राजनीतिक दलों के लिए लिटमस टेस्ट है ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव, उम्मीद के साथ चुनौती भी कम नहीं


नई दिल्ली. ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव सभी बड़ी पार्टियों के लिए लिटमस टेस्ट है। तेलंगाना की राजधानी और आर्थिक गतिविधियों वाला बड़ा शहर होने के कारण सभी बड़ी पार्टियां चाहती हैं कि वे चुनाव जीतकर इसके मेयर की सीट पर कब्जा कर लें। सत्तारूढ़ टीआरएस को जहां अपने काम और कैडर का भरोसा है, वहीं कांग्रेस इस चुनाव के जरिये अपना प्रदर्शन सुधारना चाहती है। गत लोकसभा चुनावों की सफलता ने भाजपा को प्रोत्साहित किया है और वह इस चुनाव में जीत के लिए पूरा दमखम लगा रही है।


तेलंगाना राष्ट्र समिति :


टीआरएस को शहर में कराए गए विकास कार्यों का भरोसा है। पार्टी का दावा है कि पिछले छह साल में शहर में 67,140 करोड़ रुपये के विकास कार्य कराए गए हैं। उसके पास 100 सभासद और छह लाख पार्टी सदस्य हैं। उसका मानना है कि उसके 40 पूर्व सभासद भी ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम का मेयर पद पर कब्जाने में उसकी मदद करेंगे।


एआइएमआइएम की मदद :


टीआरएस को मुस्लिम वोटों की भी उम्मीद है। इसकी वजह है कि जहां एआइएमआइएम (ऑल इंडिया मजलिए-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन) ने अपने प्रत्याशी नहीं खड़े किए हैं, वहां वह टीआरएस को समर्थन दे रही है। हालांकि, टीआरएस ने अब तक खुलकर एआइएमआइएम के साथ समझौते की बात नहीं कही है।


बेरोजगारी से युवा खफा :


बेरोजगार  युवक व छात्र दोनों ही नए अवसर सृजित किए जाने के मुद्दे पर सत्तारूढ़ टीआरएस से खफा हैं। हाल ही में शहर में पैदा हुई बाढ़ जैसी स्थिति को लेकर भी लोग पार्टी से नाराज हैं। विपक्षी पार्टियां चुनाव प्रचार के दौरान लैंड रेगुलराइजेशन स्कीम और धारिणी वेबसाइट मुद्दे को भी उछाल रही हैं।


बाकी है उम्मीद :


तमाम चुनौतियों के बीच टीआरएस को उम्मीद है कि कांग्रेस व भाजपा को कमजोर कैडर क्षमता उसके लिए जीत का मार्ग प्रशस्त करेगी। पार्टी ने हाल ही में आवासीय संपत्ति कर में 50 फीसद की छूट दी है और उसे उम्मीद है कि यह योजना जीत में मदद करेगी।


भारतीय जनता पार्टी


पिछले लोकसभा चुनाव में चार सीटों और डुब्बाक विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में मिली जीत से भाजपा उत्साहित है। कांगे्रस व दूसरें दलों के नेता व कार्यकर्ताओं का भाजपा में शामिल होने का सिलसिला लगातार जारी है। स्थानीय चुनाव में भाजपा मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभरी है। उसे उम्मीद है कि नगर निकाय चुनाव में उसका प्रदर्शन और बेहतर होगा और टीआरएस और एमआइएमआइएम को पछाड़ देगी।


चुनौती है पुराना शहर


हिंदुत्व विचारधारा वाली पार्टी के लिए पुराना शहर बड़ी चुनौती के रूप में सामने आ सकता है। कुल 150 में से 20 सीटें पुराने शहर में हैं, जहां मुस्लिम आबादी की बहुलता है। माना जा रहा है कि इस क्षेत्र में एआइएमआइएम का प्रदर्शन बेहतर होगा। टिकट बंटवाने को लेकर पार्टी विधायक टी राजा सिंह समेत कुछ अन्य वरिष्ठ नेता भी नाराज हैं।


टीआरएस का विकल्प :


कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि डुब्बाक विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में टीआरएस से नाराज मतदाताओं ने भाजपा को विकल्प के रूप में चुना और वहां पार्टी ने जीत हासिल की। ऐसा नगर निकाय चुनावों में भी हो सकता है। सत्तारूढ़ दल से नाराज लोगों का मत भाजपा को जा सकता है।


ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन :


पुराने शहर में एमआइएमआइएम का दबदबा है। इसकी सात विधानसभा सीटों पर पार्टी का कब्जा है। ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम की ५० सीटों पर पार्टी की पकड़ है। बिहार व दूसरे प्रदेशों में मिली जीत ने पार्टी और उसके कार्यकर्ताओं को उत्साहित किया हे। वह हर हाल में अपने गढ़ में बेहतर प्रदर्शन की कोशिश करेगी।


पिछड़ेपन से नाराजगी


पुराने शहर में एआइएमआइएम के प्रति नाराजगी भी है। लोगों का मानना है कि पुराने शहर के पिछड़ेपन के लिए एआइएमआइएण ही जिम्मेदार है। पिछले दिनों जब पुराने शहर में बाढ़ जैसी स्थिति पैदा हुई थी, तब पार्टी का रुख लोगों को रास नहीं आया था। यहां तक कि कई कॉलोनियों में कई दिनों तक पानी भर रहा था। वह नाराजगी टीआरएस, कांग्रेस व भाजपा के लिए पुराने शहर में थोड़ी-बहुत जगह बना सकता है।


कांग्रेस


हालांकि, पिछले विधानसभा चुनाव में कांगे्रस अपनी काफी सीटें गंवा चुकी है, लेकिन उसे भरोसा है कि कई इलाकों में उसका आधार अब भी मजबूत है। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को मल्काजगिरी सीट पर जीत मिली है, जबकि वर्ष 2018 के चुनाव में यह महेशराम व एबी नगर सीट पर जीत दर्ज कर चुकी है। पार्टी को ईसाई मतदाताओं का भी भरोसा है।


दिग्गज छोड़ चुके साथ


कांग्रेस के कई दिग्गज नेता पार्टी का साथ छोड़ चुके हैं। इनमें केंद्रीय मंत्री सर्वे सत्यनारायण, पूर्व विधायक बिलाक्षपति यादव व पूर्व मेयर कार्तिक रेड्डी शामिल हैं। चुनावों में लगातार मिल रही हार पार्टी के लिए बड़ा झटका है। हालांकि, पार्टी  की कई कमजोरियां हैं, लेकिन नेताओं को भरोसा है कि इस बार प्रदर्शन बेहतर होगा। उनका दावा है कि 20 लाख कार्यकर्ता अब भी उनकी पार्टी का समर्थन करते हैं। 


असदुद्दीन ओवैसी के घर में भाजपा ने झोंकी ताकत :


तेलंगाना के ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव में भाजपा ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। एक नगर निगम चुनाव को भाजपा ने लोकसभा चुनाव का रूप दे दिया है, जिसमें उसके बड़े नेता चुनाव प्रचार में जुटे हैं। भाजपा की कोशिश चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी तेलंगाना राष्ट्रीय समिति (टीआरएस) को पछाडऩे से कहीं ज्यादा राष्ट्रीय फलक पर लगातार आगे बढ़ रहे ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एआइएमआइएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी से बड़ी रेखा खींचने की है। अगर ओवैसी की गृह राज्य में सीटें कम होती हैं तो राष्ट्रीय स्तर पर इसका असर पडऩा तय है। बिहार में अपनी सीटों में इजाफा करने वाले ओवैसी को बंगाल चुनाव में भाजपा कोई मौका नहीं देना चाहती है। साथ ही हैदराबाद पहली सीढ़ी है, जिसे पार कर भाजपा की कोशिश तेलंगाना की सत्ता सहित एक साथ कई निशाने साधने की है।


सैद्धांतिक रूप :


भाजपा के लिए जीएसएमसी का चुनाव सिर्फ एक चुनाव नहीं है, यह उसके लिए सैद्धांतिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। भाजपा हैदराबाद का नाम बदलकर भाग्यनगर रखना चाहती है। ऐसी स्थिति में हैदराबाद का संदेश देशभर में गौर से सुना जाएगा। दूसरी ओर, ओवैसी को भाजपा की बी टीम बताने वालों को भी पार्टी नेताओं के आक्रामक बयानों ने साफ संदेश दे दिया है। हिंदुत्व से जुड़े संगठनों के लिए हैदराबाद महज एक शहर नहीं है, बल्कि वे उसे मुस्लिमों के अधिकार वाली एक सभ्यता के रूप में देखते हैं, जो मराठों से ब्रिटिश शासन तक अस्तित्व बचाने में कामयाब रही।