आर्थिक अपराधों की दस्तक देती एडवाइजरी कंपनी पर सेबी की पकड़ नहीं

फ्रेंचाइजी के नाम पर सैकड़ों कंपनियां चल रही हैं धड़ल्ले से


जगदीश जोशी 'प्रचण्ड'
इंदौर। लगभग बीस हजार लोगों से धोखाधड़ी करने वाली 'ट्रेड इंडिया रिसर्च एण्ड एडवाइजरी' कंपनी के संचालकों की करतूतों के बाद भी शहर में निवेश के नाम पर सलाह देने वाली कंपनियां भारतीय प्रतिभूति नियामक आयोग (सेबी) के नियमों को ठेंगा दिखा रही है। देशभर में सैकड़ों लोगों से ठगी करने वाले इन कंपनियों में दो सतक से अधिक कंपनियां ऐसी हैं जो कि 'सिक्योरिटी एण्ड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया' से रजिस्टर्ड नहीं हैं। सेबी की पकड़ नहीं होने से फर्जी एडवाइजरी कंपनियों का मकडज़ाल निवेशकों पर बनता जा रहा है और ठगी का यह सिलसिला जारी है। विजय नगर क्षेत्र में इस तरह की कई कंपनियों के ऑफिसों पर पुलिस ने जांच कर कई लोगों को पकड़ा था, लेकिन एक बार फिर फर्जी कंपनियां बाजार में सक्रिय हैं।



उल्लेखनीय है कि कुछ समय पहले एमजी रोड स्थित 'स्टॉर इंडिया मार्केट रिसर्च' पर सेबी ने चालीस लाख रुपए जुर्माने की कार्रवाई करते हुए निवेशकों से वसूला गया सेवा शुल्क भी लौटाने का आदेश दिया था। निवेशकों की शिकायत पर सेबी ने पाया था कि कंपनी सेबी के निर्धारित नियम-कायदों व दिशा-निर्देशों का जमकर उल्लंघन कर रही है और कई युवओं से भी निवेश सलाह सेवा के रूप में लाखों रुपए वसूल लिए थे। कंपनी ने हाई नेट वर्थ इंडीविजुअल बताते हुए लोगों से लाखों रुपए की फीस वसूली थी। सूत्रों के मुताबिक बाजार से डाटा खरीदकर कॉल सेंटर खोलकर इन कंपनियों ने शहर में अलग-अलग क्षेत्रों में फ्रेंचाइजी के नाम से शाखाएं खोल दी हैं। इन फ्रेंचाइजी सेंटरों से निवेश करने वालों को सलाह दी जाती है, जबकि नियमानुसार एक कंपनी का एक शहर में एक ही ऑफिस निर्धारित रहता है। फ्रेंचाइजी को आधार बनाकर उसे विभाजित नहीं किया जा सकता है। ज्यादातर फें्रचाइजियों में युवक-युवती को ही शामिल किया जा रहा है, जिन्हें शेयर मार्केट का कोई खास अनुभव नहीं है। कुछ कंपनी संचालकों द्वारा ५० से ६० हजार रुपया बतौर फे्रंचाइजी लिया जाता है। इन फें्रचाइजी सेंटरों से कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, दिल्ली, पंजाब, उत्तरप्रदेश में रह रहे सीनियर सिटीजन को निशाने पर लिया जा रहा है। नियमानुसार एडवाइजरी कंपनियों में कार्य करने वाले कर्मचारियों को एमबीए किया होना अनिवार्य होता है। शर्त यह भी होती है कि उन्हीं व्यक्तियों से निवेश कराया जाए, जो निवेश में घाटा होने पर उसे सहन कर सकें। आयकर रिटर्न में उस व्यक्ति की आर्थिक स्थिति को भी देखना जरूरी होता है, लेकिन कंपनियां इन नियमों का पालन नहीं कर रही हैं। लगभग तीन साल पहले एडवाइजरी कंपनियों ने इंदौर में पैर जमाना शुरू किया। प्रारंभिक दौर में मनी वल्र्ड रिसर्च, एमएमएफ शाल्युशन ग्लोबल माउंड मनी, ग्लोबल मनी रिसर्च, गर्भित रिसर्च, कैपिटल वायर जैसी कंपनियों को स्पेशल टॉस्क फोर्स ने निशाने पर लिया था, क्योंकि एसटीएफ को भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड ने कई कंपनियों के नाम संज्ञान में लाए थे, जिसमें कहा गया था कि वे उनकी जांच कर संपूर्ण जानकारी का ब्योरा एकत्रित करें, ताकि समय रहते निवेशकों के हित में उचित कार्रवाई की जा सके। हालांकि स्पेशल टॉस्क फोर्स की इस कार्रवाई के दौरान ही इंदौर के स्नेहलतागंज से यूनीबिज मल्टी टे्रड प्रा.लि. कंपनी लाखों-करोड़ों रुपए लेकर रफूचक्कर हो गई। तमाम कोशिशों के बावजूद भी इन कंपनियों पर पुलिस कोई खास रोक नहीं लगा पा रही है। 

निगरानी समिति गठित
धोखाधड़ी की बढ़ती वारदातों के चलते राज्य शासन ने गैर बैंकिंग वित्तीय स्थापनाओं एवं अनियमित निकाय वाली चिटफंड कंपनियों की गतिविधयों पर निगरानी रखने का निर्णय लेते हुए समिति भी बनाई थी। इस समिति में तात्कालीन पूर्व पुलिस महानिदेशक नंदन दुबे ने १४ अन्य विभाग प्रमुख सदस्यों को मनोनीत किया था। इसमें अपर मुख्य सचिव वित्त, प्रतिनिधि कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय भारत सरकार, रजिस्ट्रार ऑफिस, कंपनी प्रतिनिधि, नेशनल हाउसिंग बैंक, अध्यक्ष इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टेड एकाउंटेंट, बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण आदि सम्मिलित थे। प्रदेश में यह अपने तरह की एक पहली समिति थी, जिस पर इस तरह के होने वाले अपराध की समीक्षा एक्सपर्ट पैनल के माध्यम से करने का प्रावधान था, लेकिन यह समिति भी औपचारिकता मात्र साबित हुई। 



कंपनी के नियम
- कंपनी को डिओटी में रजिस्टे्रशन कराना जरूरी है, जिसमें काम करने की पूरी योजना को दर्शाना होता है। 
- कंपनी सिर्फ शेयर में निवेश करने की सलाह देकर अपना सर्विस चार्ज ले सकती है।
- काम करने वाले कर्मचारी को एमबीए होना जरूरी होता है।
- कंपनी अपने मुख्य ऑफिस के अलावा कहीं और फें्रचाइजी नहीं दे सकती।