कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी का पर्व मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु योगनिद्रा से निवृत हो जाते हैं और स्वयं को लोक कल्याण के लिए समर्पित करते हैं। केरल के तिरुवनंतपुरम में भगवान विष्णु को समर्पित पद्मनाभ स्वामी मंदिर है, जो पूरी दुनिया में मशहूर है।
तिरुवनंतपुरम के मध्य में बना विशाल किले की तरह दिखने वाला पद्मनाभ स्वामी मंदिर भक्तों के लिए महत्वपूर्ण आस्था स्थल है। यहां भगवान विष्णु शेषनाग पर शयन मुद्रा में विराजमान हैं। मंदिर का इतिहास काफी पुराना है। महाभारत के अनुसार श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम इस मंदिर में आए थे और यहां पूजा-अर्चना की थी। मान्यता है कि मंदिर की स्थापना 5000 साल पहले कलयुग के प्रथम दिन हुई थी, लेकिन 1733 में त्रावणकोर के राजा मार्तण्ड वर्मा ने इसका निर्माण कराया था। वहां भगवान विष्णु का सिंगार शुद्ध सोने के आभूषणों से किया जाता है।
लेटी हुई मुद्रा में प्रतिमा
यहां भक्तों को अलग-अलग दरवाजों में से भगवान विष्णु की प्रतिमा के दर्शन करने को मिलते हैं। इस मूर्ति में शेषनाग के मुंह इस तरह खुले हुए हैं, जैसे शेषनाग भगवान विष्णु के हाथों में लगे कमल को को सूंघ रहे हों। मूर्ति के आसपास भगवान विष्णु की दोनों रानियों श्रीदेवी और भूदेवी की मूर्तियां स्थापित हैं। इस मूर्ति में भगवान विष्णु की नाभि से निकले कमल पर जगतपिता ब्रह्मा की मूर्ति स्थापित है। लोक कक्ष जहां विष्णु भगवान की लेटी हुई मुद्रा में प्रतिमा है, वहां कई दीपक जलते रहते हैं, दीपकों के उजाले से भगवान के दर्शन होते हैं।
स्वर्ण जडि़त गोपुरम
मंदिर में अत्यंत कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के साथ-साथ यहां श्रद्धालुओं के प्रवेश के नियम भी हैं। पुरुष केवल धोती पहनकर ही प्रवेश कर सकते हैं और महिलाओं के लिए साड़ी पहनना अनिवार्य है। अन्य किसी भी लिबास में प्रवेश यहां वर्जित है। मंदिर में एक स्वर्ण स्तंभ बना हुआ है, जिसकी सुंदरता को श्रद्धालु एकटक निहारते रहते हैं। मंदिर का स्वर्ण जडि़त गोपुरम सात मंजिल का, 3५ फीट ऊंचा है। कई एकड़ में फैले मंदिर में महीन कारीगरी भी देखते ही बनती है।
समुद्र किनारे स्नान
श्री पद्मनाभ मंदिर की एक विशेषता है इस मंदिर में भगवान विष्णु की शयनमुद्रा, बैठी हुई और खड़ी मूर्तियां स्थापित की गई हैं। गर्भगृह में भगवान विष्णु की मुद्रा में मूर्ति का ेउत्सवों के अवसर पर मंदिर से बाहर ले जाते हैं। वर्ष में दो बार धार्मिक समारोह होता है। इस समारोह में 'आउतÓ (पवित्र स्नान) किया जाता है। इस समारोह में भगवान विष्णु, नरसिंह और भगवान श्रीकृष्ण की मूर्तियों को नगर के बाहर समुद्र किनारे पर ले जाकर स्नान कराया जाता है।