भगवान शिव को कहा जाता है पशुपति, दिया था आशुतोष नाम


 


वज्र शिव का शक्तिशाली अस्त्र है। वज्र को शिव निरीह पशु-पक्षियों को बचाने के लिए तथा मानवता विरोधी व्यक्तियों के विरुद्ध व्यवहार में लाते थे। शिव जीवन के सब क्षेत्रों में अत्यंत संयमी कहे जाते हैं। इसलिए अस्त्र का व्यवहार वह कभी-कभार ही करते थे। उन्होंने अच्छे लोगों के विरुद्ध अस्त्र का व्यवहार कभी नहीं किया। जब भी मनुष्य और जीव-जंतु अपना दुख लेकर शिव के पास आए, शिव ने उन्हें आश्रय दिया और सत् पथ पर चलने का परामर्श दिया। जिन्होंने किसी प्रकार भी अपना स्वभाव नहीं बदला, उल्टे शिव पर क्रोध करके अपनी स्वार्थ वृत्ति को पूर्ण करने की चेष्टा की, शिव ने उन पर ही इस अस्त्र का प्रयोग किया। यह अस्त्र मात्र कल्याणार्थ है, इसी कारण इसे 'शुभ वज्र' कहा गया है। मनुष्य के समान पशुओं के प्रति भी शिव के हृदय में अगाध वात्सल्य था। इस कारण उन्हें 'पशुपति' नाम मिला। कुछ सत व धार्मिक व्यक्तियों को शिव की कृपा से इस अस्त्र का व्यवहार करना आ गया था। जिनका वज्र हर समय शुभ कार्य में प्रयोग होता है, वे ही 'शुभ वज्रधर' हैं। उनके संबंध में कहा जाता है कि 'कुंदेंदु हिम शंखशुभ्र' अर्थात् शिव कुंद फूल की तरह, चांद, तुषार और शंख की तरह शुभ हैं।