पांच मंदिरों को एक निहायत ही खूबसूरत श्रृंखला है बाड़मेर। इसे किराडू माँदर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर के रहस्यमयी होने के साथ ही एक और बात काफी प्रसद्धि है और वह है इस मंदिर की खूबसूरत नक्काशी। यह इतनी शानदार है कि इसे राजस्थान का खजुराहो भी कहा जाता है। लेकिन इस मंदिर में अगर कोई भी शाम के बाद स्का तो कभी लौटकर नहीं आया। कहा जाता एक बार एक साधु अपने शिष्यों के साथ इस शहर में आए। कुछ दिन रहने के बाद साधु देश भ्रमण पर निकले। इसी दौरान अचानक ही उनके शिष्य बीमार पड़ गए, लेकिन गांव के लोगों ने उनकी देखभाल नहीं की। लेकिन उसी गांव में एक कुम्हारिन थौ। जिसने उन शिष्यों की देखभाल की थी। ऐसे में जब साधु वापस पहुंचे और अपने शिष्यों को इस हालत में देखा तो उन्हें काफी दुःख हुआ और उन्होंने वहां के लोगों को श्राप दिया कि जहां मानवता नहीं है वहां लोगों को भी नहीं रहना चाहिए। उनके श्राप देते ही सभी पाषाण के हो गए। लेकिन साधु ने उस कुम्हारिन को कहा कि वह शाम बलने से पहले ही वहां से चली जाए। साथ ही जब जाए तो कुछ भी हो जाए पीछे मुड़कर न देखे अन्यथा वह भी पाषाण को बन जाएगी। लेकिन कुम्हारिल जब जाने लगी तो उसने साधु को परखने के लिए पीछे मुड़ कर देखा तो उसी समय वह भी पाषाण की बन गई। कहा जाता है कि जो भी वहां शाम में रुकता है, वह पाषाण बन जाता है। यही कारण है कि वहां जाने वाला हर व्यक्ति शाम बलने से पहले ही वहां से बाहर निकल जाता है।
शाम के बाद कोई भी इस मंदिर में गया तो उसे हो जाती है अज्ञात बीमारी
कानपुर से तकरीबन 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह एक गुप्तकालीन मंदिर है। कहते हैं कि इस मंदिर का निर्माण अमावस की रात को किया गया था। इसे भूतों वाला मंदिर इसलिए भी कहते हैं क्योंकि इस मंदिर के अंदर किसी भी भगवान की कोई भी मूर्ति नहीं है। कहा जाता है कि इस मौदर में मूर्तियां थीं और उनकी विधि-विधान से पूजा भी की जाती थी। लेकिन मुगलों के शासन में यहां स्थापित अष्टधातुओं की मूर्तियां चोरी हो गई। कहा जाता है कि तब से यह मंदिर खाली है और यहां से आने-जाने वाले हर व्यक्ति को अजीब सी आवाजें सुनाई देती हैं। आसपास के लोग कहते हैं रात में भूतों की पूजा करने की आवाजें साफ सुनाई देती हैं। यहां पर भूत बही तो धूमधाम से पूजा करते हैं। इन यो हैं। यहां पर भूत बड़ी ही धूमधाम से पूजा करते हैं। यह भी कहा जाता है कि यदि शाम के बाद कोई भी इस मंदिर में गया तो उसे अज्ञात बीमारी हो जाती है और वह कुछ भी बताने की स्थिति में नहीं होता। बता दें कि मंदिर में शाम 7 बजे के बाद जाने की सख्त मनाही है।