महाशिवरात्रि पर शिव पूजा के लिए यहां लगता है भक्तों का तांता

नौगांव के शिवधाम में बढ़ रही शिवलिंग की लंबाई



हमारे भारत देश में कई अनूठी और अजूबी कहानियाँ और जगहें हैं कितनी ही किंवदंती उन जगहों से जुड़ती है कई सारी कहानियां और बहुत सारा इतिहास भी। ऐसा ही एक मंदिर शिव मंदिर मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले से 60 किलोमीटर दूर नौगांव तहसील में स्थित है ग्राम सरसेड़। जो हरपालपुर से 3 किलोमीटर दूरी पर है शिवधाम सरसेड ग्राम की चारों सीमाएं उत्तरप्रदेश से लगी हुयी है ग्राम सरसेड़ महाराजपुर विधानसभा व टीकमगढ़ संसदीय क्षेत्र में आता है। सरसेड़ गांव छठवीं शताब्दी में नाग राजाओ की राजधानी रही हैं। इस गांव में बना शिव मौदर पहाड़ की गोद मे स्थित हैं। जो पूरी तरह से पत्थरों को काटकर बनाया गया हैं सावन के माह में और महाशिवरात्रि के पर्व यहाँ श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता हैं। नागराजाओ की आस्था धर्म विश्वास का प्रतीक अनोखा शिव मंदिर भले ही कोणार्क व खजुराहो के मतंगेश्वर मंदिर की तरह प्रसिद्ध न हो पाया लेकिन शिवधाम सरसेड मंदिर आने वाले श्रदालुओं के लिए जिज्ञासा का केंद्र वर्षों से बना हैं। शुक्रवार के दिन यानि 21 फरवरी को महाशिवरात्रि का पावन पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जायेगा इस व्रत के साथ घरों एवं शिवालयों में अभिषेक के साथ पूजा-पाठ आरती के बाद प्रसाद वितरण किया जायेगा। इस दिन भगवान शिव एवं पार्वती का विवाह हआ था इसलिए इस दिन को महाशिवरात्रि पर्व के रूप में मनाया जाता है। शिव मंदिर में प्रातः स्नान के बाद व्रतधारी एवं हजारों की संख्या में श्रद्धालु शिवधाम सरसेड़ में शिव जी के अभिषेक और पूजा पाठ में लीन रहेंगे भगवान भोलेनाथ हर भक्त की मनोकामनाएं पूर्ण करते है।


मंदिर की विशेषता


शिवधाम सरसेड़ में मावान भोलेनाथ का खेल्द प्राचीन मंदिर यहां स्थित हैं। जानकारी के अनुसार ती ताब्दी मगवान भोलेनाय स्वयं प्रकट हुए थे और उनके अपर विशाल कहान रोषनाग की मह स्थित हैं। और यह वहान हर साल शिवलिंग से ऊपर उठती जा रही हैं। बहुत पठले श्रद्धालुलेटकर परिवगाकरते थे लेकिन अबझतीजमठो गयी है कि श्रद्धालु पूजअर्धना और आसानी से परिक्रमा कर सकते हैं। मंदिर के आसपास पहाड़ पर 5 पानी के कुण्ड झकुंठों का पानी कमी नही सूखता है। शिवमंदिर के एक और एक प्राचीन गणेश मंदिर है इसकेपास ही एक प्राचीन गुफा अंदर को जाती हैं जो अनेक वों से बंद है जानकारी के अनुसार नाग शासक शिव यासक ढाकाते ये शिवमंदिर से सीये गुफा के माध्यम से वह किला जाते ये अब भी यह मान्यता है कि गुफा में आभूषणों का जाना है जिसमे लोगों का जाना वर्जित है। और गुफाको बंद कर दिया गया है। इस मंदिर की प्राकृतिक विशेषता यह है कि जो शिवलिंग के अपर विशाल वहन प्रत्येकवर्ष में एक इंच ऊपर उठती हैं। नागराजाओं शान्तिदेव के समय से मशिवाति के पावन पर्व मेला लगाने व आयोजन शुरु किया गया था तब से लेकर आजतक लगातार मयाशिवरात्रि के पानपर्व पर मेले का आयोजन चला आ रखा है। शिवपार्वती विवाह पूमधाम से मनाया जाता है।


महाशिवरात्रि पर मंदिरों में होगा शिव का महाश्रृंगार


महाशिवरात्रि पर्व को लेकर तैयारियां शुरू कर दी गई है। मंदिरों की सफाई युद्ध स्तर पर की जा रही है। अधिकांश शिवालयों में रंग- रोगन का काम चल रहा है। शिवालयों को दुल्हन की तरह सजाया जा रहा है। शिवरात्रि पर्व को लेकर शिव भक्तों में जोश है। मान्यता है कि शिवरात्रि के दिन भक्त शिव भगवान को सच्चे मन से पूजा-अर्चना करते हैं, उनकी मनोकामना पूर्ण होती है। इससे वातावरण शिवमय हो गया है। 21 फरवरी को होने वाले महाशिवरात्रि को कहीं भजन संध्या, रुद्राभिषेक, अखंड महामृत्युंजय पाठ हवन कार्यक्रम तो कहीं बारात निकाली जाएगी। शहर के कई मंदिरों में बाबा भोलेनाथ संग माता पार्वती की शादी होती है। जिसको लेकर शहर के मंदिरों में तैयारी चल रही है। जिले के ऐतिहासिक मंदिर : रुस्तमपुर महादेव, खंडवा के चारों कुंड पदमकुण्ड, भीमकुण्ड, रामेश्वर कुण्ड, सूरजकुण्ड, तिलभांडेश्वर मंदिर, देवझिरी, खालवा का पुराना शिवालय, हरसूद के सरस्वती कुंड बीड़, मूंदी पुनासा के पुराने शिवालयों के अलावा जसवाड़ी का ओंकरेश्वर मंदिर समेत कई स्थानों पर शिव का विशेष श्रृंगार किया जाएगा। भक्तों की यहाँ कतारें लगना अल सुबह से शुरू हो जाएंगी। शिव मंदिरों का विशेष श्रृंगार किया जाए तो वे भक्तों पर नेह की बरसात कर देते हैं। मंदिरों में विशेष तैयारियों की गई हैं। अधिकतर लोगों का उपवास रहेगा। महाशिवरात्रि के पूरे दिन सुबह से मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ेगी और भोले बाबा की पूजा अर्चना कर खिचड़ी की प्रसादी ग्रहण करेंगे। खंडवा के समीप आबना नदी पर यापू पर स्थित भीमकुण्ड मौदर पर भी महाशिवरात्रि का पर्व धार्मिक उल्लास के साथ मनाया जाएगा। बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित होकर दर्शन करेंगे। भीमकुण्ड के बाबा दुगानंदगिरि ने द्वारा विशाल फलहारी की व्यवस्था भक्तों की गई है। दादाजी की यह नगरी प्राचीनकाल से ही तीर्थ नगरी रही है। महाभारत एवं रामायण काल के समय इस खंडवा को खांडव वन के नाम से जाना जाता था। इस नगरी का पुरातत्व विभाग एवं शास्त्रों में भी उल्लेख है। नगर में जहां भी खदाई होती है वहां पर कहीं न कहीं देवी-देवताओं की मूर्तियां निकलती है। खंडवा के समीप नदियों में भी खुदाई के समय प्राचीनकाल की मूर्तियां निकलती है। इस नगर में पूर्वकाल से पानी की निरंतर व्यवस्था के लिए चारों दिशाओं में प्राचीन चार कुंड अपना प्राचीन इतिहास लिए आज भी मौजूद है।