जनता जनार्दन से दुव्र्यवहार, केपी सिंह का घटता जनाधार

शिवपुरी। पिछोर से लगातार छठवीं बार विधायक बने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह कैंप के दबंग विधयाक केपी सिंह 'कक्काजू' की दबंगई उनके अपने क्षेत्र और कांगे्रस में लगातार घटती जा रही है। कमलनाथ सरकार में मंत्री बनने से चूके कक्काजू जब-तब ताकत दिखाने की कोशिश करते हैं, लेकिन उनकी पार्टी और सरकार पर इसका असर नहीं हो रहा है। पिछले दिनों भाजपा द्वारा सरकार गिराने की अटकलों के बीच उन्होंने चार-पांच बार के पुराने विधायकों के एक साथ होने का दम दिखाया था, बावजूद इसके उन्हें तवज्जो नहीं मिली। आलम यह है कि अपने विधायक को मंत्री देखने की इच्छा रखने वाली उनके क्षेत्र की जनता का ही उनसे मोहभंग होता जा रहा है। 


 


शिवपुरी जिले में कांगे्रस के ताकतवर नेता और किलेदार की हैसियत रखने वाले केपी सिंह १९९३ से लगातार जीतते आ रहे हैं। २००३ में उमा भारती लहर में उन्होंने सुश्री भारती के भाई स्वामी लोधी को इस लोधी बहुल सीट से १६ हजार से अधिक मतों से परास्त किया था। लेकिन इसके बाद उनकी छवि लगातार गिरती जा रही है। पंद्रह साल की भाजपा सरकार के दौरान हुए तीन चुनाव में वे जीते जरूर, किंतु उनके जीत का अंतर लगातार घटता गया है। जनाधार खोते इस बुजुर्ग नेता ने पिछला विधानसभा चुनाव भाजपा के बाहरी उम्मीदवार प्रीतम सिंह लोधी से मात्र २६-७५ वोटों से जीता था। इसके बावजूद मंत्री बनने की उनकी हसरतें परवान चढ़ती गईं। 
दिग्विजय सरकार के दौरान १९९८-२००३ के बीच स्वतंत्री प्रभार वाले पशुपालन राज्यमंत्री और फिर ग्रामोद्योग मंत्री रहे कक्काजू इस बार दिसंबर में बनी कमलनाथ सरकार में मंत्री बनने की उम्मीद पाले हुए थे। क्षेत्र में उनके पोस्टर-बैनर तक लग गए थे, लेकिन उन्हें शपथ नहीं दिलाई गई। इसके बाद कक्काजू ने अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए। उन्होंने खुलेआम प्रदेशाध्यक्ष और मुख्यमंत्री कमलनाथ की कैबिनेट सहयोगियों के चयन पर सवाल उठाए थे। उनका कहना था कि दूसरी बार जीते २२ विधायक मंत्री बना दिए गए, किंतु चार से पांच बार की जीत वालों को मौका नहीं दिया गया। कांगे्रस में मंत्रिमंडल को लेकर चल रहे अंतर्विरोध में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। ज्योतिरादित्य सिंधिया कैंप के विधायकों द्वारा अपनी ही पार्टी की सरकार के खिलाफ अंदरखाने में की जानी वाली मोर्चाबंदी मेें केपी सिंह भी अप्रत्यक्ष योगदान देते हैं। उन्होंने हाल ही में मुख्यमंत्री कमल नाथ के उम्रदराज होने का हवाला देते हुए उन्हें मुख्यमंत्री या प्रदेशाध्यक्ष में से एक पद छोडऩे की सलाह दे दी थी। 
क्षेत्र में घट रहा है तेजी से वर्चस्व
कभी पिछोर सहित शिवपुरी जिले में केपी सिंह का दबदबा चलता था। दिग्विजय सिंह शासनकाल में वे जो चाहते थे, वही होता था। भाजपा सरकार के दौरान कक्काजू का प्रभाव घटा जरूर, लेकिन खत्म नहीं हो पाया था। अब कांगे्रस की सरकार बनने के बाद उनका वजन पिछोर में ही तेजी से कम होता दिख रहा है। केपी सिंह की सल्तनत यहां पत्थर कारोबार और खदानों के कारोबार से लेकर प्रशासन तक चलती थी। अब आलम यह है कि उनकी जीत का अंतर ही घटता जा रहा है। बीते चुनाव में भाजपा के प्रीतम लोधी से बमुश्किल जीत हासिल करने वाले कक्काजू ने २०१३ के चुनाव में प्रीतम लोधी को ही ७११३ वोटों से हराया था। इसके पहले २००८ के चुनाव में उन्होंने भाजपा की लहर में भैया साहब लोधी को २६ हजार से अधिक मतों से पटखनी दी थी। उमा लहर में जब कांगे्रस कई इलाकों में साफ हो गई थी, तब भी केपी सिंह उमा भारती के भाई स्वामी लोधी को अच्छे खाते मतों के अंतर से हराने में कामयाब हुए। इतने बढिय़ा राजनीतिक ग्राफ वाले कक्काजू २०१८ में सिर्फ २६७५ वोट से जीत सके, जिसके कारण उनके समर्थकों की संख्या भी अब घटने लगी है।