आला अफसर के रहमो-करम से दागियों के बीच बेदाग विनोद रघुवंशी

भोपाल। इंदौर के 41.40 करोड़ के आबकारी घोटाले में फंसे अफसरों को विभाग द्वारा कराई गई जांच में अनियमितता पाए जाने के बावजूद आबकारी महकमा सजा देने के बजाए शो-कॉज नोटिस का खेल खेल रहा है।


 


खास बात यह है कि इस मामले ऊपर और नीचे के अफसर तो जांच के घेरे में आ गए लेकिन घोटाले में लिप्त होने के आरोपी और सबसे अधिक चर्चित एक अफसर काजल की कोठरी से मंत्रालय में बैठे एक आला अफसर के रहमो करम से बेदाग निकलने जैसी स्थिति में हैं। घोटाले में नाम आने वाले वे अफसर हैं तत्कालीन जिला आबकारी अधिकारी विनोद रघुवंशी, जो अब उपायुक्त के तौर पर मुख्यालय में पदस्थ हैं। इंदौर का यह आबकारी घोटाला साल भर पहले प्रकाश में आया था। जांच रिपोर्ट में इशारा किया गया था कि अफसरों की साठगांठ से पिछले सालों में भी राजस्व का करोड़ों रुपए की क्षति पहुंचाई गई है। मामला गर्माने पर आबकारी विभाग ने तत्कालीन सहायक आबकारी आयुक्त संजीव दुबे सहित महू व इंदौर के भंडारागार अधिकारियों पर कार्रवाई की थी, लेकिन इंदौर के तत्कालीन जिला आबकारी अधिकारी विनोद रघुवंशी को बचा लिया गया। जबकि इंदौर में हुए इस घोटाले में उनसे उच्च पद पर बैठे अफसर और उनके नीचे के अफसर आरोपी बनाए गए। सूत्रों के अनुसार विभागीय जांच रिपोर्ट के आधार पर आबकारी विभाग ने एक बार फिर संजीव दुबे सहित अन्य अफसरों को कारण बताओ नोटिस देकर इस घोटाले से जुड़े बिंदुओं पर उनके जवाब मांगे हैं। लेकिन इस बार भी विनोद रघुवंशी जांच के दायरे से बाहर रखे गए हैं।
लंबित है जांच, उजागर हुई कई खामियां
इंदौर में हुई चालान घोटाले की जांच करने वाली ग्वालियर की टीम ने तत्कालीन सहायक आबकारी आयुक्त संजीव दुबे के साथ महू व इंदौर के भंडारागार अधिकारियों की लापरवाही मानी थी। रिपोर्ट में थी। रिपोर्ट में लिखा है, अफसरों ने कार्यालय में प्रस्तुत चालानों के आकस्मिक व मासिक मिलान नहीं किए। जांच टीम में शामिल उपायुक्त आबकारी केके डोहर, डॉ. प्रमोद कुमार झा सहायक आबकारी आयुक्त एसआर मौर्य संयुक्त संचालक (वित्त) मुख्यालय, एनके मौर्य सहायक लेखाधिकारी मुख्यालय व एमके सोलंकी सहायक लेखाधिकारी मुख्यालय की रिपोर्ट ने कई तरह की गंभीर त्रुटियां उजागर की। 
ऐसे दिया था सरकार को धोखा
आबकारी विभाग में तौज्ी मिलान की एक व्यवस्था है। करोड़ों के ठेके होने के कारण हर महीने ठेकेदार शराब हासिल करने के लिए लाखों के चालान बैं में जमा करते हैं। एक कॉपी बैंक के पास तो दूसरी ट्रेजरी जाती है। हर १५ दिन अथवा महीने में एक बार ट्रेजरी में जमा चालान व विभाग में जमा चालान का मिलान किया जाता है जिसे तौजी मिलान कहते हैं। रिपोर्ट में बताया कि दिसंबर २०११५ से जून २०१६ में हुए तौजी मिलान में कई गड़बडिय़ां थी लेकिन अफसरों ने उसे दबा दिया। इसके बाद तौजी मिलान भी नहीं किया और ४१ करोड़ का घोटाला हो गया।