आज की रात सांता क्लॉज बच्चों के लिए लेकर आते हैं उपहार

ईसा मसीह के जन्म की खुशी में मनाया जाता है क्रिसमस


25 दिसंबर से शुरू होकर क्रिसमस 5 जनवरी तक चलता है, यूरोप में 12 दिनों तक इस फेस्टिवल को मनाया जाता है



क्रिसमस या बडा दिन ईसा मसीह या यीशु के जन्म की खुशी में मनाया जाने वाला पर्व है। यह आज 25 दिसम्बर को है इस दिन लगभग संपूर्ण विश्व में अवकाश रहता है। क्रिसमस से 12 दिन के उत्सव क्रिसमसटाइड की भी शुरुआत होती है। एनो डोमिनी काल प्रणाली के आधार पर यीशु का जन्म, 7 से 2 ई.पू. के बीच हुआ था। 25 दिसम्बर यीशु मसीह के जन्म की कोई ज्ञात वास्तविक जन्म तिथि नहीं हैं और लगता है कि इस तिथि को एक रोमन पर्व या मकर संक्रांति (शीत अयनांत) से संबंध स्थापित करने के आधार पर चुना गया है। आधुनिक क्रिसमस की छुट्टियों में एक दूसरे को उपहार देना, चर्च मे समारोह और विभिन्न सजावट करना शामिल हैं। इस सजावट के प्रदर्शन में क्रिसमस का पेड़, रंग बिरंगी रोशनियाँ, बंडा, जन्म के झांकी और हॉली आदि शामिल हैं। सांता क्लॉज (जिसे क्रिसमस का पिता भी कहा जाता है हालाँकि, दोनों का मूल भिन्न है) क्रिसमस से जुड़ी एक लोकप्रिय पौराणिक परंतु कल्पित शख्सियत है जिसे अक्सर क्रिसमस पर बच्चों के लिए तोहफे लाने के साथ जोड़ा जाता है। क्रिसमस की पूर्व संध्या यानि 24 दिसम्बर को ही जर्मनी तथा कुछ अन्य देशों में इससे जुड़े समारोह शुरू हो जाते हैं। ब्रिटेन और अन्य राधमंडल देशों में क्रिसमस से अगला दिन यानि 26 दिसम्बर बॉक्सिंग डे के रूप में मनाया जाता है। कुछ कैथोलिक देशों में इसे सेंट स्टीफेंस डे या फोस्ट ऑफ सेंट स्टीफेंस भी कहते हैं। आर्मीनियाई अपोस्टोलिक चर्च 6 जनवरी को क्रिसमस मनाता है पुर्वी परंपरागत गिरिजा जो जुलियन कैलेंडर को मानता है वो जुलियन वेर्सिओं के अनुसार 25 दिसम्बर को क्रिसमस मनाता है, जो ज्यादा काम में आने वाले ग्रेगोरियन कैलेंडर में 7 जनवरी का दिन होता है क्योंकि इन दोनों कैलेंडरों में 13 दिनों का अन्तर होता है।


कैसे मनाते हैं क्रिसमस


खासकर, विदेशों में क्रिसमस से पटले ही लोगों और बच्चों की स्कूल, कॉलेज और ऑफिस से छुट्टियां कर दी जाती हैं। पूरा बाजार और लक किल्लस ट्री और लयों से जगमगा उठती है। 24 दिसंबर कोलोगीटाईमनाते हैं और 25 दिसंबर को मरों मेंपर्ट करते हैं, जो कि 12 दिनों तक चलती है। 25 दिसंबर से शुरुवेकर क्रिसमस 5 जनकी तक चलता है। खासकर यूरोप में 12 दिनों तक मनाए जाने वले इस फेस्टिवल को Twelfth Night के नाम से जाना जाता है।


अस्तबल में हआ था जीजस का जन्म


उस वक्त इस शहर पर रोगन का सामाज्य था। जब मरियम गर्भवती थी तो उस समय जनगणना का कार्यक्रम चल रहावा इस वजह से नाजस्य में कोई भी जगह खाली नहीं वी। इस वजह से जीजस काझटका जन्म अस्तबल में हुआal अस्तबल से दूर करवाठे भेड़ करा रहे थे। कटा जाता है कि देवदूतों ने करवाठों से कवाया कि ईश्वर की संतान ने अभी जन्म लिया है, वह एक मुक्तिदाता है। देवदूतों की बात सुनकर करवाठे और शहर के लोगबव्ये को देखने गए। जब उन्होंने बच्चे को देखा तो चकाचौंध बेगए, क्योंकि बच्चे में सूर्य के समान तेज था। धीरे-धीरे वहां भीड़ बढ़ती गई। लोगों का मानना था कि ईश्वर ने मानव कल्याण के लिए अपने पुत्र के पृथ्वी पर आया है।


क्रिसमस ट्री का इतिहास


क्रिसमस ट्री की शुरुआत उत्मी यूरोप में कई हजार साल पहले दुई थी। उस दौरान फेयर नाम के एक पेड़ को सजाकर विंटर फेस्टिवल मनाया जाता थाघरिघरि क्रिसमस ट्रीका चलन हर जगह बढ़ता चला गया और हर कोई इस मौके पर पेड़ घर पर लाने लगा। इसके अलावा एक करानी ये भी है कि जीसस के जन्म के समय बुरी व्यक्त कजने के लिए सभी देवताओं ने सदाबहार तृषको सजाया तब से ही इस पेड को क्रिसमस ट्री के नाम से जाना जाने लगा।


कैसे हुआ था ईसा मसीह का जन्म


ईसाई धर्मश बाइबिल के अनुसार ईसा मसीठ ने माता मरियम की कोख से जन्म लिया था। काजाता है कि ईसा के जन्म से पूर्व माता मरियम अविवाहित थीं। दाऊद राजवंशी यूसफ से उनका विवाह तय हुआ था कि एक रोज़ मरियमके पास वाटूत आये उन्हें कहा कि वे जल्दीगंबनेंगी और उनकी कोख से जन्म लेने वाली संतान इस दुनिया को कष्टों से मुक्ति का मार्ग सुझायेगी। इस मां मरियम ने कहा कि उनके अविवाहित होने के चलते यह कैसे संभव है। तब टूतों ने क्या प्रभुकी मर्जी से सब कुछ संभव है। इसके कुछ दिनों पश्चातटी मरियम और यूसुफ परिणय सूत्र में बंधे और यहूदी राज्य में बेतलेठेग नामक स्थान पर निवास करने लगे। माना जाता है कि इसी जगह एक रात अस्तबल में ईश्वर के पुत्र ईसा ने जन्म लिया।


कौन है सांता निकोलस


क्रिसमस पर बच्चों को इनका इंतजार रहता है। संत निकोलस का जन्म 340 ईस्वी में 6 दिसंबर को मनाया जाता था और इसे लेकर ये मान्यता थी कि 25 दिसंबर की रात को संत निकोलस बच्चों के लिए उधार लेकर के आते हैं। यही संत निकोलस बच्चों के लिए सांता क्लॉजबन गए।का जाता है कि बचपन में ही इनके माता पिता का देवतबेश्या या। बड़े टोने के बाद वह एक पादरी खन गए और उन्हें लोगों की मदद करना काफी पसंद था। कहा जाता है कि वे गरीब बच्चों और लोगों को अर्थरात्रि में इसलिए निपट देते थे ताकि उन्हें कोई देख न पाए।


सीक्रेट सेंटा और उनके मोजे में गिफ्ट की कहानी


प्रचलित कसनियों के अनुसार चौथी शताब्दी में एशिया महार की एक जमठ मावा (अब तु) में सेंट निकोलत नP a एक शख्स रहता था जो बहुत अमीर या लेकिन उनके माता-पिता का देठांत हो चुका था। वे हमेशा मीलों की चुपके से मदद करता वान्हें सीक्रेटनिपट देकर खुश करने की कोशिश करता रहता था। एक दिन निकोलस कोपता चला कि एक मरीख आदमी की तीन बेटियां है, जिनकी शादियों के लिए उसके पास बिल्कुल भी पैतानती है। ये बात जान निकोलस इस शख्स की मदद करने पहुंचे। एक सतवोइस आदमी कीम की छत में लगी चिमनी के पास पहुंचे और वहां से सोने से भरा बैग डाल दिया। उस दौरान इसमीर शख्स ने अपना मोना सुखाने के लिए विशनी में लगा रखा था पूरी दुनिया में क्रिसमस के दिन मोजे में निपट देने यानी सोकेट सेवा बनने का रिवन है। इस मेले में अचानक सोने से मना क्षेत्र उसके घर में मिला ऐसा एक बार नहीं बल्कि तीन बाहुआ। आखिरी बार में आदमी ने निकोलस ने देख लिया। निकोलस ने यह बात किसी को ना बताने के लिए कया लेकिन जल्दी इस बात का शोर बाल हुआ। उस दिन से जब मी किसी को कोई सीट निपट मिलता सभी को तमना कि यह निकोलस ने दिया। धीर-चोर निकोलस की ये करानी पॉपुलर हुई। क्योंकि क्रिसमस के दिन बच्चों को तोटके देने का प्रया रही है। इसीलिए सबसे पटले यूके (K) खासकर इंग्लैंड में निकोलस की करानी को बार बनाया और उन्हें फादर किसमत और ओल्ड मैन क्रिसमस नाम दिया गया। इसके बाद पूरी दुनिया में क्रिसमस के दिन मोजे में मिट देने वानी सीकेट बनने का रिवाज आबढ़ता चला गया।