(एक सफल अभियान पाती-एक)
1 महीना सब कुछ भूलिए। गीले शिकवे मत देखे।
कभी मुझे भी ग़द्दार, ब्लेकमेलर कहा आज उनसे मेरी दिन में दो बार तो बात होती है। क्या क्या उजागर करू...20 सितम्बर 18 को पहली बार तेलंगाना गया उसके बाद लगातार लगा रहा लगभग हर तारीख पर मौजूद रहे...दिल्ली, हिसार..सब जगह दौड़ रहा था..कोई कोर कमेटी नही जो साथ हुआ उसे पूरे विश्वास से साथ लिया...जो मिलता उससे पूछा "कैसे हो सकता हैं" जो लगा कि इस रास्ते से राधेभाई आ सकते हैं उस ओर कार्रवाई में दौड़ लगा दी।
समय और पैसा खोया पर कोई शिकन नही थी..हा परिवार के लोग जरूर नाराज होते रहे...उनका भी एक सवाल रहता था.. की" क्या मिलता है आपको" मेरा जवाब होता था समय आने दो " सब दिखेगा" आप लोगो की नजर में ही नही अब तो अपने पत्रकार मित्रो,परिजनों की नजर में भी "जीत" दिखाने का जूनून है। कभी मेरी फेसबुक पर जाकर देखिए हर सफर की ..हर दौड की जानकारी मिल जाएगी।
अपनी जेब के रुपये लगा के दौड भाग की..आईएम फ़्यूचर के समय 17 दिन तक दिल्ली में डेरा डाल कर बैठा रहा...उस पर अटेक हुआ तो पूना भागा... कार्ड का सिस्टम लाया..कर के दिखाया कि करना चाहे तो सब हो सकता है... पर तब मैं शिकार हुआ इन्ही गीले -शिकवों का।
आरोप लगे कि मैनेजमेंट से पैसा मिल रहा है तो आज भी चेलेंज करता हूं कि जो मैने मेरे छोटे भाई राधेश्याम के लिए खर्च किया उसमे से 60% मुझे रामसिंह औऱ प्रदीप ने वापस किया.. ये भी नही लेता लेकिन फिर लड़ता कैसे?
आज सब अपने अपने योगदान को लेकर आत्ममुग्ध हो रहे हैं.. क्यो भाई भूलो मत यदि आप राधेश्याम के लिए कर रहे हो तो इसलिए कि आपका भी पैसा लेना है।
मैं इन झंझटो से दूर हूँ औऱ हर बार जब दिखता है कि बस 'अब बाहर आ ही जाएगा छोटा भाई" सब भूलकर शामिल हो जाता हूँ।
कोई हक नही है आपको नाक चढ़ाने का.. अगर इतनी सी बात पर नाराज़गी है तो फिर यह हक तो मुझे सबसे पहले मिलना चाहिए।
इसी ग्रुप में डॉक्टर कहे जाने वाले जगदीश माने भी है वे जानते हैं और विकास,अशोक विश्नोई भी उस घटनासे वाकिफ हैं ...मेरी जगह आप होते तो मानेजी को छोड़ते ही नही...
यकीन मानिए ऐसे बहुत हादसे है जो मेने नजरअंदाज किये आप सब की खुशियों के लिए। इसका यह भी मतलब नही है कि आप मुझे हार फूल पहनाए...जहाँ भी सही है.. निराकरण है मैं हर हाल में पूरी ताकत से खड़ा मिलूंगा।
जगदीश जोशी "प्रचंड"
तब तो मेरा हक पहले होना चाहिए नाराजगी का