धर्म की रक्षा के लिए अनेक यातनाओं को सहन कर गए गुरु अर्जन देव

भारत में एक महान शहीद थे सिखों के पांचवे गुरू अर्जन देव जी। 1581 ई. में गुरु पीठ पर बैठे गुरु अर्जन देव का सिख गुरुओं में विशिष्ट स्थान है। आज जिस रूप में 'गुरु ग्रंथ साहब' उपलब्ध है, उसका संपादन गुरु अर्जन देव ने ही किया था। गुरु अर्जन देव सिखों के परम पूज्य चौथे गुरु रामदास के पुत्र थे। गुरु नानक से लेकर गुरु रामदास तक के चार गुरुओं की वाणी के साथ-साथ उस समय के अन्य संत महात्माओं जैसे कबीर दास, गोरखनाथ, संत रविदास की वाणी को भी इन्होंने 'गुरु ग्रंथ साहब' में स्थान दिया था।



श्री गुरु अर्जुन देव जी को हुतात्माओं का सरताज कहा जाता है। धर्म की रक्षा हेतु प्राण की आहुती देने वाले वे 'पहले' सिख गुरू थे। भारतीय दशगुरु परम्परा के पंचम गुरु श्री गुरु अर्जुन देव का जन्म 15 अप्रैल, 1563 ई. को हुआ था। एक सितम्बर, 1781 को अठारह वर्ष की आयु में वे गुरु गद्दी पर विराज मान हुए। 16 जून 1606 को उन्होंने हिन्दू धर्म व सत्य की रक्षा करते हुए मात्र 43 वर्ष की आयु में अपने प्राणों की आहुति दे दी थी।
1500 इसवी जब मुघल बर्बरता चरम में थी तब गुरु जी ने धर्म रक्षा का बीड़ा उठाया हुआ था। उनके नेतृत्व में हजारों हिन्दू, और मुस्लिम सिख धर्म में धर्मांतरित हो रहे थे। गुरु अर्जन देव जी की बढती वर्चस्व से मुगलों की नींद उड गयी थी। इस्लामी कट्टर पंथियों ने अर्जन देव के विरुद्द जहाँगीर के कान भरना शुरू कर दिया और उन्हें गिरफ्तार करने के लिए उकसाया। जहाँगीर ने गुरु अर्जन देव को गिरफ्तार करवाया। उसके बाद उसने जो गुरू जी के साथ अमानवीय बर्ताव किया उसे लगातार पांच दिनों तक जहाँगीर के चहीते चंदू शाह ने उन्हें यम यातनाएं दी। उनको भूखा रखा गया, पीने को पानी तक नहीं दिया गया, रात को पलक भी नहीं झपक ने दिया गया। गुरु जी शांत रूप से वाहे गुरू का जाप जपते रहे। दूसरे दिन एक बड़े हंडे में गुरु जी को बिठाया गया और उसमें पानी भर दिया गया। नीचे से चूल्हा जलाकर पानी के साथ-साथ गुरु जी को भी उबाला गया। गुरू जी के पूरे बदन पर फफले आ गये। लेकिन गुरु जी न चीखे ना चिल्लाये और न क्रोध प्रकट किया। वे वाहे गुरू को ही याद करते रहे। तीसरे दिन एक लोहे के तवे पर रेत को गरम किया गया और उबलते हुई पानी में गुरू जी को बिठाकर उनके ऊपर गरम रेत को डाल दिया गया। गुरू जी का पूरा बदन गरम पानी और गर्म रेत के कारण जल रहा था। लेकिन फिर भी वे शांत थे।