सोमनाथ मंदिर से करीब 5 किलोमीटर दूर वेरावल में भालका तीर्थ स्थल है। इस तीर्थ स्थल का हिंदू धर्म में बहुत अधिक महत्व है। लोक कथाओं के अनुसार कहा जाता है की इस मंदिर में श्री कृष्ण नें अपना देह त्यागा था। भालका तीर्थ भगवान श्री कृष्ण के अंतिम सांस का साक्षी माना जाता है, लेकिन भक्तों का मानना है की इस पवित्र स्थान में भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है।
इस प्रमुख धार्मिक केंद्र के बारे में यहां हर रोज़ आने वाले श्रद्धालु बताते हैं की सच्चे मन से यहां मांगी गई हर मुराद पूरी होती है। यहां आया हुआ कोई भक्त खाली हाथ नहीं लौटता। क्योंकि यहां श्री कृष्ण के होने का अहसास हमेशा होता है, इसका साक्षी यहां मौजूद 5 हजार साल पुराना पीपल का पेड़ है जो कभी नहीं सूखता। लोक कथाओं के अनुसारमहाभारत युद्ध खत्म होने के बाद 36 साल बाद तक यादव कुल मद में आ गए। आपस में ही झगडऩे लगे और एक दूसरे को ही खत्म करने लगे। इसी कलह से परेशान होकर कृष्ण सोमनाथ मंदिर से करीब सात किलोमीटर दूर वैरावल की इस जगह पर विश्राम करने आ गए। ध्यानमग्र मुद्दा में लेटे हुए थे कि वहां से करीब एक किलोमीटर की दूरी पर मौजूद जरा नाम के भील को कुछ चमकता हुआ नजर आया। उसे लगा कि यह किसी मृग की आंख है और बस उस ओर तीर छोड़ दिया, जो सीधे कृष्ण के बाएं पैर में जा धंसा। जब जरा करीब पहुंचा तो देखकर रुदन करने लगा, उसके वाण से खुद कुष्ण घायल हुए थे। जिसे उसने मृग की आंख समझा था, वह कृष्ण के बाएं पैर का पदम था, जो चमक रहा था। भील जरा को समझाते हुए कृष्ण ने कहा कि क्यों व्यर्थ ही विलाप कर रहे हो, यह नियति है।
ऐसे कहलाया भालका तीर्थ
भगवान श्री कृष्ण ने व्याघ को क्षमा कर दिया और अपनी कान्ती से वसुंधरा को व्याप्त करके निजधाम प्रस्थान कर गए। यहां व्याध ने भगवान श्री कृष्ण जी को भल्ला यानी बाण मारा था इसीलिए यह स्थान भालका तीर्थ कहा जाता है।