बलि के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने भगवान हरि ने लिया वामन अवतार

वामन जयंती को वामन द्वादशी भी कहा जाता है। माना जाता है कि भगवान हरि ने बलि के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए वामन अवतार लिया था। श्रीमद् भागवत के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को अभिजीत मुहूर्त में भगवान वामन प्रकट हुए थे। माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है। भगवान वामन की जयंती के दिन श्रावण नक्षत्र होने से इस व्रत की महत्ता और भी अधिक बढ़ जाती है। इस दिन उपवास रखने वाले जातकों को वामन भगवान का पंचोपचार सहित पूजन श्रद्धा एवं भक्ति पूर्वक करना चाहिए।



ऐसी मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से भगवान वामन सभी कष्टों को दूर कर देते हैं। इस खास दिन प्रात: काल भगवान श्री वामन जी का पंचोपचार विधि एवं षोडषोपचार पूजन करने से पहले चावल, दही आदि वस्तुओं का दान करने का विधान है जिसे सबसे उत्तम माना गया है। व्रत रखकर शाम के समय भगवान वामन का पूजन करें और व्रत की कथा को जरूर पढ़ें या सुनें। ऐसा करने से जीवन की सभी समस्याओं का निवारण हो जाता है, अर्थात भगवान वामन जी अपने भक्तों की हर मनोकामनाएं पूरी करते हैं। इस दिन ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए और स्वयं फलाहार करना चाहिए। एक बार दैत्यराज बलि ने इंद्र को परास्त कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। पराजित इंद्र की दयनीय स्थिति को देखकर उनकी मां अदिति बहुत दुखी हुईं। उन्होंने अपने पुत्र के उद्धार के लिए विष्णु की आराधना की। इससे प्रसन्न होकर विष्णु प्रकट होकर बोले- देवी! चिंता मत करो। मैं तुम्हारे पुत्र के रूप में जन्म लेकर इंद्र को उसका खोया राज्य दिलाऊंगा। समय आने पर उन्होंने अदिति के गर्भ से वामन के रूप में अवतार लिया। उनके ब्रह्मचारी रूप को देखकर सभी देवता और ऋषि-मुनि आनंदित हो उठे। एक दिन उन्हें पता चला कि राजा बलि स्वर्ग पर स्थायी अधिकार जमाने के लिए अश्वमेध यज्ञ करा रहा है। यह जानकर वामन वहां पहुंचे। उनके तेज से यज्ञशाला प्रकाशित हो उठी। बलि ने उन्हें एक उत्तम आसन पर बिठाकर उनका सत्कार किया और अंत में उनसे भेंट मांगने के लिए कहा। इस पर वामन चुप रहे। लेकिन जब बलि उनके पीछे पड़ गया तो उन्होंने अपने कदमों के बराबर तीन पग भूमि भेंट में मांगी। बलि ने उनसे और अधिक मांगने का आग्रह किया, लेकिन वामन अपनी बात पर अड़े रहे। इस पर बलि ने हाथ में जल लेकर तीन पग भूमि देने का संकल्प ले लिया। संकल्प पूरा होते ही वामन का आकार बढऩे लगा और वे वामन से विराट हो गए। उन्होंने एक पग से पृथ्वी और दूसरे से स्वर्ग को नाप लिया। तीसरे पग के लिए बलि ने अपना मस्तक आगे कर दिया। वह बोला- प्रभु, सम्पत्ति का स्वामी सम्पत्ति से बड़ा होता है। तीसरा पग मेरे मस्तक पर रख दें। सब कुछ गंवा चुके बलि को अपने वचन से न फिरते देख वामन प्रसन्न हो गए। उन्होंने ऐसा ही किया और बाद में उसे पाताल का अधिपति बना दिया और देवताओं को उनके भय से मुक्ति दिलाई।