दिल्ली की ऐतिहासिक इमारतों में से एक हुमायूं का मकबरा


दिल्ली की ऐतिहासिक इमारतों में से एक है हुमायूं का मकबरा। विस्तृत क्षेत्र में फैले इस परिसर में मुगल कालीन सभ्यता की झांकी देखने को मिलती है। इस इमारत की बनावट को देखने हमेशा पर्यटको की भीड़ लगी रहती है। 1556 में अचानक जब हुमायूं की मृत्यु हुई तो उनकी विधवा हाजी बेगम जिन्हे हमीदा बानू भी कहा जाता था ने 9 साल के बाद, सन् 1565 में इस मकबरे का निर्माण शुरू करवाया जो 1572 में पूरा हुआ। मुगल शैली का बेहतरीन उदाहरण है, जो इस्लामी वास्तुकला से प्रेरित था। कहते हैं हुमायूं ने अपने निर्वासन के दौरान फारसी स्थापत्य कला के सिद्धांतो का ज्ञान प्राप्त किया था और शायद स्वयं ही इस मकबरे की योजना बनाई थी। इस मकबरे का निर्माण करने के लिए विदेशों से शिल्पकारों को बुलाया गया था। इस जगह पर मुख्य ईमारत (भारत देश में मुगल साम्राज्य की नीव रखने वाले) मुगल बादशाह हुमायूँ के मकबरे की है। इस ईमारत में हुमायूँ की कब्र के अलावा अन्य राज्य के सदस्यों की भी कब्रे शामिल हैं। इसका निर्माण करने हेतु सर्वप्रथम अत्यधिक बलुआ पत्थरों का प्रोयोग किया गया। इसमें जिस चारबाग शैली को निर्मित किया गया, वह भारत में इससे पूर्व नहीं देखी गई। सन. 1993 में युनेस्को ने इस ईमारत को विश्व धरोहर के रूप में घोषित किया। 20 जनवरी सन. 1556 को हुमायूँ की मृत्यु के पश्चात उनके मृत शरीर को दिल्ली में दफना दिया गया, परन्तु सन. 1558 में खंजरबेग द्वारा पंजाब के सरहिंदले जाया गया। सन. 1562 में हुमायूँ की बेगम हमीदा बानो के आदेशानुसार करीब नौ वर्षों के उपरांत सन. 1565 में हुमायूँ के मकबरे का निर्माण कार्य प्रारंभ किया गया। यह निर्माण कार्य हुमायूँ की बेगम हमीदा बानो के निरीक्षण में किया गया।