जीवन का हर सबक किताबों से ही मत लीजिए कभी अपने अनुभवों की किताब भी लिख दीजिए!

 इसमें कोई संदेह नहीं कि किताबें हमारी मित्र हैं, मार्गदर्शक हैं, किताबों के पढऩे से हमें जीवन की राह मिलती है लेकिन मानव जीवन में अपने अनुभव भी बहुत महत्व रखते हैं। इसलिए मैं अत्यंत संकोच के साथ यह कहना चाहता हूं कि- जीवन का हर सबक किताबों से ही मत लीजिए। कभी अपने अनुभवों की किताब भी लिख दीजिए! वास्तव में जीवन का हर सबक जरूरी नहीं कि किताबों से ही सीखा जाए। पौराणिक व शास्त्रोक्त तथ्यों पर आधारित कुछ महत्वपूर्ण किताबों को छोड़कर अन्य किताबों में लिखित द्रष्टांत-दृश्य और दिग्दिर्शक संदेश सिद्धांत कई बार देश काल व परिस्थिति के हिसाब से बदलते रहते हैं। ऐसे हालात में किताब से कहीं ज्यादा हमारे अपने जीवन के अनुभव ज्यादा सार्थक सिद्ध होते हैं। इसलिए हम किताबों के अध्ययन में संलग्न रहें उनकी महत्वपूर्ण जानकारियों से भी सबक लें लेकिन हमारी कोशिश हो कि हम अपने जीवन के अनुभवों पर भी एक पुस्तक अवश्य लिखें। अपने जीवन की उन तमाम घटनाओं, गतिविधियों, दुख-सुख, उत्सव आदि की स्मृति में जाएं जिनके आप दृश्य बने हैं। जीवन का कोई ऐसा अनुभव जो दुख-दारिद्र से मुक्त होकर सुख और ऐश्वर्यपूर्ण जीवन जी रहे हों। आपके संघर्ष और संकल्प की वो तस्वीर जिसे याद करके आप स्वयं अचंभित हो जाते हों। फर्श से अर्श की वो कहानी जिसे पढऩे से अन्य जनों को नया आयाम मिले। ऐसा कुछ लिख डालिए। यहां इस बात की चिंता भी शायद जायज होगी कि यह युग डिजिटल युग है। जिसके प्रभाव से किताबें पढऩे का चलन पूर्व की अपेक्षा कम हुआ है। हर कुछ ज्ञान टीवी-मोबाइल से ही प्राप्त किया जा रहा है। लोगों की लेखन के प्रति रुचि भी कम दिख रही है। जो कुछ लिखा भी जा रहा है उसमें अपने अनुभव कम और अन्य किताबों का सहारा ज्यादा है। जो कि चिंताजनक है। इससे हमारी नई सोच व कल्पना शक्ति क्षीण हो रही है। इस पर ध्यान दीजिए।