हिंदू पुराणों में ऋषि दुर्वासा के बारे में काफी कुछ लिखा गया है। शास्त्रों में उनकी कथाएं लिखी हैं, कहा जाता है कि दुर्वासा ऋषि का क्रोध अत्यंत भयानक था कि स्वर्ग में रहने वाले देवता भी उनसे काफी घबराते थे। उनके तेज से सब काफी भयभीत रहते थे, होते भी क्यों नहीं उनके शाप का कोप कोई झेलना नहीं चाहता था।
दुर्वासा ऋषि का नाम पुराणों में सर्वश्रेष्ठ ऋषियों में लिया जाता है। मान्यता है कि उन्होंने एक नहीं बल्कि तीन युगों तक मानव कल्याण की शिक्षा दी है। उनको अपार शक्ति और ज्ञानी बताया जाता है, बस वह स्वभाव से काफी क्रोधी थे। उनके गुस्से की तुलना भगवान शिव से की जाती है। शिवजी की तरह अगर एकबार दुर्वासा ऋषि को क्रोध आ गया तो उन्हें शांत करना कठिन था। इस वजह से उनको प्रसन्न करना भी मुश्किल कार्य था। पुराणों में उन्हें शिव का ही अंश अर्थात शिव का ही पुत्र बताया गया है। मान्यता है कि शिव के पुत्र होने के चलते ही वह उनके समान ही क्रोधित हो जाते थे। कहा जाता है कि शंकर भगवान का क्रोध शांत करना फिर भी सरल था, लेकिन ऋषि दुर्वासा के क्रोध पर विजय प्राप्त करना दुर्लभ था। एकबार वह क्रोधित हो गए तो शाप मिलना निश्चित था।
जन्मकथा
दुर्वासा ऋषि के जन्म से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित हैं। ब्रह्मानंद पुराण के 44वें अध्याय के अनुसार, शिव और ब्रह्म के मध्य झगड़ा हुआ, शिवजी अत्यंत क्रोध में आ जाते हैं। शिव का क्रोधित रूप देखकर सभी देवी-देवताओं में डर बैठ जाता है, सब अपने को बचाने के लिए इधर-उधर छिपने का प्रयास करते हैं। बाद में गलती महससूस होने पर शिवजी ने अपने गुस्से पर काबू करने की एक युक्ति निकाली और उन्होंने निश्चय किया कि अपने गुस्से का अंश ऋषि अत्री की पत्नी अनसुइया के अंदर संचित कर देंगे। फलस्वरूप इस अंश से देवी अनूसुइया ने एक पुत्र को जन्म दिया था, यह पुत्र ऋषि दुर्वासा ही थे। शिव के गुस्से का अंश होने की वजह से ऋषि दुर्वासा भी शिवजी के समान काफी गुस्सैल स्वभाव के थे।
ऋषि दुर्वासा के क्रोध से घबराते थे देवता