रायसेन जिले के बरेली तहसील का ग्राम जामगढ़ - भगदेई जो जामवंत और उनके भाई रोडमल की लीलाओ से भरा पड़ा हैं, जामवंत ने त्रेता युग से लेकर द्वापर युग तक इसी स्थान पर लीलाए की हैं, त्रेता युग का शिवालय और जल गुफा जो 200 मीटर पर जहाँ बर्षपर्यंत पानी भरा रहता हैं, जाम्बत की द्वापर की गुफा जहाँ 27 दिन तक श्रीकृष्ण और जाम्बत के बीच भीषड़ युद्ध हुआ, जामबंत के पद चिन्ह और खजाने का बीजक, जामबंत के खेलने के गिल्ली-डंडा, भगदेई में जामवंत के हाथो तिम निर्माण के शिव मंदिर, जहाँ विशव की अनोखी शिव जी की मूर्ति, 500 वर्ष प्राचीन लज्जा गोरी का अम्बा मंदिर जहाँ पुजारी सिर काटकर थाल में रखकर पूजन करता था, प्रचीन बाबड़ी और प्राचीन समाधी जो मन मोह लेती हैं, प्रचीन बाराही माता का मंदिर जहाँ आज भी शेर बरदान मांगने आता हैं, 1949 से आजतक संचालित संस्कृति पाठशाला और विंध्याचल पर्वत माला जो बारबार अपनी और आने को आकर्षित करती हैं, धरोहर स्पेशल जामगढ़ का सच।
रायसेन जिले के बरेली तहसील के यह दो गाव हैं जामगढ -भगदेई जो विंध्याचल श्रेणी की तलहटी में बसे हुयें हैं यह भोपाल से 135 और जबलपुर से 175 दूर खरगोन से उत्तर -पश्चिम दिशा में हैं। सबसे पहले देखतें हैं 1949 से आज तक चल रही संस्कृति पाठशाला हैं जहाँ 50 बच्चे अध्यन करते हैं यह ब्रस्मलीन चित्रकूट बाले महाराज जी ने प्रारम्भ की थी जो तालाब के किनारे रमणीय हैं इस तालाव के बीचो बीच गिल्ली हैं और भगदेई के तालाब के बीचो बीच डंडा हैं जिसे जामबंत और रिछडमल खेलते थे,यहीं से शुरू होती हैं जामगढ-भगदेई का त्रेता -द्वापर युगी सफर। यहाँ से आधा किलोमीटर सफर कर पहुंचेगे त्रेता युगीन शिवालय और जल गुफा, इसी मार्ग कर पाषाण बेट -बाल हैं जिसे आज क्रकेट में शामिल हैं यह हजारो साल पुराने हैं, विंध्याचल पर्वत पर 200 मीटर ऊंचाई पर यह बहीं मंदिर हैं सौली मार्ग से चलते हैं जहाँ शिवालय जल गुफा और गाय गुफा हैं,आखिर 500 मीटर चढ़ाई चढ़कर 200 मीटर ऊंचाई पर त्रेता के शिवालय तक पहुंच गएँ, यहीं हैं प्रचीन शिवालय और यह हैं जल गुफा जहाँ से पुजारी जल भरकर ला रहा हैं और यह गणेश माता पार्वती की खोंडत मूर्ती हैं और यह हैं गाय गुफा जहाँ से गाय आती जाती थी यह एक दन्त कथा हैं, गुफा के पास बूंद बूंद करके जल साल भर टपकता हैं सिद्ध स्थान जहाँ एक एक बंद करके पानी टपकता है जिससे सेवन करने से दमा, हार्ट, चर्मरोग, कोढ़ जैसे रोग दूर होते हैं। त्रेता युग में जामवंत ने इसी शिवालय की स्थापना की थी ,यहाँ पर आज भी इस जल गुफा मार्ग से जाने पर प्राचीन किला हैं और साधू संत निवासरत हैं। शिवालय से आधा किलो मीटर दूर 200 मीटर ऊंचाई और ऊबडखाबड़ मार्ग से 700 मीटर चढाई चढ़कर पहुँचते हैं जामबंत की बहीं गुफा जिसमे श्रीकृष्ण और जामवंत के बीच स्यमन्तक मणि की चौरी के कलंक को लेकर 27 दिन तक भीषण युद्ध हुआ था। अब चलते हैं जामबंत के पद चिन्हों की और लेकिन रास्ते में प्राचीन बराही माता का मंदिर जहाँ आज भी माता से आशीर्वाद मांगने आता हैं शेर। पुजारी महेंद्र कुमार शर्मा (बाराही माता मंदिर का कहना है कि ग्रामीण आये दिन आबाजे सुनते हैं और गावं के मवेशियों को कोई नुकशान नहीं होता हमने शेर के ताजे पेरो के निशानों को कैमरे कैद किया /यह स्थान सेकड़ो बर्ष पुराना हैं।
स्थानीय नागरिक परशराम साह बताते हैं कि भगदेई प्राचीन शिव मंदिर जिसे जामवंत ने नग्न होकर बनाया था, एक किबदन्ती हैं की जामबंत और उनके भाई रोछडमल इसे बनाया है, जामबंत इसे नग्न होकर बनाते थे जब कोई आता था तव बह चक्की चला देता था लेकिन एक दिन जामबंत की बहिन बिना चाकी चलायें आ गयी तो जामवंत ने उसे पहाड़ी पर फैक दिया और इसी मंदिर से कूदै जो पैरो के निशान बने यहाँ गिरे और गुफा में चले गए जिसके निशान आधे किलोमीटर तक बने हैं, लेकिन शोधकर्ता इसे 11 बी सदी बताते हैं गुर्जर प्रतिहार बश का बना हैं। इस मंदिर में कंकाली माँ, यक्ष की मूर्ती और शिव जी की उर्धव लिंग संकुल अवस्था की मुर्ती विश्व में कहीं नहीं हैं। इतिहास के जानकार सत्यनारायण याज्ञवलक्य बताते हैं कि रायसेन जिले में ऐसी पुरा सम्पदाओ की कमी नहीं है किन्तु जरुरत हे इनको सहेजने की इस ओर शासन का ध्यान अब जा रहा है।