को सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी मिल सके। मगर यह व्यवस्था डेम के 500 मीटर के दायरे तक सीमित है। हर जगह बांध नहीं बन सकते मगर तालाब बनाए जा सकते हैं, कुएं खुदवाए जा सकते हैं, जो जिला पंचायत का काम है। कुआं खुदवाने के लिए खेत में तालाब बनाने के लिए शासन ऋण भी देता है, बावजूद इसके गवर्नमेंट जहरीली फसल को नष्ट भी करवाती है, लेकिन जितना होना चाहिए उतना नहीं हो रहा है, क्योंकि सरकार के पास अमले की कमी है और जो है उसे भी अलग-अलग समय पर ड्यूटी पर लगा दिया जाता है। जिससे निगरानी नहीं हो पा रही। हालांकि किसानों को सरकार ट्रेनिंग देती है।
किसानों को ट्रेनिंग देने वाले
भारतीय कृषि विज्ञान अनुसंधान केंद्र के प्रिंसीपल के सी शर्मा कहते हैं कि हम किसानों को ट्रेनिंग देते हैं मगर कोई फर्क नहीं पड़ता। देखिए जहां पानी नहीं है वहां किसान नाले के पानी से सिंचाई कर रहे हैं और जहां पानी है वहां किटनाशक दवाओं का एक्स्ट्रा डोज देकर जहरीला बना देते हैं। कहने को तो जैविक खेती भी हो रही है मगर वहां भी अंधेर है की जैविक खेती के लिए रजिस्ट्रेशन करवाना होता है अब रजिस्ट्रेशन तो कोई भी करवा लेता है बाद में वह किसान जैविक खेती कर रहा है या नहीं यह देखने कौन जाता है, क्योंकि अगर निगरानी रखने वाले होते तो जैविक खेती की जरूरत ही नहीं पड़ती। जैविक और रासायनिक देखने में एक जैसे ही लगते हैं उनके मुताबिक पानी का शुद्धिकरण ही एकमात्र उपाय है और ऐसा भी नहीं कि हमारे पास टेक्नोलॉजी नहीं है, है मगर सरकार की मंशा नहीं है। वरना जब कोई प्रोजेक्ट सरकार की प्राथमिकता में आता है तो इंदौर देश में नंबर वन साफ शहर हो जाता है। दरअसल किसान से कोई भी सरकार टक्कर नहीं लेना चाहती। 62' वोटर हिंदुस्तान का किसान है, जो सरकार पलट देता है। हालांकि किसान पर कार्यवाही नहीं करते हुए उद्योगों पर लगाम लगाई जा सकती है, कि वह जहरीला पानी नदी-नालों में छोडऩे से पहले खुद का ट्रीटमेंट प्लांट लगाएं और उसमें पानी को साफ करने के बाद ही छोड़ें और ऐसा ना करने पर कड़ा आर्थिक दंड दिया जाए। मगर बात वही है कि इसकी निगरानी कौन करेगा? जो अमला है वह बहुत कम है और जो है भी उसे यहां वहां के कामों में जोत दिया जाता है।
किसी भी तरह की फैक्ट्री या कारखाने लगाने के लिए मध्यप्रदेश प्रदूषण बोर्ड से लाइसेंस लेना होता है। बोर्ड के चीफ केमिस्ट डॉ. डीके बघेल कहते हैं कि इस तरह की अनुमति बड़ी फैक्ट्री वाले लेते हैं, छोटे कारखाने वाले नहीं। नदी-नाले फिलहाल किस स्तर पर हैं, वो ये नहीं बता पाए मगर हर नदी-नाले के जल की जांच करते हैं, लेकिन नदी में प्रवाहित होने वाले केमिकल को रोकने की जिम्मेदारी निगम की बताते हैं। हालांकि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश पर एक कमेटी बनाई गई है, जो कलेक्टर के अधीन है और शहर में वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगाए।