विधानसभा अध्यक्ष-उपाध्यक्ष पद के लिए बढ़ी सक्रियता

 विंध्य को मिलेगा मौका बुंदेलखंड और होगा मजबूत

एक साल के लंबे इंतजार के बाद मध्यप्रदेश विधानसभा का सदन अगले माह बजट सत्र के साथ लगना तय हो गया है। अधिसूचना जारी होने के साथ ही जहां सत्र की तैयारियां शुरू हो गई हैं, वहीं विधानसभा के नए अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को लेकर भी सियासी सक्रियता बढ़ गई है। सिंधिया समर्थकों से भरपूर मंत्रिमंडल में विंध्य और महाकौशल को पूरी तरह से दरकिनार किया गया है। अब विधानसभा अध्यक्ष पद के जरिए जहां विंध्य की नाराजगी दूर की जा सकती है। वहीं सियासी उठापटक के बीच उपाध्यक्ष पद के साथ सत्ता में बुंदेलखंड की ताकत और बढऩा तय माना जा रहा है। सदन के इन दो पदों को हाथ में लेकर सत्ता और संगठन के कई समीकरण सुलझाने में भाजपा जुट गई है।


भोपाल. पिछले साल बजट सत्र के दौरान ही सियासी खींचतान के बाद सरकार भाजपा के हाथ में आई थी। इस समय कोरोना भी उत्कर्ष पर पहुंच चुका था, जिसके चलते बीते दस महीनों में विधानसभा का केवल एक सत्र ही हो सका है, वह भी औपचारिकता मात्र। करीब साल भर के इंतजार के बाद 22 फरवरी से बजट सत्र शुरू होना है, जो 26 मार्च तक चलेगा। पहले दिन ही अध्यक्ष का निर्वाचन किया जाना है। भाजपा की सरकार बनने के बाद से ही इस पद के दावेदार मुखर होते रहे हैं, खासकर मंत्रिमंडल में जगह पाने में नाकाम भाजपा के कई दिग्गज विधायक अपना भविष्य विधानसभा अध्यक्ष के पद पर देखते रहे हैं। इसके लिए समय-समय पर विभिन्न अंचलों से दावेदार भी सामने आते रहे हैं। मगर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भोपाल की हजर विधानसभा सीट से दो बार के विधायक रामेश्वर शर्मा को प्रोटेम स्पीकर बनाकर खींचतान और विवाद को विराम दे दिया था। बतौर प्रोटेम स्पीकर रिकार्ड बनाने वाले रामेश्वर शर्मा अपनी इस जिम्मेदारी पर खरे उतरे और पार्टी को हर चुनौती से बाहर निकालने का काम किया। मगर अब बजट सत्र के साथ ही नियमित अध्यक्ष-उपाध्यक्ष के चयन की तैयारी भी शुरू हो गई है। अध्यक्ष पद के साथ ही उपाध्यक्ष का पद भी भाजपा इस बार अपने ही पास रखने का मन बनाकर बैठी है। हालांकि इस परंपरा की शुरूआत पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने ही की थी, जिसे अब राजनीतिक बदले के रूप में भाजपा बढ़ाने जा रही है।

17 साल बाद विंध्य का बढ़ेगा रुतबा

वर्ष 200३ के पहले कांग्रेस की सरकार में दस साल तक विधानसभा अध्यक्ष का पद विंध्य के हाथ में रहा था, जब 199३ और 1998 में सरकार बनने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय ङ्क्षसह ने रीवा से विधायक श्रीनिवास तिवारी को अध्यक्ष बनाया। स्व. तिवारी ने अपने राजनीतिक कद और रुतबे से इस पद को नई ताकत दी। अब फिर 17 साल बाद विंध्य को विधानसभा अध्यक्ष का पद मिल सकता है। खासबात यह है कि विंध्य से एक बार फिर ब्राम्मण विधायक को इस पद की जिमेदारी मिल सकती है। इनमें जहां गिरीश गौतम और केदारनाथ शुल प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं तो मंत्री बनने से चूके पूर्व मंत्री राजेंद्र शुल व नागेंद्र सिंह नागौद के नाम पर प्रमुखता से चर्चा में बने हुए हैं। विंध्य के अलावा महाकौशल और मालवा के वरिष्ठ विधायक भी मौका छोडऩे के मूड में नहीं हैं। महाकौशल से पूर्व मंत्री अजय विश्नोई लगातार इस पद पर दावेदारी जता रहे हैं तो अपने अंचल की उपेक्षा पर नाराजगी जताने का कोई मौका भी वे नहीं छोड़ते। इसी अंचल से वरिष्ठ विधायक गौरीशंकर बिसेन भी अपनी सक्रियता बनाए हुए हैं। मालवा से मालिनी गौड़, रमेश मेंदोला भी अध्यक्ष पद को लेकर समय-समय पर आवाज बुलंद करते रहे हैं तो पूर्व विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीतासरण शर्मा भी अब अध्यक्ष पद की दौड़ में खुद को शामिल कर चुके हैं। मगर क्षेत्रीय और जातिगत संतुलन को देखते हुए यह पद इस बार विंध्य को मिलना ही तय माना जा रहा है। 

बुंदेलखंड की उपाध्यक्ष पद पर नजर

प्रदेश की पूर्ववर्ती कमलनारा सरकार ने उपाध्यक्ष पद भी भाजपा को नहीं दिया था। इसी तर्ज पर बीजेपो भी इस बार विधानसभा उपाध्यक्ष का पद अपने पास रखने की तैयारी में है। सूत्रों के मुताबिक बीजेपो इस बार जातिगत और क्षेत्रीय संतुलन को बनाते हुए इस बार बुंदेलखंड से किसी अनुसूचित जाति-जनजाति के विधायक को उपाध्यक्ष के पद से नवाज सकती है। इसमें वरिष्ठ विधायक प्रदीप लारिया का नाम सबसे ऊपर है। वहीं बुंदेलखंड को मौका मिलता देख जिले के अन्य भाजपा विधायक शैलेंद्र जैन व हरिशंकर खटीक की दावेदारी भी सामने आ चुकी है। मगर खटीक को पहले ही संगठन में महामंत्री जैसा प्रमुख पद मिल चुका है। ऐसे में उनकी दावेदारी कमजोर पडऩे लगी है। प्रदेश भाजपा से जुड़े सूत्रों का कहना है कि अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पद के लिए संगठन की और से काफी पहले विचार किया जा चुका है। सर्वसम्मति से दोनों पदों के लिए निर्णय लिया जाएगा।