गांधी एक सद्गुण-एक सद्विचार धरती पर अहिंसा का साक्षात अवतार!

व्यक्ति के यदि गुण और विचार श्रेष्ठ हैंतो कर्म भी श्रेष्ठ ही होते हैं। क्योंकि कर्म सदा विचार की कोख से जन्म लेते हैं। यहां गुण से तात्पर्य हमारे स्वभाव से है जो पवित्र है, पावन है तो मनुष्य के हृदय में महान और कल्याणकारी विचारों का उद्भव होता है। जो कि श्रेष्ठ कर्म की ओर उद्यत करते हैं।


अब देखा जाए तो मनुष्य का श्रेष्ठ कर्म अहिंसा ही जिसे हम सबसे बड़ा सद्गुण भी कह सकते हैं। यह सद्गुण सबके स्दय में रहता है, जिसे जो व्यक्ति पूर्णतः उद्घाटित कर देता है, वो 'गांधी' बन जाता है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी बन जाता है। सचमुच में गांधी एक सद्गुण एक सद्विचार। धरती पर अहिंसा का साक्षात अवतार! पौराणिक भीमासक कहते हैं कि इस धरती पर जीव जन्म लेता है, जबकि जगदीश अर्थात भगवान अवतार लेते हैं। अब जहां तक भगवान के जानने, पहचानने की बात है तो जिसका रदय सम्पूर्ण सद्गुणों से परिपूर्ण है, वही 'भगवान' है। इसलिए यह कहना शायद अनुचित नही होगा कि भारत वर्ष की धरा पर अवतरित 'गांधी' भी एक भगवान' है। जिसका सम्मान और यशोगान केवल भारत ही नहीं, बल्कि समूचे विश्व में हो रहा है। इसलिए जीवन में राम नहीं बन पाए तो कोई बात कहीं, कृष्ण नहीं बन पाए कोई बात नहीं। अब गांधी ही बन जाओ तो 'देश' और दुनिया का बेड़ा पार हो जायेगा। वो बेरिस्टर गांधी जो 'पेंट-कोट-टाई उतकर गरीबों' की लंगोटी लगाते हैं। अहिंसा की लाठी हाथ में लेते हैं और गाते हैं रघुपति राघव राजाराम पतित के पावन सीताराम...! पावित्र श्रीमद् भगवत के अनुयायी गांधी की हर श्वास में अहिंसा के सुर फूटते हैं। वो कहते हैं- बुरा मत बोलो, बुरा मत सुनो, बुरा मत देखो। इसका आशय यह कि किसी व्यक्ति को दैहिक रूप से प्रताडित करना तो हिंसा है ही बुरा बोलना, बुरा सुनना और बुरा देखना भी हिंसा ही है। एक अहिंसावादी समाज और राष्ट्र के निर्माण में सबसे पहली जरूरत है मनुष्य मात्र को अपने मन, वचन, कर्म से पवित्र बनने की। यही गांधी का संकल्प है, यही गीता ज्ञान है और यही कुरान का फरमान है। इसी से हिन्दुस्तान दुनिया में महान है।