संतान सुख की कामना के लिए विवाहित महिलाएं करती हैं व्रत


सावन में आने वाले हर मंगलवार को माता गौरी को समर्पित मंगला गौरी व्रत रखा जाता है। ये व्रत विवाहित महिलाएं जीवन साथी और संतान के सुखद जीवन की कामना के लिए करती हैं। भविष्यपुराण और नारदपुराण के अनुसार श्रावण मास में मंगलवार के व्रत रखने से सुखों में वृद्धि होती है। इस दिन देवी पार्वती के गौरी स्वरूप की पूजा होती है। मंगला गौरी सुहाग और गृहस्थ सुख की देवी मानी जाती हैं। महिलाएं अपने पति और संतान की लंबी उम्र के लिये यह व्रत रखती हैं।



व्रत विधि : इस व्रत को करने वाले मंगलवार को सुबह जल्दी उठें और व्रत करने का संकल्प लें। स्नान करके साफ कपड़े पहन लें। उसके बाद घर के मंदिर में भगवान के सामने कहें कि मैं पुत्र, पौत्र, सौभाग्य वृद्धि और श्री मंगला गौरी की कृपा प्राप्ति के लिए मंगला गौरी व्रत करने का संकल्प लेती हूं। इसके बाद मां मंगला गौरी यानी माता पार्वती की मूर्ति लाल कपड़े पर स्थापित करें। फिर आटे से बना दीपक घी भरकर जलाएं। पूजा करने के बाद माता की आरती करें। पूजा में ऊँ उमामहेश्वराय नम: मंत्र का जाप करें। माता को फूल, लड्डू, फल, पान, इलाइची, लौंग, सुपारी, सुहाग का सामान इत्यादि चढ़ाएं। माता मंगला गौरी की कथा सुनें। भोग लगाएं और सभी में प्रसाद वितरित करें। ध्यान रखें, पांच साल तक मंगला गौरी पूजन करने के बाद पांचवें साल में सावन के अंतिम मंगलवार को इस व्रत का उद्यापन करना चाहिए।
मंगला गौरी व्रत कथा : पौराणिक कथा के अनुसार पुराने समय में धर्मपाल नाम का एक सेठ था। वह आर्थिक रूप से संपन्न था और उसकी पत्नी भी अच्छी थी, लेकिन उसे कोई संतान नहीं थी। इसलिए वह दुखी रहता था। लंबे इंतजार के बाद भगवान की कृपा से उसे एक पुत्र प्राप्त हुआ, लेकिन ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की थी कि ये बालक अल्पायु लेकर आया है अत: सोलहवें वर्ष में सांप के डसने के कारण इसकी मृत्यु होगी। जब पुत्र थोड़ा बड़ा हुआ तो उसका विवाह ऐसी कन्या से हो गया, जिसकी मां मंगला गौरी व्रत करती थी। कहा जाता है कि ये व्रत करने वाली महिला की पुत्री को आजीवन पति का सुख मिलता है और वह हमेशा सुखी रहती है। इस व्रत के शुभ प्रभाव से धर्मपाल के पुत्र को भी लंबी आयु मिली।