मुहम्मद बिन तुगलक ने कराया था हजरत निजामुद्दीन औलिया दरगाह का निर्माण


चिश्ती घराने के चौथे संत थे। इस सूफी संत ने वैराग्य और सहनशीलता की मिसाल पेश की, कहा जाता है कि 1303 में इनके कहने पर मुगल सेना ने हमला रोक दिया था। इस प्रकार ये सभी धर्मों के लोगों में लोकप्रिय बन गए। हजरत साहब ने 92 वर्ष की आयु में प्राण त्यागे और उसी वर्ष उनके मकबरे का निर्माण आरंभ हो गया, किंतु इसका नवीनीकरण 1562 तक होता रहा। दक्षिणी दिल्ली में स्थित हजरत निज़ामुद्दीन औलिया का मकबरा सूफी काल की एक पवित्र दरगाह है। निजामुद्दीन दरगाह केवल एक प्रसिद्ध दरगाह ही नहीं है, बल्कि यह एक प्रसिद्ध सूफी संत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह है। दिल्ली के निजामुद्दीन पश्चिमी क्षेत्र में स्थित यह दरगाह न केवल प्रतिवर्ष हजारों मुस्लिम यात्रियों को आकर्षित करता है, बल्कि अन्य धर्मों के लोग भी यहां आते हैं। निजामुद्दीन दरगाह परसिर में इनायतखान, मुगल राजकुमारी, जहांआरा बेगम और प्रसिद्ध कवि अमीर खुसरो की कब्रें हैं। निजामुद्दीन दरगाह के साथ-साथ आसपास का क्षेत्र भी काफी लोकप्रिय है। पूर्वी और पश्चिमी निजामुद्दीन भागों में विभाजित होने के साथ इसके पश्चिमी भाग में दरगाह परिसर और बाजार है, जिसमें अधिकतर मुस्लिम दुकानदार हैं, जबकि पूर्वी भाग में अमीर वर्ग के लोग रहते हैं। यह क्षेत्र निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन और हुमायूं के मकबरे के बीच स्थित है। दरगाह में संगमरमर पत्थर से बना एक छोटा वर्गाकार कक्ष है, इसके संगमरमरी गुंबद पर काले रंग की लकीरें हैं। मकबरा चारों ओर से मदर ऑफ पर्ल केनॉपी और मेहराबों से घिरा है, जो झिलमिलाती चादरों से ढकी रहती हैं। यह इस्लामिक वास्तुकला का एक विशुद्ध उदाहरण है। दरगाह में प्रवेश करते समय सिर और कंधे ढके रखना अनिवार्य है। धार्मिक गात और संगीत इबादत की सूफी परंपरा का अटूट हिस्सा हैं। दरगाह में जाने के लिए सायंकाल 5 से 7 बजे के बीच का समय सर्वश्रेष्ठ है, विशेषकर वीरवार को, मुस्लिम अवकाशों और त्यौहार के दिनों में यहां भीड़ रहती है। इन अवसरों पर कव्वाल अपने गायन से श्रद्धालुओं को धार्मिक उन्माद से भर देते हैं। यह दरगाह निज़ामुद्दीन रेलवे स्टेशन के नजदीक मथुरा रोड से थोड़ी दूरी पर स्थित है। यहां दुकानों पर फूल, लोबान, टोपियां आदि मिल जाती हैं। अमीर खुसरो, हजऱत निजामुद्दीन के सबसे प्रसिद्ध शिष्य थे, जिनका प्रथम उर्दू शायर तथा उत्तर भारत में प्रचलित शास्त्रीय संगीत की एक विधा ख्याल के जनक के रूप में सम्मान किया जाता है। खुसरो का लाल पत्थर से बना मकबरा उनके गुरु के मकबरे के सामने ही स्थित है। इसलिए हजरत निज़ामुद्दीन और अमीर खुसरो की बरसी पर दरगाह में दो सर्वाधिक महत्वपूर्ण उर्स आयोजित किए जाते हैं। 
हजरत ख्वाजा निजामुद्दीन औलिया का जन्म १२३८ में उत्तर प्रदेश के बदांयू जिले में हुआ था। येपांच वर्ष की उम्र में अपने पिता, अहमद बदायनी, की मृत्यु के बाद अपनी माता, बीबी जुलेखा के साथ दिल्ली में आए। इनकी मृत्यु ३ अपै्रल, १३२५ को हुई। इसके बाद तुगलक वंश के प्रसिद्ध शासक मोहम्मद बिन तुगलक ने हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह का निर्माण करवाया था। हजरत निजामुद्दीन के वंशज आज भी इस दरगाह की देखभाल करते हैं।