तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में त्रिचि नाम के स्थान पर रॉक फोर्ट पहाड़ी की चोटी है जहां भगवान गणेश का उच्ची पिल्लयार नाम का प्रसिद्ध मंदिर बसा हुआ है। यह मंदिर लगभग 273 फुट की ऊंचाई पर है और मंदिर तक पहुंचने के लिए लगभग 400 सीढ़ियों की चढ़ाई करनी पड़ती हैं। इस मंदिर की स्थापना का कारण रावण का भाई विभीषण से जुड़ा हुआ है।
मंदिर से जुड़ी मान्यताएं
तिरुचिरापल्ली का प्राचीन समय थिरिसिरपुरम और तिरुचिरापल्ली को पहले थिरिसिरपुरम के नाम से जाना जाता था थिरिसिरपुरम के पास इस जगह पर भगवान शिव की उपासना की थी, इसी वजह से इसका नाम थिरिसिरपुरम रख गया था और इस पर्वत की खास बात यह है की इसकी तीच चोटियों पर तीन देव विराजमान हैं,चोटी के पहले पर्वत पर भगवान शिव, दूसरे पर माता पार्वती और तीसरे पर श्रीगणेश (ऊंची पिल्लयार) पर खत है, जिसकी वजह से इसे थिरिसिरपुरम कसा जाता है। बाद में थिरिसिरपुरम को बदल कर तिरुचिरापल्ली कर दिया गया।
मंदिर की प्रसिद्धि का कारण
वास्तुशास्त्रों के अनुसार माना जाए तो जहां उत्तर दिशा में नदी बह रही होती है वह स्थान निश्चित ही प्रसिद्धि प्राप्त करता है। जहां मंदिर स्थित है वहां पहाड़ी में दक्षिण दिशा में ज्यादा ऊंचाई है और पहाड़ी की ढलान उत्तर दिशा में नदी की तरफ फैली हुई है। पहाड़ी की यह वास्तुनुकूल भौगोलिक स्थिति मंदिर की प्रसिद्धि बढ़ाने में सोने पर सुहागे का काम कर रही है। इसके अलावा इस मंदिर के शिखर पर जाने का रास्ता है पहाड़ की तलहटी के दक्षिण आग्नेय में है। वास्तुशास्त्र के अनुसार दक्षिण आग्नेय का द्वार प्रसिद्धि और वैभव बढ़ाने में सहायक होता है।
मंदिर से जुड़ा इतिहास
मंदिर के बारे में पौराणिक कथाएं प्रचलित है बताया गया है की रावण का वध करने के बाद भगवान राम ने अपने भक्त और रावण के भाई विभीषण को भगवान विष्णु के ही एक रूप रंगनाथ की मूर्ति प्रदान की थी। विभीषण वह मूर्ति लेकर लंका जाने वाला था, लेकिन उसके राक्षस कुल से होने के कारण कोई देवता नहीं चाहते थे कि मूर्ति विभीषण के साथ लंका जाए। तभी सभी देवताओं ने भगवान गणेश से सहायता करने की प्रार्थना की। उस मूर्ति को लेकर यह मान्यता दी कि उन्हें जिस जगह पर रख दिया जाएगा, वह हमेशा के लिए उसी जगह पर स्थापित हो जाएगी। जब विभीषण त्रिचि पहुंच गया तो उसे वहां कावेरी नदी दिखी और नदी देखकर विभीषण ने उसमें स्नान करने का विचार किया तब वह मूर्ति संभालने के लिए किसी को खोजने लगा। उसी वक्त वहां से भगवान गणेश एक बालक एक रूप में आए। विभीषण ने बालक को भगवान रंगनाथ की मूर्ति पकड़ा दी और उसे जमीन पर न रखने की प्रार्थना की। विभीषण के जाने पर गणेशजी ने उस मूर्ति को जमीन पर रख दिया। जब विभीषण वापस आया तो उसने मूर्ति जमीन पर रखी पाई। उसने मूर्ति को उठाने की बहुत कोशिश की, लेकिन उठा नहीं पाया। ऐसा होने पर उसे बहुत क्रोध आया और उस खालक की खोज करने लगा। भगवान गणेश भागते हुए पर्वत के शिखर पर पहुंच गए, आगे रास्ता न होने पर भगवान गणेश उसी स्थान पर बैठ गए। जब विभीषण ने उस बालक को देखा तो क्रोध में उसके सिर पर वार कर दिया। ऐसा होने पर भगवान गणेश ने उसे अपने असली रूप के दर्शन दिए। भगवान गणेश के वास्तविक रूप को देखकर विभीषण ने उनसे क्षमा मांगी और वहां से चले गए। तब से भगवान गणेश उसी पर्वत की चोटी पर ऊंची पिल्लयार के रूप में विराजमान हैं।