भगवान भोलेनाय की पूजा लिंगरूप में होती है। इनके मूर्त रूप की बजाए लिंगरूप की पूजा का शिवपुराण में शिक महत्व बताया गया है। भगवान शिव का प्रथम लिंगरूप में प्राकट्य कटा हुआ व इस विषय में शिवपुराण में बताया गया है कि अरुणाचल प्रदेश वह स्थान है जहां भगवान शिव पहली बार ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए थे। वह अणावल प्रदेश में अगलाई पति का क्षेत्र है जो तमिलनाडु में स्थित है। यहां पर्वत के पास ही भगवान शिव का प्रसिद्ध मंदिर जिसे अरुणाचलेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। मंदिर के पास ही पर्वतपानांबर दिसंबर के बीच एक त्योहार मनाया जाता है जिसे कार्तिगई दीपम के नाम से जाना जाता है। इस दिन पर्वत के शिखर पर ही एक अग्नि पुंज जलाया जाता है जो शिव के अग्नि स्तंभ का प्रतीक होता है। इस अवसर पर और माशिवरात्रि पर यहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं और शिवकृपा का लाभपाते हैं। अत्यावलेश्वर मंदिर के 8 दिशाओं में शिवलिंग स्थापित हैं जो अलग-अलग नामों से जाने जाते हैं और इनका अलग-अलग राशियों से माना जाता है। इंदलिगम का संयत राशि से है। अग्निलिंगमका संजय सिंह राशि से है। वन लिगका वृश्चिक राशि से। नैव लिंगाका संबंध मेष राशि से सण लिंगका मकर और कुंम सेवियु निगमका कर्क राशि से कुबेर लिंगमका धनु और मीन से ईशान लिंगका संबांय मिथुन और कन्या राशि से। लोग अपनी राशि के अनुसार अटों के दोष दूर करने के लिए इनकी विशेष पूजा करवाते हैं।
यहां प्रकट हुआ था पहला शिवलिंग