इस मंदिर में मत्था टेकने से पूरी होती है हर मनोकामना

 


 


धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब मां कुष्मांडा ने अपनी हंसी से ब्रह्मांड की रचना की थी। नवरात्रि के चौथे दिन मां दुर्गा के चौथे स्वरूप मां कुष्मांडा की पूजा की जाती है। शारदीय नवरात्रि के पावन पर्व पर हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां मां कुष्मांडा विराजमान हैं। यह मंदिर उत्तर प्रदेश के सागर-कानपुर के बीच घाटमपुर में स्थित है। यहां मां कुष्मांडा लेटी हुईं मुद्रा में हैं। पिंड स्वरूप में लेटी मां कुष्मांडा से लगातार पानी रिसता है। मान्यता है कि इस पानी को पीने से कई तरह के रोग दूर हो जाते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब मां कुष्मांडा ने अपनी हंसी से ब्रह्मांड की रचना की थी। यही कारण है कि इन्हें सृष्टि की आदि स्वरूपा आदि शक्ति माना जाता है।




मंदिर का इतिहास
मां कूष्मांडा का यह मंदिर मराठा शैली में बना हुआ है। बताया जाता है कि यहां स्थापित मूर्तियां दूसरी से दसवीं शताब्दी के मध्य की है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कुड़हा नामक ग्वाले की गाय अपना दूध झाड़ी में गिरा देती थी। गाय द्वारा यह काम हर दिन किया जाता था। इसे देखकर एक दिन कुड़हा ने यहां खुदाई की तो उसे एक मूर्ति दिखाई दी। काफी खुदाई करने के बाद भी उसे इस मूर्ति का अंत नहीं मिला तो उसने इस स्थान पर एक चबूतरे का निर्माण करा दिया। बताया जाता है कि मां कुष्मांडा देवी के वर्तमान मंदिर का निर्माण 1890 में चंदीदीन भुर्जी ने कराया था। बताया जाता है कि 1988 से ही इस मंदिर में अखंड ज्योति प्रज्ज्वलित हो रही है।



इस रहस्य से अब तक अंजान है दुनिया
यहां मां कुष्मांडा एक पिंडी के स्वरूप में लेटी हुईं हैं, जिससे लगातर पानी रिसता रहता है। आज तक वैज्ञानिक भी इस रहस्य का पता नहीं लगा पाए कि यहां रिसने वाला पानी कहां से आता है। मान्यता है कि सूर्योदय से पूर्व स्नान कर 6 माह तक जो भी इस जल का प्रयोग करता है, उसकी हर तरह की बीमारी ठीक हो जाती है। यही नहीं, मंदिर परिसर में दो तालाब भी हैं। कहा जाता है कि दोनों तालाब आज तक कभी सुखे नहीं हैं। इनमें हर मौसम में पानी भरा रहता है। यहां जो भी भक्त मां कुष्मांडा के दर्शन करने के लिए आता है, वह एक तालाब में स्नान करता है, उसके बाद दूसरे तालाब से जल लेकर माता को अर्पित करता है।