राजमहल का सुख-वैभव त्यागकर तपोमय साधना की राह पर चले भगवान महावीर


भगवान महावीर का जन्म 599 ईसा पूर्व में बिहार के कुण्डग्राम नाम के स्थान पर हुआ था। यह स्थान वैशाली जिले में है। महावीर की मां त्रिशला रानी थीं और पिता का नाम सिद्धार्थ था। जैन पुराणों में वर्णन मिलता है कि महावीर के जन्म से पहले उनकी माता ने उनके जन्म से सम्बंधित 16 विशेष स्वप्न देखे थे। भगवान महावीर के बचपन का नाम वर्धमान था।
वर्धमान ने ज्ञान की प्राप्ति के लिए महज तीस साल की उम्र में राजमहल का सुख और वैभव जीवन का त्याग करते तपोमय साधना का रास्ता अपना लिया था। उनका वह साढ़े बारह वर्षों की साधना व उनके जीवन कष्टों का जीवंत इतिहास है। उन्होंने तप और ज्ञान से सभी इच्छाओं और विकारों पर काबू पा लिया था। इसलिए उन्हें महावीर के नाम से पुकारा गया। आमजन के कल्याण और अभ्युदय के लिए महावीर ने धर्म-तीर्थ का प्रवर्तन किया।



कौन हैं भगवान महावीर
भगवान महावीर अहिंसा, त्याग व समभाव की प्रतिमूर्ति थे। भगवान महावीर ने त्याग और तपस्या की शक्ति से आत्मसाक्षात्कार किया था। उनके वचनों में जीवन का सार है। करीब ढाई हजार साल पूर्व भारत एवं दुनिया के सामने जो चुनौतियां थीं, वे आज भी मौजूद हैं। बस उनका स्वरूप बदल गया है। अत्याचार, दमन, शोषण, आतंक, युद्ध, हिंसा और असत्य जैसी बुराइयां आज भी विद्यमान हैं। भगवान महावीर ने अपने वचनों में इन बुराइयों पर विजय पाने का मार्ग बताया है।
जयंती का महत्व
भगवान महावीर ने कठोर तप से अपने जीवन पर विजय प्राप्त किया था। महावीर जयंती पर श्रद्धालु जैन मंदिरों में भगवान महावीर की मूर्ति को विशेष अभिषेक कराया जाता है। महावीर को स्नान करने के बाद उनकी मूर्ति को सिंहासन या रथ पर बैठाकर हर्सोल्लास के साथ जुलूस निकाला जाता है। इस महाजुलूस में बड़ी संख्यां में जैन धर्मावलम्बी शामिल होते हैं। दरअसल, इस दिन भगवान महावीर का जन्म हुआ था, इसलिए इस दिन समाज में उनके संदेशों का प्रचार करते हैं। महावीर ने अहिंसा का संदेश दिया था। उन्होंने कहा था कि अहिंसा ही सबसे बड़ा धर्म है। खुद जीओ और दूसरों को भी जीने दो। हर प्राणी के प्रति दया का भाव रखो। दया ही अहिंसा है।
कहलाए तीर्थंकर
भगवान महावीर ने अपने हर भक्त को अहिंसा के साथ, सत्य, अचौर्य, बह्मचर्य और अपरिग्रह के पांच व्रतों का पालन करना आवश्यक बताया है। साथ ही उन्होंने साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका- इन चार तीर्थों की स्थापना की। इसलिए वह तीर्थंकर भी कहलाए। भगवान महावीर ने सालों से चल रही सामाजीक विसंगतियों को दूर करने के लिए भारत की मिट्टी को चंदन बनाया। उन्होंने जात-पात के भेदभाव से ऊपर उठकर समाज के कल्याण की बात कही।
अहिंसा का दिया संदेश
जैन धर्म के लोग महावीर जयंती को बहुत धूमधाम और व्यापक स्तर पर मनाते हैं। भगवान महावीर ने हमेशा से ही दुनिया को अहिंसा और अपरिग्रह का संदेश दिया है। उन्होंने जीवों से प्रेम और प्रकृति के नजदीक रहने को कहा है। महावीर ने कहा है कि अगर किसी को हमारी मदद की आवश्यकता है और हम उसकी मदद करने में सक्षम हैं फिर हम उसकी सहायता न करें तो यह भी एक हिंसा माना जाता है।
महापर्व की तरह मनता है पर्व
जैन धर्म के लोग इस पर्व को महापर्व की तरह मनाते हैं। इस दिन जैन मंदिरों में महावीर की मूर्तियों का अभिषेक किया जाता है। जिसके बाद मूर्ति को रथ में बैठाकर शोभायात्रा निकाली जाती है, इस यात्रा में जैन समुदाय के लोग हिस्सा लेते हैं। कई जगह पंडाल लगाए जाते हैं और गरीब व जरूरतमंद की मदद करते हैं।