नागौर। राजस्थान का यह इलाका गंगा-जमुनी तहजीब के कारण मशहूर है। यहां के एक किसान ने भी इलाके का नाम रोशन किया है। आबोहवा और पक्षियों की रखवाली इस तरह ेस कर रहा है कि औरों के लिए मिसाल बन गया है।
हिम्मतराम भाबू को वन रक्षक, वन प्रहरी, वन विस्तारक सहित राजीव गांधी पर्यावरण संरक्षण पुरस्कार भी मिल चुका है। खेतों में कीटनाशक नहीं डालते हैं। दूसरों को भी मना करते हैं, ताकि पक्षियों की जान नहीं जाए। अपने खेतों के आसपास ढाई सौ जगह पक्षियों के लिए दाना-पानी का इंतजाम कर रखा है। ३०० से ज्यादा मोर का बसेरा हिम्मतराम के खेत ही हैं। दूसरे पक्षियों की तो गिनती ही नहीं है। इन्हें हाथ से दाना डालते हैं। हिरण, मोर और चिंकारा के शिकार के खिलाफ भी मोर्चा खोल रखा है। २८ मुकदमे लड़े हैं, १६ को जेल कराई है। १५०० चिंकारा और करीब ८०० घायल मोर का इलाज करा चुके हैं। इन्हें जंगल तक भी छुड़वा देते हैं। खेती के नए तरीके और आबोहवा की हिफाजत के तरीके भी लोगों को समझाते रहते हैं। युवाओं को खेल और पढ़ाई की तरफ मोड़ रहे हैं। दो हजार से ज्यादा का नशा छुड़वाया है। बच्चों के लिए भी कुछ न कुछ करते रहते हैं। दीवाली पर पटाखे लाना, मिठाई दिलवाना सालों से जारी है। कहते हैं, भगवान मुझे जितना देता है, उतने की मदद कर देता हूं। जिस दिन वो अपना देना बढ़ा देगा, मैं अपनी मदद बढ़ा दूंगा।
हिम्मतराम का बाकी परिवार शहर में रहता है। उन्हें भी ले जाना चाहते हैं, लेकिन वो गांव और खेत छोडक़र नहीं जाना चाहते। छह बीघा जमीन है, जिसके आधे हिस्से में पेड़ लगा रखे हैं। इलाके में कम बारिश होती है, इसलिए मिट्टी की नमी बनाए रखने के लिए जुटे रहते हैं। हिम्मतराम पर किताब भी छप चुकी है। शीर्षक था 'हिम्मत के धनी हिम्मतराम'। केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने संसद में हिम्मतराम का जिक्र किया था और किताब के बारे में बताया था। उसके बाद से मीडिया वाले भी पहुंचे। चैनल वालों ने इंटरव्यू लिया। सोशल मीडिया पर भी तारीफ होती रहती है। अब गांव वाले भी सब जानते हैं, इसलिए हिम्मतराम के कारनामे फेसबुक, वाट्सएप पर चलाते रहते हैं।