सत्तर साल से अंधेरे में डूबा है आदिवासियों का बेलाटोला गांव

भोपाल। बालाघाट जिले का आदिवासी बाहुल्य बेलाटोला गांव आजादी के सत्तर साल बाद भी बिजली की रोशनी के लिए मोहताज बना हुआ है। यही नहीं इस गांव में मूलभूत सुविधाएं भी आज तक नहीं मिल सकी है। खास बात यह ळै कि यह पूरा ही गांव बैगा आदिवासियों का है। इस गांव के यह हाल तक हैं जबकि बीते डेढ़ दशक तक प्रदेश में सत्तारूढ़ रही भाजपा की सरकार आदिवासियों के साथ ही ग्रामीण विकास के लंबे-लंबे दावे करती रही। इस गांव की हालत इससे इससे ही समझी जा सकती है कि यहां पानी और सडक़ जैसी बुनियादी सुविधाएं भी नहीं पहुंच सकी हैं। इस गांव में अगर कोई बीमार पड़ता है तो उसे १५ किलोमीटर के जंगली रास्ते से अस्पताल ले जाना पड़ता है। आदिवासी विकास की तमाम योजनाएं बनीं, लेकिन बैगा आदिवासियों का गांव बेलटोला में किसी योजना का लाभ नहीं मिला है। यहां न तो सडक़ बन पाई है और ना ही पीने के पानी का इंतजाम है। पहाड़ से गिरने वाले झिरिया के पानी पर ही गांव वाले पूरी तरह से निर्भर रहना उनकी मजबूरी है।
जानकारी के अनुसार बैहर तहसील से लगभग ३२ किमी दूर देवगांव पंचायत क्षेत्र का गांव बेलटोला में ६५ घरों की बस्ती है। जहां पर लगभग २९० परिवार रहते हैं। जरूरत पडऩे पर १५ किमी का जंगली रास्ता तय कर ग्राम मंडई पहुंचते हैं। गांव के आदिवासी सुद्दूसिंह मेरावी, गणेश सिंह, सुखीराम गोंड, रामबाई ने बताया गांव में यदि किसी का स्वास्थ्य खराब हो जाए तो गांव वाले उसे खटिया या कुर्सी में बिठाकर जंगल के रास्ते ग्राम मंडई ले जाते हैं। यहां पर रहने वाले बैगा आदिवासियों को सरकारी योजनाओं का भी कोई लाभ नहीं मिल रहा है। इतना ही नहीं, ये गांव विकास से कोषों दूर है। कुछ साल पहले गोबर गैस योजना के तहत गांव में गोबर से गैस और बिजली बनाने के लिए प्लांट लगाए गए थे, लेकिन ये भी अब तक अधूरे हैं। ग्रामीणों का कहना रहा इस गांव में आज तक कोई सरकारी अमला नहीं पहुंचा है। किसी भी प्रकार की जानकारी देने के लिए सूचना देकर उन्हें १५ किमी दूर ग्राम मंडई बुलाया जाता है। गांव में व्याप्त अव्यवस्था के चलते कोई भी सरकारी मुलाजिम नहीं पहुंच पाता है।