संतान की लंबी उम्र के लिए रखा जाता है अहोई अष्टमी व्रत

कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन अहोई अष्टमी का व्रत होता है। यह व्रत के दिन है। कार्तिक मास की आठवीं तिथि को पडऩे के कारण इसे अहोई आठे भी कहा जाता है। अहोई अष्टमी का व्रत करवाचौथ के चार दिन बाद और दीपावली से ८ दिन पहले होता है।



महिलाएं इस खास दिन पर अहोई माता का व्रत करती है उनका विधिपूर्वक पूजा करती है। यह व्रत खासतौर पर संतान के खुशहाल और लंबे जीवन के लिए रखा जाता है। मान्यता है इस व्रत को करने से संतान के जीवन में संकटों और कष्टों से रक्षा होती है। बता दें कि जिन लोगों को संतान प्राप्ति नहीं हो पा रही उनके लिए भी यह व्रत विशेष है। इस दिन विशेष उपाय करने से संतान की उन्नति और कल्याण भी होता है। जिनकी संतान दीर्घायु न होती हो, या गर्भ में ही नष्ट हो जाती हो, उनके लिए भी ये व्रत शुभकारी होता है। अहोई अष्टमी का व्रत महिलाओं के लिए रखना जरूरी होता है। अपनी संतान की खुशहाल जीवन के लिए महिलाएं अष्टमी तिथि के दिन निर्जला व्रत रखती हैं। इस दिन शाम के समय अहोई माता की पूजा की जाती है। फिर रात के समय तारे देखकर अध्र्य देती हैं और फिर उनकी आरती करती हैं इसके बाद वो संतान के हाथों जल ग्रहण करने अपना व्रत तोड़ती हैं।
ऐसे करें अहोई माता की पूजा
सबसे पहले सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करें और स्वच्छ कपड़े पहनें। इसके बाद घर के मंदिर की दीवार पर गेरू और चावल से अहोई माता यानी मां पार्वती और स्याहु व उसके सात पुत्रों का चित्र बनाएं। चाहे तो आप पूजा के लिए बाजार में मिलने वाले पोस्टर का इस्तेमाल भी कर सकती है। बाजार से एक नया करवां लाएं और उसमें पानी भरकर रखें और उस पर हल्दी से स्वातिस्तक बनाएं। अब करवे के ढक्कन पर सिंघाड़े रखें। अब घर में बाकी महिलाओं के साथ मिलकर अहोई माता का ध्यान करें और व्रत कथा सुने। अब रात के वक्त तारों को जल से अध्र्य देकर अपना उपवास तोड़ें।