शिव के क्रोध कालभैरव की उत्पत्ति

जब भैरव ने क्रोध में ब्रह्माजी के पांच मुखों में से एक को काट दिया



कालभैरव जयंती


हिंदू धर्म में सभी देवीदेवताओं का अपना एक अलग और विशेष महत्व है। इन्हीं में से बाबा भैरव की भी बहुत मान्यता है। धार्मिक मान्यतानुसार, बाबा भैरव भगवान शिव का ही एक रूप हैं। मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की आष्टमी को पड़ने वाली आष्टमी भैरव अष्टमी के नाम से जानी जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार मार्गशीर्ष कृष्ष्ण पक्ष अष्टमी के कालभैरव जयंती भैरव बाबा के रूप में अवतार लिया था। इसलिए इस दिन को काल भैरव जयंती के रूप में मनाते हैं। काल भैरव अष्टमी की तिथि आज 19 नवंबर मंगलवार को पड़ रही है। काल का अर्थ होता है मृत्यु, डर और अंत जबकि भैरव का मतलब है भय को हरने वाला। जिससे काल भी डरता है। काल भैरव की पूजा करने से मृत्यु का भय दूर हो जाता है और जीवन में आ रहे कष्टों से भी मुक्ति मिलती है। इस दिन व्रत रखने का खास महत्व माना गया है।


काल भी इनसे खाता है भय


कटते हैं कि भैरव मसाज से काल भी डरता है इसलिए इन्हें काल भैरव कसा गया। इन्हें दिशाओं का रक्षक और काशी का संरक्षक भी कया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन वत रखने से शुओं का नाश हो जाता है। काल भैरव की पूजा से भया का नाश होता है और इन्हीं में त्रिशक्ति समाहित हैं। यह कई रूपों में विराजमान हैं बटुक भैरव और काल भैरव के नाम से पजे जाते हैं। इन्हें रुद, कोच मत कपाली, भीषण और संटमक मी का जाता है। मैरवको मैरवनाय भी कहा जाता है और नाव सम्प्रदाय में इनकी पूजा का विशेष महत्व है।


मृत्यु के समान कष्ट होते हैं समाप्त


भैरव आराधना से सबसे मुक्ति संकट, कोर्ट-कचहरी के मुकदमों में विजय प्राप्त होती है। इनकी पूजा से मनुष्य भयमुक्त होता है और साठस का संचार होता है। विशेषकर शनि, राहु केतु औरमंगल जैसे मारकेश पटों के कोप से पीडति लोगों को इसदिन मैव साधाना खासतौर पर करनी चाटिया भैरव के जप पाठ और तन अनुष्ठान से मृत्युतुल्यकार भी समाप्त से आते हैं।


भैरव की सवारी होता है काला कुत्ता


इस दिन उपवास रखना भी शुभ फलदायी होता है। मध्यरात्रि में धूप, दीप, गंध, काले तिल, उड़द, सरसों तेल आदि से पूजा कर मैरव आरती करनी चाहिए। इस दिन व्रत रखने के साथ-साथ रात्रि जागरण का भी बहुत अधिक महत्व है। धार्मिक मान्यतानुसार, मैरव की सवारी काला कुत्ता होता है। इसलिए वत समाप्त होने पर सबसे पठले काले कुत्ते को भोग लगाना चाहिए। यह भी मान्यता है कि इस दिन कतेको भोजन करवाने से मैरव बाबा प्रसन्न होते हैं।


व्रत की विधि


> इस दिन वत रखने वाले लोगों को सुबठ सुबह स्नान कर सबसे पहले पितरों का श्राद्ध और तप करना चाहिए। पिन काल भैरव की पूजा-अर्चना करें।


> पूरे दिन उपवास रखकर रात के समय धूप, दीप, काले तिल, उड़द, सरसों के तेल का दीपक जलाकर भगवान काल भैरव की पूजा करें।


> काल भैरव का वाहन कता होता है। इसलिए वत रखने वालों को इस दिन कुत्ते को भोजन जान कराना चाटिए।


मंत्र


अतिकर मला काय कल्पान्त दानोपम्, मैरव नमस्तुभ्यां अनुज्ञा दातुमर्हसि!!


शुभ मुहूर्त


काल भैरव अष्टमी की शुरुआत शाम 3बजकर 35 मिनट पर बेजाएगी। "काल भैरव अष्टमीका समापन 20 नवंबर दोपहर 1 बजकर 41 मिनट पर होगा।


नष्ट हो जाते हैं पाप


मैरवाष्टमी के दिन व्रत और पूजा वासना करने से शाओं और नकारात्मक शक्तियों का नाश बेजाता है। इस दिन मैरव बाबा की विशेष पूजा अर्चना करने से सभी महके पापभी समाप्त होते है। इस दिन श्री कालभैरव जी का दर्शन-पूजन शुभ फल देने वाला बेता है। काल भैरव महाराज की पूजा और उपासना से भक्त के सभी संकट दूर हो जाते हैं। काल भैरव की साधना को बतुत कठिन भी माना गया है।


पौराणिक कथा


शिव ने लिया काल भैरव का रूप


एक बार की बात है, ब्रह्मा विष्णु, महेश इन तीनों में श्रेष्ठता की लड़ाई चली। इस बात पर बहस बढ़ गई तो सभी देवताओं को बुलाकर बैठक की गई। सबसे यही पूछा गया कि श्रेष्ठ कौन है। सभी ने अपने अपने विचार व्यक्त किए और उत्तर खोजा लेकिन उस बात का समर्थन शिवजी और विष्णु ने तो किया परन्तु ब्रह्माजी ने शिवजी को अपशब्द कह दिए। इस बात पर शिवजी को क्रोध आ गया और शिवजी ने अपना अपमान समझा। शिवजी ने उस क्रोध में अपने रूप से भैरव को जन्म दिया। इस भैरव अवतार का वाहन काला कुत्ता है। इनके एक हाथ में छड़ी है इस अवतार को महाकालेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। इसलिए ही इन्हें दंडाधिपति कहा गया है। शिवजी के इस रूप को देख कर सभी देवता घबरा गए। भैरव ने क्रोध में ब्रह्मा जी के पांच मुखों में से एक मुख को काट दिया। तब से ब्रह्मा के पास चार मुख है। इस प्रकार ब्रह्माजी के सर को काटने के कारण भैरव जी पर ब्रह्महत्या का पाप आ गया। ब्रह्माजी ने भैरव बाबा से माफी मांगी तब जाकर शिवजी अपने असली रूप में आए। भैरव बाबा को उनके पापों के कारण दंड मिला इसीलिए भैरव को कई दिनों तक भिखारी की तरह रहना पड़ा। इस प्रकार कई वर्षों बाद वाराणसी में इनका दंड समाप्त होता है। इसका एक नाम दंडपाणी पड़ा था। इस प्रकार भैरव जयंती को पाप का दंड मिलने वाला दिवस भी माना जाता है।