अतीत को संजोए है बादशाह अकबर की जामा मस्जिद

मुगल बादशाह अकबर की करीब साढे चार सौ साल पुरानी एतिहासिक मस्जिद अपने अतीत को संजोये मुगलिया दौर की गाथा गा रही है। मुगलकालीन समय की यह इमारत देश की ऐतिहासिक धरोहरो में से एक है जिसका बदलते वक्त के साथ जीर्णोद्धार तो हुआ है लेकिन आज के दौर में भी ये इमारत पुरानी यादे ताजा कर रही है।



उत्तर प्रदेश में हरदोई जिला मुख्यालय से करीब 24 किमी दूरगोपा मऊ कस्बे की ऐतिहासिक जामा मस्जिद को लगभग 450 बरस पूर्व मुगल बादशाह अकबर ने इसे बनवाया था। कहते है कि मुगल बादशाह का काफिला इधर से गुजरा था और यहां पर उसने अपना पडा़व डाला था इसलिए मुगल बादशाह ने उसे रास्ते पर अपनी यादें छोड़ते यहां पर इस मस्जिद का निर्माण कराया था। मुगल शैली की इस मस्जिद के बारे में कहा जाता है कि जैसी अयोध्या में तीन गुम्बदों वाली बाबरी मस्जिद थी उसी की तरह इस मस्जिद की डिजाईन है और यह दिखने में हूबहू वैसी ही लगती है जैसी अयोध्या की बाबरी मस्जिद थी। मौलाना मोहम्मद इरफान नदवी के अनुसार यह छोटी इट्वट और गारे से मिल कर बनी जामा मस्जिद के बरामदे में दाखिल होते ही अरबी में लिखा पत्थर और उस पर लिखी आयतें इस मस्जिद की भव्यता और महत्व को प्रदर्शित करती है। मुगलिया दौर की इस इमारत को बनाने में कई बातों का विशेष रुप से ध्यान रखा गया था खासकर वास्तुकला और शिल्पकला की नजर से इस इमारत की कई खास चीजें है जो मुगलकाल की याद दिलाती है। इस इमारत की दीवारे चार से पांच फुट चौडी है और इसके गुम्बदों की ऊंचाई भी कई फुट ऊंची है जिसकी वजह से सर्दियों के महीने में सर्दी और गर्मियों के महीने में गर्मी का अकीदत मंदों को अहसास नही होता था। इमारत को बनाने में छोटी और बडी ईंटों का प्रयोग के साथ ही पत्थरों का भी प्रयोग कर एक विशेष तरह की जुडाई कर तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। उन्होंने बताया कि मस्जिद में अकीदत मंदों की आवाज बाहर भी सुनाई दे इस बात का भी ख्याल इसकों बनवाते समय रखा गया था एक हाल से दूसरे हाल तक बिना किसी अवरोध के आवाज आ जा सकती है।